-बिनोद यानी ये समाज सब देख-समझ रहा है।
-जो सवाल सत्ता से पूछे जाने चाहिए, वो सवाल विपक्ष से पूछे जा रहे हैं।
इंदौर। इंदौर के रवीन्द्र नाट्यगृह में शुक्रवार को 'भारतीय पत्रकारिता महोत्सव' का आगाज हुआ। 3 दिनों तक चलने वाले इस आयोजन में देश के कई पत्रकारों और संपादकों ने भाग लिया। पहले दिन पहले सत्र में 'मीडिया और समाज, दरकता विश्वास' विषय पर विमर्श हुआ। सभी पत्रकारों ने अपनी अपनी बात की।
'मीडिया और समाज, दरकता विश्वास' विषय पर बोलते हुए न्यूज 18 हैदराबाद की एंकर सना परवीन ने कहा कि आज पत्रकारिता पैशन से फैशन की तरफ बढ़ रही है। अफवाहभरी खबरों ने आग भी लगाई तो समाज में तनाव भी फैलाया। हालांकि अच्छी खबरों ने समाज में अपनी जगह भी बनाई। लेकिन ये चिंतन का विषय है कि बावजूद सारे प्रयासों के, जनता का मीडिया के प्रति विश्वास दरकने लगा है। पत्रकार अब लेफ्ट और राइट वाले हैं। लेकिन ये बिनोद यानी जनता सब समझ रही और देख रही है। जो सवाल सत्ता से होना चाहिए, वो विपक्ष से हो रहे हैं। जनता के मुद्दे कहीं नजर नहीं आ रहे हैं।
-पैशन नहीं फैशन हो गई पत्रकारिता
सना परवीन ने आगे कहा कि तकनीकी विकास में मीडिया लोगों के बहुत करीब आ गई है, लेकिन फिर भी विश्वास में कमी आई है। महिला पत्रकारों को फील्ड में स्पेस नहीं मिल रहा है, लेकिन जेंडर के नाम पर महिलाओं को आंका जाना सही नहीं है। महिलाओं को सहानुभूति की नजर से देखा जा रहा है, हालांकि महिलाओं की भी इसमें गलती है।
-90 प्रतिशत बच्चों को वित्तमंत्री का नाम नहीं पता
यूएनआई के एडिटर सचिन बाडोलिया ने कहा कि पिछले दिनों मैं एक आयोजन में गया तो 50 प्रतिशत बच्चों को राष्ट्रपति का नाम ही नहीं पता था और 90 प्रतिशत बच्चों को वित्तमंत्री का नाम नहीं पता था। ऐसी पीढ़ी अगर पत्रकारिता में आएगी तो क्या होगा? आजकल माइक मिल जाता है तो वे समझते हैं कि पत्रकार बन गए। हाल ही में हमने देखा कि एक माफिया को जब साबरमती से प्रयागराज लाया गया तो कैसी रिपोर्टिंग की गई, ये सारे देश ने देखा। टीआरपी नाम की चीज ने सबकुछ गड़बड़ा दिया है, यह चिंता और चिंतन का विषय है।
-हमारी पत्रकारिता की रैंकिंग गिर रही है
पत्रकार हृदय दीक्षित ने कहा कि अगर आज पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर बात हो रही है तो यह सुधार हमसे ही शुरू करना होगा, क्योंकि इसे इस स्तर तक लाए भी हम ही हैं। हमारी विश्वसनीयता पर जो सवाल उठ रहे हैं, उसके लिए हमें बहुत तेजी से काम करना होगा। हाल ही में एक रिपोर्ट आई है जिसमें भारत 8वें स्थान से गिरकर 150वें पायदान पर आ गया है। इसे लेकर अब सोचा जाना चाहिए।
-पत्रकारिता : पहले इस्तेमाल करो, फिर विश्वास करो
नई दिल्ली से आए कुमार राकेश ने कहा कि मध्यप्रदेश पत्रकारिता में दबंग है। मैंने प्रभाष जोशी को काम करते हुए देखा। यहां से राहुल बारपुते की पत्रकारिता की एक नई धारा निकली है, लेकिन फिर भी आज पत्रकारिता पर शक किया जा रहा है। आज पत्रकारिता की हालत यह हो गई है कि पहले 'इस्तेमाल करो फिर विश्वास करो।'
-धन के लिए हो रही पत्रकारिता
राष्ट्रवादी विचारक रमेश शर्मा ने कहा कि नेहरूजी ने अखबार निकाला, तिलक ने अखबार निकाला, गांधीजी ने अखबार निकाला, तब यह मिशन था। लेकिन अब जब मीडिया का मिशन पैसा होगा तो फिर विश्वास तो डगमगाएगा ही। महानायक की छवि मीडिया ने गढ़ी। क्या नाचने वाला, कमर मटकाने वाला व्यक्ति इस देश का महानायक हो सकता है?
-मीडिया में कई चुनौतियां हैं
पत्रकार उपेन्द्र राय ने कहा कि मीडिया में कई चुनौतियां हैं। मैं खुद एक मीडिया हाउस का संचालन करता हूं इसलिए जानता हूं कि अर्थ कितना जरूरी है। लोगों की सैलरी कहां से आएगी, उनका घर कहां से चलेगा? लेकिन जहां तक मीडिया की विश्वसनीयता की बात है तो यह व्यवसाय का युग है और दोष सिर्फ मीडिया को ही क्यों दिया जाए? दूसरे क्षेत्रों में भी तो व्यवसाय करने की प्रवृत्ति बढ़ी है। आज आम आदमी जितना ताकतवर हुआ है, मजबूत हुआ है, वो मीडिया की वजह से ही हुआ है। इसी वजह से अखबार और टेलीविजन भी जिंदा रहेगा।
-हम अपने गिरेबान में झांक तो रहे हैं
वरिष्ठ पत्रकार जयशंकर ने कहा कि एक मीडिया ही है, जो अपने गिरेबान में झांककर देख रहा है कि हमारा कितना पतन हुआ? क्या ज्युडिसरी यह पतन देख रहा है? क्या वकील लोग देखते हैं अपनी गिरेबान में झांककर? क्या नेता देखते हैं कभी कि राजनीति में कितना पतन हुआ है? कम से कम हम पत्रकार यह विमर्श तो कर रहे हैं।
Edited by: Ravindra Gupta