Leh Ladakh Protest: कैसे काम करता है सोनम वांगचुक का आइस स्तूप प्रोजेक्ट जिसने किया लद्दाख के जल संकट का समाधान
How ice stupas project works: लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर शुरू हुआ आंदोलन हिंसा में बदल गया। गृह मंत्रालय ने लेह में हिंसा के लिए सोनम वांगचुक जिम्मेदार ठहराया लेकिन उन्होंने इन आरोपों को खारिज कर दिया है। इसके बाद उनके NGO की विदेशी फंडिंग का लाइसेंस रद्द कर दिया गया है। सोनम वांगचुक एक समाज सुधारक होने के साथ पर्यावरणविद और बदलाव लाने वाले इंजीनियर के रूप में जाने जाते हैं। सोनम तब भी चर्चा में आए थे जब उन्होंने आइस स्तूप प्राेजेक्ट को पेश किया था। इस प्राेजेक्ट की कई देशों में काफी चर्चा हुई थी।
क्या है आइस स्तूप प्रोजेक्ट: आइस स्तूप एक कृत्रिम ग्लेशियर है, जिसे शंक्वाकार (cone-shaped) या स्तूप के आकार में बनाया जाता है। यह आकार इसलिए चुना गया है क्योंकि यह सूर्य की रोशनी को कम से कम अवशोषित करता है, जिससे बर्फ लंबे समय तक पिघलने से बची रहती है। इस प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य सर्दियों के दौरान बहने वाले नदी के पानी को बर्फ के रूप में संग्रहित करना और गर्मियों में, जब पानी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, उसे धीरे-धीरे पिघलाकर उपलब्ध कराना है। लद्दाख की शुष्क और ठंडी जलवायु में पानी की कमी एक गंभीर समस्या है। सर्दियों में भरपूर बर्फबारी होती है, लेकिन यह बर्फ मार्च-अप्रैल तक पिघल जाती है, जब किसानों को अपनी फसलों के लिए सबसे ज्यादा पानी की जरूरत होती है।
किस सिद्धांत पर काम करता है: यह प्रोजेक्ट बहुत ही सरल लेकिन वैज्ञानिक सिद्धांत पर काम करता है। लद्दाख में सर्दियों के दौरान तापमान −20∘C तक गिर जाता है। इस समय में, नदी के पानी को एक पाइपलाइन के माध्यम से उंचाई से नीचे लाया जाता है। चूंकि पाइप का एक सिरा उंचाई पर होता है, गुरुत्वाकर्षण के कारण पानी को बिना किसी पंप या मशीनरी के नीचे की ओर एक स्प्रे की तरह छोड़ा जाता है। जैसे ही पानी हवा के संपर्क में आता है, वह अत्यधिक ठंडे तापमान के कारण तुरंत बर्फ में बदल जाता है और धीरे-धीरे एक विशाल स्तूप का आकार ले लेता है।
पानी की कमी कैसे दूर होती है: लद्दाख में सर्दियों में पानी बेकार बह जाता है, जबकि गर्मियों में इसकी कमी हो जाती है। सर्दियों में बनने वाले ये कृत्रिम ग्लेशियर, पानी को तब तक सुरक्षित रखते हैं जब तक उसकी जरूरत न हो। जब अप्रैल-मई में तापमान बढ़ने लगता है, तो ये आइस स्तूप धीरे-धीरे पिघलते हैं और खेतों में सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध कराते हैं। एक आइस स्तूप लगभग 100 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी प्रदान कर सकता है, जिससे फसलों की पैदावार में सुधार होता है और किसानों की आजीविका बेहतर होती है।
स्तूप के आकार के पीछे का कारण: सोनम वांगचुक के अनुसार, आइस स्तूप का पिरामिड या शंक्वाकार आकार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस आकार में, बर्फ की सतह का क्षेत्र कम होता है। कम सतह क्षेत्र होने के कारण, सूरज की रोशनी कम पड़ती है और बर्फ के पिघलने की दर धीमी हो जाती है। इसके अलावा, यह आकार गुरुत्वाकर्षण का उपयोग करके पानी को नीचे लाने में भी मदद करता है, जिससे ऊर्जा की कोई खपत नहीं होती।