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तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी से रिश्तों का बिखराव

तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी से रिश्तों का बिखराव - poem on relations
बढ़ रही है चारों तरफ रफ़्तार जिंदगी की। 
हाईस्पीड, फिर सुपर स्पीड, अब तो प्रतीक बुलेट ट्रेन है। 
पर इस सुपर स्पीड का साथ न दे पाने के कारण,
सामाजिक रिश्तों की उजड़ती बस्तियां बेचैन हैं।।1।। 
 
नई कॉलोनियां, बंगले, नव-नगर 
हर नज़र से नए चारों ओर से। 
छिटकते पर जा रहे हैं रिश्ते सभी 
परंपरागत प्यार की मधु डोर से।।2।। 
 
नई जीवनशैलियों के वितानों तले 
लुप्त हुए परंपरागत धूप-छांव ज्यों। 
समय करवट ले रहा बेमुरव्वत 
डूब में आते से बेबस गांव ज्यों।।3।। 
 
अजनबी सब अपने आस-पड़ोस से, 
रिश्तों में सहमे से और डरे-डरे। 
नव-सभ्यता की औपचारिक मानसिकता से 
बेतकल्लुफ रिश्तों की पहल कौन करे।।4।। 
 
पीढ़ियां लगती हैं, सचमुच पीढ़ियां,
रिश्तों का रसमय संसार बसाने में। 
किसको फुर्सत है भागमभागभरे, 
आत्मकेंद्रित सोच, संकुचित चिंतन के इस ज़माने में।।5।। 
 
असंतोष, कुंठा, खीज, असहिष्णुता,
हर मोड़ पर दिखती जो सरेआम है। 
सामाजिक जीवन के ये बिखराव/तनाव 
रिश्तों की टूटन के ही परिणाम हैं।।6।। 
 
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