सलाफियों का अड्डा बना बर्लिन
जर्मनी की राजधानी बर्लिन में सात साल के भीतर कट्टरपंथी सलाफियों की संख्या तिगुनी हो गई है। खुद जर्मन प्रशासन मान रहा है कि देश में 300 से ज्यादा खतरनाक लोग मौजूद हैं।
बर्लिन से छपने वाले अखबार डेय टागेसश्पीगेल ने घरेलू खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट छापी है। रिपोर्ट के मुताबिक 2011 में राजधानी बर्लिन में करीब 420 सलाफी थे। अब यह संख्या 950 है। खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक विदेशी मूल के सलाफियों में ज्यादातर रूसी मूल के हैं। इनमें 90 फीसदी पुरुष हैं, जिनकी औसत उम्र 34 साल है। वहीं महिलाओं की औसत उम्र 33 साल है।
सलाफी इस्लाम के बेहद रूढ़िवादी रूप को मानते हैं। वह कुरान और इस्लामिक परंपराओं का बेहद सख्ती से पालन करते हैं। सलाफी महिलाएं अक्सर पूरे शरीर को ढंकने वाला बुर्का पहती हैं। वहीं पुरुष एड़ी को न छूने वाला पैजामा या पतलून पहनते हैं। सलाफियों की बढ़ी संख्या सुरक्षा एजेंसियों को चिंता में डाल रही है। हालांकि सारे सलाफी कट्टर या राजनीतिक रूप से सक्रिय नहीं हैं।
2016 में बर्लिन के क्रिसमस बाजार पर हुए ट्रक हमले के बाद जर्मनी ने आतंकवाद के खिलाफ कई कदम उठाए हैं। इन कदमों में युवाओं को कट्टरपंथी बनने से रोकने के प्रयास भी शामिल थे। ट्रक हमले में 12 लोग मारे गए और 56 घायल हुए थे।
घरेलू खुफिया एजेंसी को शक है कि "फुसीलेट33" के नाम से मशहूर बर्लिन की एक मस्जिद के तार इस्लामिक स्टेट से जुड़े हैं। आशंका है कि यह मस्जिद कट्टरपंथियों की मुलाकात का केंद्र है। क्रिसमस बाजार पर हमला करने वाला अनीस अमरी भी इस मस्जिद में जाता था। प्रशासन के मुताबिक इस वक्त पूरे जर्मनी में ऐसे 300 से ज्यादा कट्टरपंथी हैं, जो देश की जनता की सुरक्षा के लिए खतरा हैं।
ओएसजे/एमजे (डीपीए, ईपीडी)