पहले भी वोट डालते रहे हैं बाहरी मतदाता जम्मू कश्मीर में होने वाले संसदीय चुनावों में
जम्मू। बाहरी मतदाताओं को जम्मू कश्मीर की मतदाता सूचियों में शामिल करने की घोषणा को लेकर बवाल मचा हुआ है। सच्चाई यह है कि धारा 370 के हटने से पहले भी ऐसे 32 हजार से अधिक मतदाता सिर्फ संसदीय चुनावों में मतदान करते रहे हैं क्योंकि जम्मू कश्मीर जनप्रतिनिधि कानून 1957 के तहत उन्हें विधानसभा चुनावों में मतदान का अधिकार नहीं था।
अब जबकि चुनाव आयोग ने प्रवासी नागरिकों को प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भी मतदान का अधिकार देने का ऐलान किया है उस पर बवाल मचा हुआ है।
यह अधिकार भारतीय कानूनों के पूरी तरह से जम्मू कश्मीर में लागू कर दिए जाने के बाद प्राप्त होने जा रहा है।
भारतीय जन प्रतिनिधि कानून 1950 और 1951 के तहत कोई भी मतदाता जहां रह रहा हो वहां की वोटर लिस्ट में अपना नाम बतौर वोटर पंजीकृत तो करवा सकता है।
पर उसके लिए उसे यह शर्त पूरी करनी होगी की उसे अपने गृह राज्य में अपना नाम वहां की मतदाता सूचियों से कटवाना होगा।
जम्मू कश्मीर के चीफ इलेक्ट्रोल आफिसर हृदेश कृमार ने भी इस घोषणा पर मचे बवाल को थामने की कोशिश करते हुए कहा है कि यह घोषणा भारत के निवासियों को संविधान में प्राप्त अधिकारों के मुताबिक है और इसके पीछे जम्मू कश्मीर की डेमोग्राफी बदलने का कोई इरादा नहीं है। उनका कहना था कि धारा 370 के पूरी तरह से हट जाने के उपरांत जम्मू कश्मीर जनप्रतिनिधि कानून 1957 भी पूरी तरह से खत्म हो चुका है।
जानकारी के लिए तत्कालीन जम्मू कश्मीर सरकारों ने इसी कानून का सहारा लेकर अतीत में पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणर्थियों को कभी भी जम्मू कश्मीर विधानसभा के चुनावों में मतदान करने का अधिकार नहीं दिया था। वे सिर्फ संसदीय चुनावों मंे ही मतदान करने के योग्य थे।