संत प्रेमानंद महाराज के बारे में 10 खास बातें, जानें क्या है असली नाम
संत प्रेमानंद महाराज का जीवन परिचय
Sant premanand ji maharaj : संत श्री हरि प्रेमानंद महाराज जो बहुत निर्मल और सरल स्वभाव के संत हैं। वे वृंदावन में ही रहते हैं और उनके भजन एवं सत्संग को सुनने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं। उनके दर्शन करने के लिए भी कई बड़े लोग आते रहते हैं। वर्तमान में संतों में उन्हें श्रेष्ठ माना जाता है। आओ जानते हैं इस निर्मल हृदय संत के बारे में 10 खास बातें।
1. परिवार : प्रेमानंद जी महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर में सरसौल के अखरी गांव में हुआ था। प्रेमानंद जी के बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे हैं। इनके पिता का नाम श्री शंभू पांडे और माता का नाम श्रीमती रामा देवी है।
2. दीक्षा : 13 वर्ष की उम्र से ही वे दीक्षा लेकर संत बने हुए हैं। प्रेमानंद जी महाराज का नाम आरयन ब्रह्मचारी रखा गया। उनके दादाजी भी संन्यासी थे।
3. बड़े बड़े लोग हैं इनके भक्त : विराट कोहली और अनुष्का शर्मा, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत सहित सभी धर्मों के संत और गुरु भी उनके दर्शन करने के लिए उनके धाम पहुंचे हैं। महाराज प्रेमानंद जी के दर्शन करने के लिए उनके भक्त देश-विदेश से वृंदावन आते हैं।
4. श्री राधावल्लभी संप्रदाय : प्रेमानंदजी महाराज ने श्री राधा राधावल्लभी संप्रदाय में दीक्षा ली है। वृंदावन आने से पूर्व ये ज्ञानमार्गी संन्यासी थे लेकिन बाद में श्रीकृष्ण लीला देखकर इनका हृदय परिवर्तन हुआ और वे भक्ति मार्गी के बन गए।
5. गुरु : प्रेमानंद जी के गुरु संत श्रीहित गौरांगी शरण महाराज हैं जिन्होंने प्रेमानंदजी को भक्ति का पाठ पढ़ाया। प्रेमानंद महाराज पहली बार जब मथुरा आए तो उन्हें महसूस हुआ कि यही उनकी जगह है। वे रोज बिहरी जी के मंदिर में जाने लगे। वहीं से उन्हें भक्ति मार्ग मिला। फिर जब प्रेमानंदजी वृंदावन के राधावल्लभ मंदिर गए तो वहां उनकी मुलाकात तिलकायत अधिकारी मोहित मराल गोस्वामी से हुई। गोस्वामी ने उन्हें गौरांगी शरण महाराज के पास भेजा। गौरांगी महाराज से मिलकर प्रेमानंदजी का जीवन बदल गया। यहीं प्रेमानंदजी महाराज ने श्री राधा राधावल्लभी संप्रदाय में दीक्षा ली।
6. भूखे रहे : प्रेमानंदजी महाराज अपने संन्यासी जीवन के शुरुआती दिनों में कई दिनों तक भूखे रहें। घर त्यागकर वाराणसी आ गए थे। वहां गंगा में प्रतिदिन 3 बार स्नान करते और तुलसी घाट पर पूजन करते। भोजन प्राप्ति की इच्छा से प्रतिदिन 10-15 मिनट बैठते थे। यदि इतने समय में किसी ने भोजन दिया तो ठीक अन्यथा सिर्फ गंगाजल पीकर रह जाते थे।
7. वृंदावन में हैं उनका आश्रम : फिलहाल प्रेमानंदजी महाराज श्रीहित राधा केली कुंज आश्रम में रह रहे हैं। उन्होंने अपना जीवन राधा रानी की भक्ति सेवा के लिए समर्पित कर दिया है।
8. भक्तों की श्रृद्धा : प्रेमानंद महाराज रात्रिकाल में करीब 3 बजे छटीकरा रोड पर मौजूद श्री कृष्ण शरणम् सोसाइटी से रमणरेती क्षेत्र स्थित अपने आश्रम श्री हित राधा केलि कुंज जाते थे। करीब 2 किलोमीटर की इस पदयात्रा के दौरान महाराज की झलक पाने के लिए हजारों की तादाद में लोग सड़कों पर उमड़ पड़ते थे, परंतु स्वास्थ कारणों से यह क्रम रुक गया है। वे रोज वृंदावन की परिक्रमा करते थे, लेकिन अब नहीं करते हैं।
9. किडनी है खराब : प्रेमानंदजी महाराज की दोनों किडनी कई सालों काम करना बंद कर दिया है। वो पूरे दिन डायलिसिस पर रहते हैं। इसके बावजूद वे रोज प्रवचन देते हैं और अपने सभी नित्य कर्म भी करते हैं। कई भक्त उन्हें किडनी डोनेट करना चाहते हैं परंतु उन्होंने मना कर दिया है। उन्होंने अपनी एक किडनी का नाम राधा और दूसरी का नाम कृष्ण रख लिया है।
10. जप की महीमा : प्रेमानंदजी महाराज का मानना है कि कलयुग में श्रीहरि की भक्ति ही हमें तार सकती है और कोई मार्ग या उपाय नहीं है। इसलिए रोज जप करेंगे तो सभी तरह के संकट मिट जाएंगे।