हिन्दी कविता : पीड़ा...
वक़्त के थपेड़ों से,
घाव जब सिलते हैं।
पीड़ा को नित,
संदर्भ नए मिलते हैं।
1.
वेदना सघन लिए,
नस्तर-सी चुभन लिए।
सियासी यकीन पर,
सुलगती जमीन पर।
रिश्तों के दर्प सभी,
मोम से पिघलते हैं।
पीड़ा को नित,
संदर्भ नए मिलते हैं।
2.
बिखरे अतीत-सी,
पार्थ की जीत-सी।
भाग्य की हीनता में,
सुदामा-सी दीनता में।
मुफलिसी के ख्वाब,
कहां महलों से संभलते हैं।
पीड़ा को नित,
संदर्भ नए मिलते हैं।
3.
दीपदान कहानी से,
पन्ना की कुर्बानी से।
धर्म की दुकान के,
रेशमी ईमान के।
हवन करते हुए भी,
हाथ जहां जलते हैं।
पीड़ा को नित,
संदर्भ नए मिलते हैं।
4.
भोर के गीत-सी,
विरहिणी के मीत-सी।
परियों की कथा में,
अंतर की व्यथा में।
करुण रुदन से 'अमरेश',
अश्रु जब निकलते हैं।
पीड़ा को नित,
संदर्भ नए मिलते हैं।