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Written By Author अपना इंदौर

बख्शी खुमानसिंह का रोजनामचा

बख्शी खुमानसिंह का रोजनामचा - Journal of Bakshi Khuman Singh
होलकरों के इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए बख्शी खुमानसिंह का नाम अपरिचित नहीं। आधुनिक इंदौर की कल्पना संजोने वाले तुकोजीराव द्वितीय की गद्दीनशीनी का उल्लेख बख्शी खुमानसिंह के रोजनामचे में ही मिलता है। कब, कहां, कितनी बजे यह समारोह हुआ, कौन उसमें उपस्थित थे, इन सबका विवरण इसमें है। रोजनामचे के उस पृष्ठ का चित्र साक्षी है राजबाड़े में हुए उस समारोह का। इसकी भाषा आज अटपटी लग सकती है, पर तब का विवरण तो इसी में है ही। वे लिखते हैं-
 
आज दीन (दिन) आषत्यारी (अखत्यारी) का सो पीछली च्यार (चार) घड़ी रात है से दरबार चोकम तयार मंडप लगवाकर, करवाया दरकदार, कमावीसदार, आफसर, रीसाले और पलटन के और हुजरात आली गोल वगैरे के हाजर हुवे और रावजी सुबे बराहानपुर बापु भगवंत अजुन वाला दीवान नाहारसोंघ मैं तमाम रांगडों के और सवकार (साहूकार) इंदौर और वकील रीयासत धार, देवास, रतलाम, सैलाना और जावरे (जावरा) वगैरे हाजर व मुजब नकशे (नक्शे) के बैठे थे।
 
बाद इसके सुरज नीकलते श्रीमंत महाराज साहाब गादी पर आनकर रोनक आफरोज हुवे अुस (उस) वक्त दीवान साहाब दाजी साहाब षासगी (खासगी) वाले माफीक मामुल के पेशवाई को गए बड़े साहाब और येनसन साहाब और ईउण साहाब और साहाब महपुर सीहोर और मअु (मऊ) मंडलेसर (मंडलेश्वर) वगैरे गीरदनवाहा के जुमले येकीस (इक्कीस) और सात अफसर हीदुस्थानी (हिंदुस्तानी) रसाले का टीप जेठव भील पलटन के कचेरी में दो घड़ी दीन (दिन) चढ़े दाषील (दाखिल) हुवे।
 
जीस वक्त बड़े साहाब आए सरकार वास्ते पेशवाई के लबे (लंबे) फरशयाणे बीछायत के कीनारे (किनारे) तक तशरीफ ले गए और हात (हाथ) में हात (हाथ) मीलाकर गादी पर आनकर बैठे बड़े साहाब दाहीनी (दाहिनी) तरफ और दीवान नाहारसींघ गाशिये पर बाईं तरफ अलाहीदा और सब साहाब लौकमै (लोगों में) अुनके आमले और आफसर बांई तरफ औऱ सरकारी अहलकार आफसर वगैरे सब दाहीनी तरफ बैठे बाद येक (एक) शायत के षरीता (खरीता) आषत्यारी (अखत्यारी) का जनाब गवरनर जनरल की तरफ से आया था।
 
साहाब बाहादुर ने हुजुर को दीया हुजुर ने दीवान साहाब को दीया दीवान साहाब ने मुनशी आसद बेग को दीया और पढ़ने का हुकम दीया मुनशी आसद बेग ने आवाज बुलंद से षरीते को पढ़ा अुस (उस) वक्त येकीस (इक्कीस) फैर (फायर) सलामी के ताप सरकारी से चले बाद ईसके साहाबे रेजीडे (रेजिडेंट) ने कहा के आरसा आठ बरस का हुआ के हम बंदोबस्त रीयासत का दीवानजी और गोपाल राव बाबा के सलाह से वषुवी (बखुबी) रषावल (रखाबल) के जो आदमीके याहा (यहां) से नीकाले (निकाले) गये थे वो आनकर आबाद हुवे और कीतने (कितने) सरकार में नौकर भी हुवे और रयत (रैयत) बगैरे सब षुस (खुश) रहे।
 
आब आप के माहाराजे साहाब को आषत्यार (अखत्यार) हुआ है और सब बंदो (बस्त) वैसा ही रष (रख) ना चाहीये और मुलाजमान कंदीम पर और रयत पर नजर मेहरबानगी की चाहीये और सरदारों ने मुलाजमीनों को भी चाहीये के आपने (अपने) मालीकी (मालिक की) ताबे दारी में ईमान और येतबार (एतबार) से ब (व) दीलोजान मशरुफ रहे अुस में सबकी बेहेतरी है कीस (किस) वास्ते रीयासत से सबका भला है दरजवाब ईसके श्रीमंत महाराजे साहब ने फरमाया के य (ये) तमाम काम के हुआ है।
 
आपके इंतीजाम और तजवीज से हुआ है और कदीम से ईस सरकार और सरकार आगरेजी में दोस्ती वोहत (बहुत) चली आती है सो अुस्से (उससे) ज्यादे रषना (रखना) चाहीये और आब (अब) भी जो कुछके काम रीयासत का होगा आपकी और लाट साहाब के तजवीज से होगा और हमेशा दोनों सरकार की दोस्ती ज्यारी (जारी) रहेगी बाद ईसके षीलत (खिल्लत) वगैरे तोफा लाट साहाब की तरफ से आया था सो हुजुर में गुजरा अुस (उस) वक्त येकीस (इक्कीस) फैर (फायर) सलामी की अुनकी (उनकी) तरफ से काटीणजेंट (कांटीजेंट) महतपुर (महिदपुर) के कंपु से तोफषाना (तोपखाना) जो के बाड़े पर आया था हुवे तफसीले तोफा लाटसाहाब का जो सरकार में आया अुसकी यह है।
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