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Last Updated : शुक्रवार, 15 मई 2020 (00:21 IST)

Mahabharat 27 April Episode 61-62 : अभिमन्यु और उत्तरा का विवाह और युधिष्ठिर की चेतावनी

Mahabharat 27 April Episode 61-62 : अभिमन्यु और उत्तरा का विवाह और युधिष्ठिर की चेतावनी - Abhimanyu and Uttaras marriage In Mahabharat
बीआर चौपड़ा की महाभारत के 27 अप्रैल 2020 के सुबह और शाम के 61 और 62वें एपिसोड में अभिमन्यु और उत्तरा का विवाह और संजय के शांतिदूत बनने की कथा का वर्णन किया गया।
 
 
सुबह के एपिसोड की शुरुआत धृतराष्ट्र और भीष्म के वार्तालाप से होती है। धृतराष्ट्र कहते हैं कि मेरा दुर्भाग्य यह है कि अब आप भी मुझे मेरे अनुज पुत्रों का शत्रु समझने लगे हैं। दोनों एक-दूसरे से अपने दुख की चर्चा करते हैं। कौरव और पांडवों के साथ ही वे अभिमन्यु और उत्तरा के विवाह के निमंत्रण पत्र पर चर्चा करते हैं। भीष्म सलाह देते हैं कि हमें उनके विवाह में नहीं जाना चाहिए, इससे विवाद उत्पन्न हो सकता है, क्योंकि वहां द्रोण और द्रुपद आमने-सामने होंगे तो विवाद होगा।
इधर, राजकुमार शिखंडी और उनके पिता के बीच अभिमन्यु और उत्तरा के विवाह में चलने के बारे में विचार करते हैं और कहते हैं कि मैं तो अपनी सेना सहित वहां जाना चाहता हूं ताकि वहां द्रोण को सबक सिखा सकूं। मैं कब से इसका इंतजार कर रहा हूं। शिखंडी कहता है कि मैं भी कब से इंजतार कर रहा हूं।
 
 
दूसरी ओर अभिमन्यु और उत्तरा के विवाह में सुभद्रा के साथ पधारे भगवान श्रीकृष्ण का द्रौपदी से संवाद होता है। अभिमन्यु सहित कई पुत्र वहां पहुंचते हैं और द्रौपदी के चरण छूते हैं। कृष्ण के कहने पर द्रौपदी उसे विशेष आशीर्वाद देते हुए कहती हैं कि तुम स्वयं ही तुम्हारी पहचान बनो। इस तरह सभी पुत्रों को आशीर्वाद देती हैं।
 
बाद में अभिमन्यु और उत्तरा का विवाह समारोह बताया जाता है। इस विवाह में कई महारथी एकत्रित होते हैं।विवाह के बाद वे कौरवों से युद्ध पर चर्चा करते हैं, लेकिन श्रीकृष्ण रोक देते हैं और कहते हैं कि अभी युद्ध की चर्चा उचित नहीं। अभी तो युद्ध की कोई जरूरत नहीं। श्रीकृष्ण कहते हैं कि युद्ध तो अंतिम चयन होता है। वे सलाह देते हैं कि पहले महाराज युधिष्ठिर का कोई दूत वहां जाए। बलराम भी इससे सहमत होकर श्रीकृष्ण का समर्थन करते हैं। लेकिन कोई भी श्रीकृष्ण की बात से सहमत नहीं होता है तो विवाद बढ़ता है। अंत में श्रीकृष्ण सभी को समझा लेते हैं और दूत भेजने पर सहमति व्यक्त करते हैं।

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इधर, कृपाचार्य और द्रोण के बीच संजय और भीष्म के बीच वार्तालाप होता है। संजय कहते हैं कि पांडव अपना दूत भेजें उससे पूर्व स्वयं महाराज ही अपना दूत भेजकर उन्हें आमंत्रित करें और उन्हें उनका राज लौटा दें। फिर सभी धृतराष्ट्र से इस संबंध में चर्चा करते हैं। तभी दूत आकर कहता है कि महाराज द्रुपद के राजपुरोहित महाराज युधिष्ठिर का संदेश लेकर आए हैं। इधर, दुर्योधन इस संबंध में कर्ण, शकुनि और अश्वत्‍थामा से चर्चा करते हैं कि दूत आया है। शकुनि बताता है कि इसमें जरूर वसुदेव पुत्र श्रीकृष्ण का ही हाथ होगा, क्योंकि मैं उसे भलीभांति जानता हूं।
 
शाम के एपिसोड में विदुर और धृतराष्ट्र का वार्तालाप होता है। धृतराट्र कहते हैं कि युधिष्ठिर ने दूत क्यों भेजा, वह स्वयं भी तो आ सकता था? वे कहते हैं कि अब इस पर मुझे सोचना होगा। बाद में संजय इस संबंध में भीष्म से भी बात करते हैं। भीष्म कहते हैं कि इस दूत के पीछे मुझे काल सुनाई दे रहा है। भीष्म इस बात को लेकर भी चिंतित हो जाते हैं। 
 
दरबार में द्रुपद के राजपुरोहित दूत बनकर उपस्थित होते हैं और कहते हैं कि प्रण के अनुसार उनका 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास पूर्ण हो गया है और महाराज आज्ञा दें तो वे आकर अपना राजमुकुट भी ले जाएं।... यह सुनकर दुर्योधन भड़क जाता है और कहता है कि जाकर उनसे कह दो कि उनका अज्ञातवास भंग हो गया है और वे पुन: 12 वर्ष के लिए वनवास चले जाएं। धृतराष्ट्र कहते हैं कि इस पर अभी निर्णय होना बाकी है कि अज्ञातवास भंग हुआ या नहीं। द्रोणाचार्य, भीष्म और कृपाचार्य कहते हैं कि अज्ञातवास भंग नहीं हुआ था।
 
 
वहां सभा में कोई निर्णय नहीं हो पाया तो बाद में धृतराष्ट्र अपने दूत के रूप में संजय को भेजते हैं। वे कहते हैं कि तुम जहां हो फिलहाल वहीं रहो। वे संजय को अपनी विवशता बताते हैं। वे दुर्योधन की हठधर्मिता के बारे में भी बताते हैं।
 
युधिष्ठिर के पास संजय पहुंचकर महाराज धृतराष्ट्र की विवशता के बारे में बताते हैं। वहां पर पांडवों के अलावा श्रीकृष्ण भी उपस्थित रहते हैं। संजय युद्ध की आशंका व्यक्त करते हैं। अंत में संजय कहते हैं कि उन्होंने कहा कि आप सब तो धर्मशील हैं, अत: आप जहां हैं वहीं रहें, इसी में भलाई है। 
 
युधिष्ठिर इसके जवाब में कहते हैं कि तब उनसे जाकर कह दें कि मेरा मन तो इंद्रप्रस्थ में ही बसता है। युधिष्ठिर कहते हैं कि ज्येष्ठ पिताश्री से ये अवश्य कह देना कि उनके अनुज युद्ध और शांति दोनों के लिए तैयार हैं। यदि वे युद्ध का आदेश देंगे तो युद्ध होगा।

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