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Last Modified: सोमवार, 11 जून 2018 (11:33 IST)

जर्मन बच्चे कितने पढ़ाकू, कितने बिंदास

जर्मन बच्चे कितने पढ़ाकू, कितने बिंदास | ‍german children
जर्मनी में एक साल के भीतर कितने बच्चे होते हैं, या बच्चों को कितनी पॉकेट मनी मिलती है, या फिर उन्हें क्या पसंद है, क्या नहीं? चलिए जानते हैं इन्हीं सब सवालों के जवाब।
 
पॉकेट मनी
जर्मनी में छह से नौ साल के बच्चों को साल में औसतन 380 यूरो यानी लगभग तीस हजार रुपये पॉकेट मनी के तौर पर मिलते हैं। इनमें लड़कियों (394 यूरो) को लड़कों (366 यूरो) से थोड़े से ज्यादा पैसे मिलते हैं। ये पैसे बच्चे आम तौर पर खाने पीने पर खर्च करते हैं।
 
पढ़ाकू बच्चे
जर्मनी में लोगों को किताबें पढ़ने का बहुत शौक है। बच्चे भी इस मामले में पीछे नहीं हैं। छह से 11 साल के 54 फीसदी जर्मन बच्चों को आप किताबी कीड़ा कह सकते हैं। यानी ये बच्चे रोजाना एक किताब पढ़ लेते हैं।
 
स्टाइल
चार से 13 साल की उम्र के बीच वाले 58 फीसदी बच्चे खुद तय कर सकते हैं कि उन्हें क्या पहनना है और क्या नहीं। दिलचस्प बात यह है कि भारत समेत कई अन्य देशों की तरह जर्मनी में बच्चों को यूनिफॉर्म पहन कर स्कूल नहीं जाना होता। मतलब है जो पसंद आए, वह पहनो।
 
रिकॉर्ड बच्चे
जर्मनी में 2016 के दौरान 7,92,000 बच्चे पैदा हुए। 1973 के बाद यह पहला मौका है जब जर्मनी में प्रति मां 1।5 बच्चे पैदा हुए हैं। आठ करोड़ से ज्यादा की आबादी के साथ जर्मनी यूरोप में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश है।
 
विदेशी बच्चे
जर्मनी में 2015 के दौरान जन्म लेने वाले हर पांच बच्चों में से एक ऐसा था जिसकी मां के पास किसी अन्य देश की नागरिकता है। इस संख्या में 20 फीसदी की बढ़ोत्तरी की वजह जर्मनी में शरणार्थियों और पूर्व यूरोप से प्रवासियों का आगमन है।
 
राष्ट्रपति के बच्चे
1949 से जर्मनी में 80285 बच्चे ऐसे रहे जिनके मानद अभिभावक जर्मन राष्ट्रपति हैं। जिन माता पिता को सातवां बच्चा होता है, उनके इस बच्चे का अभिभावक जर्मन राष्ट्रपति होता है। इसके तहत एक प्रमाणपत्र और हर महीने 500 यूरो (लगभग चालीस हजार रुपये) मिलते हैं।
 
दूध के दांत
जर्मनी में छह साल की उम्र में बच्चों के दूध के दांत गिरने के बाद नए दांत आते हैं। बच्चों को छोटी उम्र से ही दांतों को साफ करना सिखा दिया जाता है, ताकि उनके दांत चमकते रहें और बीमारियों से बचे रहें।
 
डॉक्टर के पास
वर्ष 2014 में जर्मनी में हादसों या फिर अन्य वजह से चोटिल होने के कारण 17 लाख बच्चों को डॉक्टर के पास जाना पड़ा। इनमें से लगभग दो लाख बच्चे ऐसे थे जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।
 
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