शनि शरीर के इन अंगों पर डालता है प्रभाव, रोक लिया तो नहीं होगा बुरा असर
धरती पर अलग-अलग स्थानों पर ग्रह नक्षत्र अपना अपना प्रभाव डालते हैं जिसके चलते भिन्न-भिन्न प्रकार की प्रजातियां, पेड़-पौधे और खनिजों का जन्म होता है। उसी तरह प्रत्येक ग्रह शरीर पर भी नकारात्मक और सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। यदि आप यह जान लेते हैं कि आपका कौन सा अंग-खराब हो रहा है तो यह भी जान लेंगे कि वह किस ग्रह से प्रभावित होकर ऐसा हो रहा है तो निश्चित ही आप उस ग्रह के उपाय कर पाएंगे। तो आओ जानते हैं कि शनि को मूलत: शरीर के किन अंगों पर खास प्रभाव रहता है और इसके क्या उपाय किए जा सकते हैं।
शनि ग्रह का वैसे तो शरीर की हड्डी, नाभि, फेंफड़े, बाल, आंखें, भवें, कनपटी, नाखून घुटने, जोडो का दर्द, ऐड़ी, स्नायु, आंत और कफ पर अच्छा और बुरा प्रभाव रहता है। लेकिन ज्योतिष के अनुसार खासकर हड्डी और नाभि पर शनि का खास प्रभाव माना गया है।
1.हड्डी : शरीर में यदि हड्डी मजबूत नहीं रहेगी तो फिर कुछ भी सही नहीं रहेगा। हड्डी मजबूत है तो मास मज्जा, स्नायु आदि सभी मजबूत रहेंगे। कैल्शियम और आयरन की कमी के चलते हड्डियां कमजोर होती हैं। हड्डियों को मजबूत करने के लिए एक दिन छोड़कर सरसों का तेल संपूर्ण शरीर पर लगाना चाहिए। थोड़ी बहुत कसररत के साथ ही सुबह सुबह की धूप सेंकना और कैल्शियम एवं आयरन की चीजें खाना चाहिए।
हड्डियों की समस्या प्रत्येक ग्रह के द्वारा होती है। शनि के कारण हड्डियों की समस्या है तो स्नायु तंत्र कमजोर होगा। कई बार शनि के कारण दुर्घटना में हड्डियां टूट जाती हैं तो उसका इलाज लम्बे समय तक चलता है। पक्षाघात के कारण भी यह समस्या हो सकती है। ऐसी दशा में शनिवार शाम को छाया दान करें। हनुमान चालीसा का पाठ करते रहेंगे तो दुर्घटना से बचे रहेंगे।
2.नाभि : नाभि हमारे जीवन का केंद्र है। इस पर शनि का ही प्रभाव रहता है। शनि के बुरे प्रभाव के कारण नाभि के या नाभि से रोग उत्पन्न जाते हैं। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में रोग पहचानने के कई तरीके हैं, उनमें से एक है नाभि स्पंदन से रोग की पहचान। नाभि स्पंदन से यह पता लगाया जा सकता है कि शरीर का कौन-सा अंग खराब हो रहा है या रोगग्रस्त है। नाभि के संचालन और इसकी चिकित्सा के माध्यम से सभी प्रकार के रोग ठीक किए जा सकते हैं।
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार नाभि के आकार प्रकार को देखकर जाना जा सकता है बहुत कुछ। योग शास्त्र में नाभि चक्र को मणिपुर चक्र कहते हैं। नाभि के मूल में स्थित रक्त वर्ण का यह चक्र शरीर के अंतर्गत मणिपुर नामक तीसरा चक्र है, जो 10 दल कमल पंखुरियों से युक्त है। नाभि को ठीक रखने के लिए सूर्य नमस्कार करते रहना चाहिए।
नाभि पर सरसों का तेल लगाने से होंठ मुलायम होते हैं। नाभि पर घी लगाने से पेट की अग्नि शांत होती है और कई प्रकार के रोगों में यह लाभदायक होता है। इससे आंखों और बालों को लाभ मिलता है। शरीर में कंपन, घुटने और जोड़ों के दर्द में भी इससे लाभ मिलता है। इससे चेहरे पर कांति बढ़ती है।