हस्तिनापुर के कौरवों के कुलगुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा के मामा कृपाचार्य महाभारत युद्ध में कृपाचार्य कौरवों की ओर से सक्रिय थे। इनकी बहन 'कृपि' का विवाह द्रोणाचार्य से हुआ था। महाभारत के युद्ध में कृपाचार्य बच गए थे, क्योंकि उन्हें चिरंजीवी रहने का वरदान था। आओ जानते हैं उनके बारें में 10 रहस्य।
1. गौतम ऋषि के पुत्र शरद्वान और शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य की माता का नाम नामपदी था जो एक देवकन्या थी। इंद्र ने शरद्वान को साधना से डिगाने के लिए नामपदी को भेजा था, क्योंकि वे शक्तिशाली और धनुर्विद्या में पारंगत थे जिससे इंद्र खतरा महसूस होने लगा था।
देवकन्या नामपदी (जानपदी) के सौंदर्य के प्रभाव से शरद्वान इतने कामपीड़ित हो गए कि उनका वीर्य स्खलित होकर एक सरकंडे पर गिर पड़ा। वह सरकंडा दो भागों में विभक्त हो गया जिसमें से एक भाग से कृप नामक बालक उत्पन्न हुआ और दूसरे भाग से कृपी नामक कन्या उत्पन्न हुई। शरद्वान-नामपदी ने दोनों बच्चों को जंगल में छोड़ दिया जहां महाराज शांतनु ने इनको देखा और इन पर कृपा करके दोनों का लालन पालन किया जिससे इनके नाम कृप तथा कृपी पड़ गए।
2. कृपाचार्य महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे। महाभारत युद्ध के कृपाचार्य, गुरु द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह की जोड़ी थी। युद्ध में द्रोणाचार्य, कृपाचार्य और अश्वत्थामा तीनों ही भयंकर योद्धा था। तीनों ही ही अपने युद्ध कौशल के बल पर पांडवों की सेना का संहार कर दिया था।
2. कृपाचार्य जिंदा बच गए 18 महायोद्धाओं में से एक थे। भीष्म और द्रोण के बाद उन्हें ही सेनापति बनाया गया था।
3. कृपाचार्य अश्वत्थामा के मामा थे। कृपाचार्य की बहन कृपी का विवाह गुरु द्रोण के साथ हुआ था। कृपि के पुत्र का नाम था- अश्वत्थामा। अर्थात अश्वत्थामा के वे मामाश्री थे।
4.द्रोणाचार्य के छल से वध होने के बाद मामा और भांजे की जोड़ी ने युद्ध में कोहराम मचा रखा था।
5. कृपाचार्य भी धनुर्विद्या में अपने पिता के समान ही पारंगत थे। भीष्म ने इन्हीं कृपाचार्य को पाण्डवों और कौरवों की शिक्षा-दीक्षा के लिए नियुक्त किया और वे कृपाचार्य के नाम से विख्यात हुए।
6. कुरुक्षेत्र के युद्ध में ये कौरवों के साथ थे और कौरवों के नष्ट हो जाने और दुर्योधन की मृत्यु के बाद अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा अलग-अलग हो गए। कृपाचार्य ने बाद में इन्होंने परीक्षित को अस्त्रविद्या सिखाई।
7. युद्ध में कर्ण के वधोपरांत उन्होंने दुर्योधन को बहुत समझाया कि उसे पांडवों से संधि कर लेनी चाहिए किंतु दुर्योधन ने अपने किए हुए अन्यायों को याद कर कहा कि न पांडव इन बातों को भूल सकते हैं और न उसे क्षमा कर सकते हैं। युद्ध में मारे जाने के सिवा अब कोई भी चारा उसके लिए शेष नहीं है।
8. महाभारत के युद्ध में अर्जुन और कृपाचार्य के बीच भयानक युद्ध हुआ।
9. जब अश्वत्थामा द्रौपदी के सोते हुए पांचों पुत्रों का वध कर देते हैं तब गांधारी कृपाचार्य से कहती है कि अश्वत्थामा ने जो पाप किया है उस पाप के भागीदार आप भी हैं। आप चाहते तो उसे ऐसा करने से रोक सकते थे। आपने अश्वत्थामा का साथ दिया। आप हमारे कुलगुरु हैं। आप धर्म और अधर्म को अच्छी तरह समझते हैं। आपने यह पाप क्यों होने दिया? कृपाचार्य को इस बात का पछतावा भी हुआ था।
10. 'भागवत' के अनुसार सावर्णि मनु के समय कृपाचार्य की गणना सप्तर्षियों में होती थी।
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।
अर्थात- अश्वत्थामा, राजा बलि, महर्षि वेदव्यास, हनुमानजी, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम व ऋषि मार्कण्डेय- ये आठों अमर हैं।