कविता: थोड़ी शराब पी है...
थोड़ी शराब पी है,
समझता नहीं है इतना।
आशिकी की क्या सजा है,
सपनों में आज उसने।
मेरे गालों पे किसकी है,
लगता है मेरे गम में।
थोड़ी शराब पी है,
शर्म मुझको आती।
मैं बोल नहीं पाती,
मिलती है आंख जब-जब।
मुस्कान छोड़ जाती,
मुझको पता है उसने।
तस्वीर मेरी ली है,
लगता है मेरे गम में।
थोड़ी शराब पी है,
मम्मी बताती बात है।
संस्कारों की,
पापा दिखाते रौब है।
ठाठ-बाट के,
मैंने भी उसको प्यार की।
निशानी जो भेज दी है,
लगता है मेरे गम में।
थोड़ी शराब पी है।