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शिवाजी जयंती तिथि से 22 अप्रैल को, जानिए कहानी वीर शिवाजी की

शिवाजी जयंती तिथि से 22 अप्रैल को, जानिए कहानी वीर शिवाजी की - Shivaji Jayanti 2023
shivaji maharaj 
 
वर्ष 2023 में तिथि के अनुसार 22 अप्रैल, शनिवार को शिवाजी जयंती मनाई जा रही है। छत्रपति शिवाजी महाराज (Biography of Chhatrapati Shivaji Maharaj) बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे बहादुर, बुद्धिमानी, शौर्यवीर और दयालु शासक थे। उनको भारत के शूरवीरों में गिना जाता है। शिवाजी जयंती को महाराष्ट्र का एक त्योहार माना जाता है तथा इस दिन सार्वजनिक अवकाश रहता है। वे एक भारतीय शासक थे जिन्होंने मराठा साम्राज्य खड़ा किया था इसीलिए उन्हें एक अग्रगण्य वीर एवं अमर स्वतंत्रता-सेनानी स्वीकार किया जाता है।
 
शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1627 को मराठा परिवार में शिवनेरी (महाराष्ट्र) में हुआ। शिवाजी के पिता शाहजी और माता जीजाबाई थीं। उन्होंने भारत में एक सार्वभौम स्वतंत्र शासन स्थापित करने का प्रयत्न स्वतंत्रता के अनन्य पुजारी वीर प्रवर शिवाजी ने भी किया था। 
 
माता जीजाबाई धार्मिक स्वभाव वाली होते हुए भी गुण-स्वभाव और व्यवहार में वीरंगना नारी थीं। इसी कारण उन्होंने बालक शिवा का पालन-पोषण रामायण, महाभारत तथा अन्य भारतीय वीरात्माओं की उज्ज्वल कहानियां सुना और शिक्षा देकर किया था। दादा कोणदेव के संरक्षण में उन्हें सभी तरह की सामयिक युद्ध आदि विधाओं में भी निपुण बनाया था। धर्म, संस्कृति और राजनीति की भी उचित शिक्षा दिलवाई थी। उस युग में परम संत रामदेव के संपर्क में आने से शिवाजी पूर्णतया राष्ट्रप्रेमी, कर्त्तव्यपरायण एवं कर्मठ योद्धा बन गए।
 
बचपन में शिवाजी अपनी आयु के बालक इकट्ठे कर उनके नेता बनकर युद्ध करने और किले जीतने का खेल खेला करते थे। युवावस्था में आते ही उनका खेल वास्तविक कर्म शत्रु बनकर शत्रुओं पर आक्रमण कर उनके किले आदि भी जीतने लगे। 
 
जैसे ही शिवाजी ने पुरंदर और तोरण जैसे किलों पर अपना अधिकार जमाया, वैसे ही उनके नाम और कर्म की सारे दक्षिण में धूम मच गई, यह खबर आग की तरह आगरा और दिल्ली तक जा पहुंची। अत्याचारी किस्म के यवन और उनके सहायक सभी शासक उनका नाम सुनकर ही मारे डर के बगलें झांकने लगे।
 
यूं तो शिवाजी पर मुस्लिम विरोधी होने का दोषारोपण किया जाता है, पर यह सत्य इसलिए नहीं कि उनकी सेना में तो अनेक मुस्लिम नायक एवं सेनानी थे तथा अनेक मुस्लिम सरदार और सूबेदारों जैसे लोग भी थे। वास्तव में शिवाजी का सारा संघर्ष उस कट्टरता और उद्दंडता के विरुद्ध था, जिसे औरंगजेब जैसे शासकों और उसकी छत्रछाया में पलने वाले लोगों ने अपना रखा था। 
 
शिवाजी के बढ़ते प्रताप से आतंकित बीजापुर के शासक आदिलशाह जब शिवाजी को बंदी न बना सके तो उन्होंने शिवाजी के पिता शाहजी को गिरफ्तार किया। पता चलने पर शिवाजी आग बबूला हो गए। उन्होंने नीति और साहस का सहारा लेकर छापामारी कर जल्द ही अपने पिता को इस कैद से आजाद कराया।
 
तब बीजापुर के शासक ने शिवाजी को जीवित अथवा मुर्दा पकड़ लाने का आदेश देकर अपने मक्कार सेनापति अफजल खां को भेजा। उसने भाईचारे व सुलह का झूठा नाटक रचकर शिवाजी को अपनी बांहों के घेरे में लेकर मारना चाहा, पर समझदार शिवाजी के हाथ में छिपे बघनख का शिकार होकर वह स्वयं मारा गया। 
 
इससे उसकी सेनाएं अपने सेनापति को मरा पाकर वहां से दुम दबाकर भाग गईं। उनकी इस वीरता के कारण ही उन्हें एक आदर्श एवं महान राष्ट्रपुरुष के रूप में स्वीकारा जाता है। शिवाजी महाराज (Shivaji Maharaj) राष्ट्रीयता के जीवंत प्रतीक एवं परिचायक थे। इसी कारण राष्ट्रपुरुषों में उनकी भी गणना की जाती है। 3 अप्रैल 1680 ई. में तीन सप्ताह की बीमारी के बाद रायगढ़ में छत्रपति शिवाजी महाराज का निधन हो गया था। 

उनके सम्मान में लिखी गईं यह पंक्तियां इस बात को सिद्ध करती हैं-
'गजपती भूपती प्रजापती सुवर्णरत्नंश्रीपती अष्टावधानजागृत अष्टप्रधान वेष्टीत न्यायालंकार मंडीत शस्त्रास्त्रशांस्त्र पारंगत राजश्रियाविराजीत सकळकुळमंडित राजनीती धुरंधर!! प्रौढप्रताप पुरंदर क्षत्रीयकुलावतंस सिंहासनाधीश्वर महाराजाधिराज शिवछत्रपती महाराज की जय..!!'