कहते हैं कि 'रामप्रसाद' जैसा दूसरा हाथी नहीं था पूरे राजपुताना में, न उसके स्वामी झुके और न वो
Maharana pratap jayanti 2023: महाराणा प्रताप में कुछ तो खास था कि लोग और जानवर दोनों ही उन्हें प्यार करते थे और उनके लिए हमेशा जान देने को तत्पर रहते थे। चाहे चेतक नाम का घोड़ा हो या रामप्रसाद नाम का हाथी। महाराणा प्रताप के पास एक स्वामी भक्त हाथी था, जिसका नाम रामप्रसाद था। रामप्रसाद के बारे में अल बदायूंनी ने अपनी किताब में लिखा है। रामप्रसाद एक होशियार, ताकतवर और स्वामी भक्त हाथी था जो महाराणा की सेना में हाथियों की रेजीमेंट में शामिल था।
हल्दीघाटी के युद्ध में रामप्रसाद ने मुगल सेना के कई हाथी मार गिराए थे जिसके चलते मुगल सेना में उसके खिलाफ डर फैल गया था। इसके बाद मुगल कमांडर ने रामप्रसाद को बंदी बनाने का आदेश दिया। मुगल सेना ने उसे पकड़ने के लिए 7 सबसे ताकतवर हाथियों का एक चक्रव्यूह बनाया जिन्होंने रामप्रसाद को चारों ओर से घेर लिया और तब कहीं जाकर वो उसे पकड़ पाए थे।
रामप्रसाद को अकबर के सामने पेश किया गया और उसने तुरन्त उसका नाम बदलकर पीर प्रसाद कर दिया। इसके बाद उसे अपनी सेना में शामिल करने के लिए सैनिकों के हवाले करके रामप्रसाद का खयाल रखने को कहा। लेकिन रामप्रसाद अपने स्वामी से बिछड़ जाने के कारण बहुत दु:खी हो गया था। सैनिक उसके लिए खाने को गन्ने और केला लाते थे, लेकिन एक स्वामी भक्त के लिए इन चीजों का क्या मोल?
एक हाथी भी जानता था कि वो अब स्वतंत्र नहीं, कैदी है और अपने स्वामी से दूर है। सैनिकों ने रामप्रसाद को खिलाने का बहुत प्रयास किया परंतु उसने 18 दिन तक कुछ भी नहीं खाया और अंतत: भूख से उसने अपनी जान दे दी। वहीं, उसके स्वामी महाराणा ने जंगल में घास की रोटी खाकर संघर्ष जारी रखा लेकिन दोनों ही झुके नहीं क्योंकि गुलामी उन दोनों को ही स्वीकार नहीं थी।
कहते हैं कि रामप्रसाद हाथी के पंचतत्व में विलीन होने पर अकबर ने कहा था कि 'जिसके हाथी को मैं अपने आगे झुका नहीं पाया उसे मैं कैसे झुका पाऊंगा।''