HIGHLIGHTS
* हिन्दू धर्मशास्त्रों में मौनी अमावस्या बहुत खास दिन माना गया है।
* इस दिन धार्मिक कर्म, दान-पुण्य किए जाते हैं।
* पितृदोष से मुक्ति और पितृदेव का आशीष पाने के लिए यह दिन महत्वपूर्ण है।
मौनी अमावस्या का महत्व: Mauni Amavasya Importance-
वर्ष 2024 में 9 फरवरी, शुक्रवार के दिन माघ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या मनाई जा रही है। हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार यह दिन बहुत पवित्र माना गया है। मान्यतानुसार माघ मास की अमावस्या को मौनी, दर्श तथा माघी अमावस्या के नाम से जाना जाता है। प्राचीन धर्मग्रंथों के अनुसार यह दिन भगवान श्रीविष्णु को पाने का सरल मार्ग तथा माघ मास के पुण्य स्नान को बताया गया है। इस दिन खास कर गंगा स्नान का विशेष महत्व है।
पुराणों के अनुसार माघ महीने में आने वाली हर तिथि एक पर्व की तरह ही मानी जाती है। मान्यता है कि मौनी अमावस्या के दिन मनु ऋषि का जन्म हुआ था। मौनी अमावस्या के दिन जो लोग गंगा, कुंभ, नदी या सरोवर तट पर जाकर स्नान नहीं कर सकते, वो घर में गंगा जल डालकर स्नान करें, तब भी उन्हें अनंत फल की प्राप्ति होती है। इस दिन पूरे विधिपूर्वक गंगा स्नान, पितृ तर्पण, सूर्य उपासना और दान-पुण्य के कार्य करने से जीवन के कष्टों से मुक्ति होकर जीवन में सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य तथा धन और मोक्ष की प्राप्त होती है। इस दिन उपवास रखकर मौन व्रत धारण करने का भी बहुत महत्व माना गया है।
आइए अब यहां जानते हैं मौनी अमावस्या की कथा...
कथा मौनी अमावस्या Mauni Amavasya katha:
मौनी अमावस्या की पौराणिक कथा के अनुसार कांचीपुरी में एक ब्राह्मण रहता था। उसका नाम देवस्वामी तथा उसकी पत्नी का नाम धनवती था। उनके सात पुत्र तथा एक पुत्री थी। पुत्री का नाम गुणवती था।
ब्राह्मण ने सातों पुत्रों को विवाह करके बेटी के लिए वर खोजने अपने सबसे बड़े पुत्र को भेजा। उसी दौरान किसी पंडित ने पुत्री की जन्मकुंडली देखी और बताया, सप्तपदी (सात वचन) होते-होते यह कन्या विधवा हो जाएगी। तब उस ब्राह्मण ने पंडित से पूछा- पुत्री के इस वैधव्य दोष का निवारण कैसे होगा?
पंडित ने कहा- सोमा का पूजन करने से वैधव्य दोष दूर होगा। फिर सोमा का परिचय देते हुए उसने बताया, वह एक धोबिन है। उसका निवास स्थान सिंहल द्वीप है। उसे जैसे-तैसे प्रसन्न करो और गुणवती के विवाह से पूर्व उसे यहां बुला लो।
तब देवस्वामी का सबसे छोटा लड़का बहन को अपने साथ लेकर सिहंल द्वीप जाने के लिए सागर तट पर चला गया। सागर पार करने की चिंता में दोनों एक वृक्ष की छाया में बैठ गए। उस पेड़ पर एक घोंसले में गिद्ध का परिवार रहता था। उस समय घोंसले में सिर्फ गिद्ध के बच्चे थे। गिद्ध के बच्चे भाई-बहन के क्रिया-कलापों को देख रहे थे। सायंकाल के समय उन बच्चों (गिद्ध के बच्चों) की मां आई तो उन्होंने भोजन नहीं किया।
वह अपनी मां से बोले- नीचे दो प्राणी सुबह से भूखे-प्यासे बैठे हैं। जब तक वे कुछ नहीं खा लेते, तब तक हम भी कुछ नहीं खाएंगे। तब दया और ममता के वशीभूत गिद्ध माता उनके पास आई और बोली- मैंने आपकी इच्छाओं को जान लिया है। इस वन में जो भी फल-फूल कंद-मूल मिलेगा, मैं ले आती हूं। आप भोजन कर लीजिए।
मैं प्रात:काल आपको सागर पार करा कर सिंहल द्वीप की सीमा के पास पहुंचा दूंगी और वे दोनों भाई-बहन माता की सहायता से सोमा के यहां जा पहुंचे। वे नित्य प्रात: उठकर सोमा का घर झाड़ कर लीप देते थे।
एक दिन सोमा ने अपनी बहुओं से पूछा, हमारे घर कौन बुहारता है, कौन लीपता-पोतता है? सबने कहा, हमारे सिवाय और कौन बाहर से इस काम को करने आएगा? किंतु सोमा को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। एक दिन उसने रहस्य जानना चाहा। वह सारी रात जागी और सबकुछ प्रत्यक्ष देखकर जान गई। सोमा का उन बहन-भाई से वार्तालाप हुआ। भाई ने सोमा को बहन संबंधी सारी बात बता दी।
सोमा ने उनकी श्रम-साधना तथा सेवा से प्रसन्न होकर उचित समय पर उनके घर पहुंचने का वचन देकर कन्या के वैधव्य दोष निवारण का आश्वासन दे दिया। मगर भाई ने उससे अपने साथ चलने का आग्रह किया। आग्रह करने पर सोमा उनके साथ चल दी। चलते समय सोमा ने बहुओं से कहा- मेरी अनुपस्थिति में यदि किसी का देहांत हो जाए तो उसके शरीर को नष्ट मत करना। मेरा इंतजार करना और फिर सोमा बहन-भाई के साथ कांचीपुरी पहुंच गई।
दूसरे दिन गुणवती के विवाह का कार्यक्रम तय हो गया। सप्तपदी होते ही उसका पति मर गया। सोमा ने तुरंत अपने संचित पुण्यों का फल गुणवती को प्रदान कर दिया। तुरंत ही उसका पति जीवित हो उठा। सोमा उन्हें आशीर्वाद देकर अपने घर चली गई। उधर गुणवती को पुण्य-फल देने से सोमा के पुत्र, जामाता तथा पति की मृत्यु हो गई। सोमा ने पुण्य फल संचित करने के लिए मार्ग में अश्वत्थ (पीपल) वृक्ष की छाया में विष्णु जी का पूजन करके 108 परिक्रमाएं की। इसके पूर्ण होने पर उसके परिवार के मृतक जन जीवित हो उठे। निष्काम भाव से सेवा का फल मधुर होता है, इस व्रत का यही लक्ष्य है। इस तरह मौनी अमावस्या के पुण्यफल से खुशियां वापस आ गई। इस व्रत से अनंत फल की प्राप्ति होती है।
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