सिंधु स्मृति दिवस क्यों मनाया जाता है?
Sindhu Smriti Diwas 2024: 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाया जाता है। इसी दिन सिंधु स्मृति दिवस भी मनाया जाता है। भारत विभाजन के समय बंगाल और पंजाब का विभाजन हुआ जहां पर हिंदु बहुमत में रहते थे जबकि सिंध प्रांत को तो पूर्ण रूप से पाकिस्तान का हिस्सा ही बना दिया गया जो कि सिंध देश था। इसी विभीषिका के कारण भारत में रह रहे सिंध प्रांत के हिंदू सिंधु स्मृति दिवस मनाते हैं। इसे मनाने का एक कारण यह भी है ताकि आने वाली पीढ़ियां अपने इतिहास को याद रख सकें।
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सिंधु देश : महाभारत में राजा जयद्रथ का उल्लेख मिलता है जो धृतराष्ट्र की पुत्री दुःश्शाला का पति था। यह राजा जयद्रथ सिंधु नरेश था। इसका वध अर्जुन ने बहुत ही कठिन परिस्थितियों में किया था। वर्तमान में सिंधु देश पाकिस्तान के सिंध प्रांत को कहते हैं। कराची के आसपास के सभी क्षेत्र सिंधु देश के अंतर्गत आते हैं। सिंधु देश का तात्पर्य प्राचीन सिन्धु सभ्यता से है। यह स्थान न केवल अपनी कला और साहित्य के लिए विख्यात था, बल्कि वाणिज्य और व्यापार में भी यह अग्रणी था। वर्तमान में पाकिस्तान के सिंध प्रांत को प्राचीनकाल में सिंधु देश कहा जाता था। रघुवंश में सिंध नामक देश का रामचंद्रजी द्वारा भरत को दिए जाने का उल्लेख है। युनान के लेखकों ने अलक्षेंद्र के भारत-आक्रमण के संबंध में सिंधु-देश के नगरों का उल्लेख किया है। मोहनजोदाड़ो और हड़प्पा सिंधु देश के दो बड़े नगर थे। राजा दाहिर की मौत के बाद यहां पर मुस्लिम आक्रांतानों ने कब्जा कर लिया इसके बाद से ही सिंध प्रांत के हिंदुओं के बुरे दिन प्रारंभ हो गए।
सिंधु नदी और प्रांत : भारत का विभाजन हुआ और संपूर्ण सिन्धु नदी पाकिस्तान को मिल गई और उससे जुड़ी संपूर्ण संस्कृति और धर्म को अब नष्ट कर दिया गया है। सिन्धु के बिना हिन्दू वैसे ही है, जैसे प्राण के बिना शरीर, अर्थ के बिना शब्द हैं। गंगा से पहले हिन्दू संस्कृति में सिन्धु और सरस्वती की ही महिमा थी। सिन्धु से ही हिन्दुओं का इतिहास है। सिन्धु का अर्थ जलराशि होता है। सिन्धु नदी का भारत और हिन्दू इतिहास में सबसे ज्यादा महत्व है। इसे इंडस कहा जाता है इसी के नाम पर भारत का नाम इंडिया रखा गया।
विभाजन का दर्द : सिंध और पंजाब में हिन्दू और सिख बहुमत में थे इसके बावजूद दोनों प्रांतों को विभाजन की त्रासदी झेलना पड़ी। दूसरी ओर समूचे बंगाल की बात करें तो हिन्दू बहुसंख्यक थे लेकिन पूर्वी बंगाल में मुस्लिम शासक थे। उन शासकों ने मुहम्मद अली जिन्नाह के इशारे पर दंगे कराकर दबाव बनाया और बंगाल विाभजन के बीज बोए। विभाजन का सबसे ज्यादा दर्द झेला कश्मीर, बंगाल, पंजाब और सिंध के हिन्दू, ईसाई, बौद्ध और शिया मुसलमानों ने। लाखों सिंधियों का कत्लेआम किया गया। उनकी औरतों और संपत्तियों को छीन लिया गया। जो लोग भाग सकते थे वे भाग गए और जो लोग छुप सकते थे वे छुप गए लेकिन उस वक्त बाकियों के पास मरने या इस्लाम कबूल करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था।
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आडवाणी अपनी जन्मभूमि कराची को पाकिस्तान के हिस्से में जाता हुआ देख अपनी जीवनी 'माई कंट्री, माई लाइफ' में में अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए लिखते हैं 'मेरी नियति कितनी अभिशप्त है, मैं 15 अगस्त की खुशी भी नहीं मना सका, जबकि पिछले पांच साल से, जबसे मैं स्वयंसेवक बना मैं इस दिन के आने के सिवा कोई और सपना नहीं देख रहा था.' उस दिन कराची के अधिकांश हिन्दू मोहल्ले निराश और सूने ही रहे, हां कुछ दूरी पर जरूर आतिशबाजियां हो रही थी।
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