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Last Modified: गुरुवार, 2 मार्च 2023 (14:20 IST)

द्वारिका, बरसाना, मथुरा या वृंदावन में से कहां होली पर जाना है बेहतर?

द्वारिका, बरसाना, मथुरा या वृंदावन में से कहां होली पर जाना है बेहतर? - Holi of Vrindavan
बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में होली को फगुआ, फाग और लठमार होली कहते हैं। खासकर मथुरा, नंदगांव, गोकुल, वृंदावन और बरसाना में इसकी धूम होती है। यहां गुलाल के रंगों के साथ ही महिलाएं और पुरुषों के बीच लठमार प्रतियोगिता होती है। फाग उत्सव की धूम के बीच ही लोग एक दूसरे पर जमकर रंग डालते हैं।
 
ब्रज मंडल में बरसान और वृंदावन की होली ही सबसे ज्यादा रोचक और प्रसिद्ध है। यहां की होली देखने लायक होती है। इसमें भी यदि आपको होली के उत्सव में आध्यात्मिक अनुभूमि चाहते हैं तो वृंदावन जरूर जाएं। यहां पर देश विदेश के लाखों लोग एकत्रित होकर श्रीबांकेबिहारी के मंदिर और आसपास के क्षेत्रों में होली खेलते हैं।
 
1. वृंदावन : रंगभरी एकादशी के बाद श्रीबांकेबिहारी धाम में परंपरागत रूप से होली उत्सव शुरू हो जाता है। चारों तरफ केसर टेसू के फूलों से केसर रंग की धूम नजर आती है और वातावरण सुगंधित हो जाता है। मंदिर में टेसू के रंगों के साथ-साथ चोवा, चंदन और गुलाल के साथ होली खेली जाती है। बांकेबिहारी के दर्शन के लिए दूरदराज से लोग आते है और यहां अबीर-गुलाल की मस्ती से सराबोर हो जाते हैं।
 
वृंदावन की गलियों में होली रास और रंग की तैयारी 1 महीने पहले से प्रारंभ हो जाती है। देश-विदेश के पर्यटक होली पर बांकेबिहारी की नगरी में पहुंच जाते हैं और होली की मस्ती उनके कण-कण में नजर आती है।
Different types of Holi Celebrations
2. बरसाना : पूरे विश्वभर में मशहूर बरसाना की लठमार होली में (हुरियारिनें) महिलाएं, पुरुषों (हुरियारों) के पीछे अपनी लाठी लेकर भागती हैं और लाठी से मारती हैं। हुरियारे खुद को ढाल से बचाते हैं। इस लठमार होली को दुनियाभर से लोग देखने को आते हैं। यह होली राधारानी के गांव बरसाने और श्रीकृष्ण जी के गांव नंदगांव के लोगों के बीच में होती है। बरसाने और नंदगांव के बीच लठमार होली की परंपरा सदियों से चली आ रही है। होली का ऐसा रोमांचक उत्सव देखते ही बनता है।
 
यहां होली की शुरुआत वसंत पंचमी से प्रारंभ हो जाती है। इसी दिन होली का डांडा गढ़ जाता है। महाशिवरात्रि के दिन श्रीजी मंदिर में राधारानी को 56 भोग का प्रसाद लगता है। अष्टमी के दिन नंदगांव व बरसाने का एक-एक व्यक्ति गांव जाकर होली खेलने का निमंत्रण देता है। नवमी के दिन जोरदार तरीके से होली की हुड़दंग मचती है। नंदगांव के पुरुष नाचते-गाते छह किलोमीटर दूर बरसाने पहुंचते हैं। इनका पहला पड़ाव पीली पोखर पर होता है।
 
इसके बाद सभी राधारानी मंदिर के दर्शन करने के बाद लट्ठमार होली खेलने के लिए रंगीली गली चौक में जमा होते हैं। इस दिन कृष्ण के गांव नंदगांव के पुरुष बरसाने में स्थित राधा के मंदिर पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं लेकिन बरसाने की महिलाएं एकजुट होकर उन्हें लट्ठ से खदेड़ने का प्रयास करती हैं। इस दौरान पुरुषों को किसी भी प्रकार के प्रतिरोध की आज्ञा नहीं होती। वे महिलाओं पर केवल गुलाल छिड़ककर उन्हें चकमा देकर झंडा फहराने का प्रयास करते हैं। अगर वे पकड़े जाते हैं तो उनकी जमकर पिटाई होती है और उन्हें महिलाओं के कपड़े पहनाकर श्रृंगार इत्यादि करके सामूहिक रूप से नचाया जाता है।
 
दशमी के दिन इसी प्रकार की होली नंदगांव में होती है। वहीं लट्ठमार होली। राधा-कृष्ण के वार्तालाप पर आधारित बरसाने में इसी दिन होली खेलने के साथ-साथ वहां का लोकगीत 'होरी' गाया जाता है। इस दिन लोग एक-दूसरे से गले मिलते हैं। मिठाइयां बांटते हैं। भांग का सेवन करते हैं। इस दिन प्रत्येक व्यक्ति रंगों से सराबोर हो जाता है।
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