• Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. काव्य-संसार
  4. Poem on Triple Talaq
Written By

तीन तलाक बिल पर कविता : विराम

तीन तलाक बिल पर कविता : विराम - Poem on Triple Talaq
-संगीता केसवानी
 
सदियों पुरानी रीत है बदली,
एकतरफा ये जीत है बदली।
 
है विराम मेरी बेबसी का,
है लगाम तेरी नाइंसाफी का।
 
न पर्दे से इंकार है, 
ना संस्कारों से तक़रार है।
 
अब अपने फैसलों का मुझे भी अधिकार है,
रौंद सके मेरे जीवन को तुझे अब न ये इख्तियार है।
 
अब ना अश्क-ए-आबशार होगा,
ना हर पल डर का विचार होगा।
 
सुखी-निश्चिंत हर परिवार होगा,
मेरे भी हक़ में ये बयार होगा।
 
सायरा, गुलशन, इशरत, आफरीन, आतिया का संघर्ष रंग लाया,
मजबूरी से मज़बूती की जंग का सुखद परिणाम आया।
 
ना हूं केवल वोट-बैंक या ज़ाती मिल्कियत,
अब जाके पाई मैंने भी अपनी अहमियत,
तुम सरताज तो मैं शरीके-हयात।
 
पाक ये रिश्ता-ए-निकाह ना होगा तल्ख तलाक से तबाह,
न तलाक-ए-बिद्दत,
ना तलाक-ए-मुग़लज़ाह,
कर पाएगा इस रूह-ए-पाक का रिश्ता तबाह।
 
सो मेरी जीत मैं तुम्हारी जीत,
और तुम्हारी जीत में मेरी शान।
ये भी पढ़ें
उन्नाव के बहाने एक कविता : वह देह कई कई बार उधेड़ी गई थी