महाकवि कालिदास संस्कृत भाषा के कवि और नाटककार थे। वे महान राजा विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों में एक थे। उनकी रचना अभिज्ञान शाकुन्तलम् सबसे प्रसिद्ध है। इसके अलावा उन्होंने विक्रमोर्वशीयम्, मालविकाग्निमित्रम्; महाकाव्य- रघुवंशम् और कुमारसंभवम्, खण्डकाव्य- मेघदूतम् और ऋतुसंहार नामक प्रसिद्ध संस्कृत ग्रंथों की रचना की है।
1. कालिदास नाम का शाब्दिक अर्थ है, 'काली का सेवक' परंतु वे शिव के परम भक्त थे। परंतु यह भी कहा जाता है कि पत्नी के धिक्कारने के बाद वे कहीं चले गए थे और ठान लिया था कि अब पंडित बनकर ही लौटेंगे। इस दौरान वे माता कालिका के भक्त बन गए थे। मां कालिका के आशीर्वाद से ही उन्होंने अद्भुत साहित्य की रचना की थी।
2. कालिदास के बारे में कहा जाता है कि वे अपने प्रारंभिक जीवन में अनपढ़ और मूर्ख थे। 18 वर्ष की आयु तक वे कुछ भी नहीं जानते थे। लोगों ने देखा कि वे जिस पेड़ पर बैठे हैं उसी की डगाल काट रहे हैं। कथाओं और किंवदंतियों के अनुसार कालिदास शारीरिक रूप से बहुत सुंदर थे।
3. कालिदास की शादी मालव राज्य की अत्यंत बुद्धिमान और रूपवती राजकुमारी विद्योत्तमा से हुई थी। राजकुमारी का यह प्रण था कि वह उसी युवक से विवाह करेगी जो उसे शास्त्रार्थ में हरा देगा। दूर दूर से आए विद्वान उससे हार गए तो उन विद्वानों के मन में ग्लानि उत्पन्न हो गई। इसका राजकुमारी से बदला लेने के लिए उन्होंने एक चाल चली और मूर्ख युवक की खोज प्रारंभ की। तब एक जंगल में उन्हें एक झाड़ की शाखा पर बैठा एक युवक नजर आया जो उसी शाखा को काट रहा था। विद्वानों ने उसे युवक जो कि कालिदास था उसे सीखा पढ़ाया और कहा कि तो मौन में ही उत्तर देना। उन्होंने उससे कहा यदि तुम मौन रह सकोगे तो तुम्हारा विवाह एक सुंदर राजकुमारी से हो जाएगा। इसके बाद कालिदास को सुंदर वस्त्र पहनाकर उसे विद्वाने के रूप में राजमहल में शास्त्रार्त के लिए प्रस्तुत कर दिया और विद्योत्तमा से कहा गया कि युवक मौन साधना में रत होने के कारण संकेतों में शास्त्रार्थ करेगा। विद्योत्तमा मान गई और शास्त्रार्थ शुरू हुई।
विद्योत्तमा ने अंगुली उठाई। उसका तात्पर्य था, 'ईश्वर एक है और वह अद्वैत है।' कालिदास ने समझा की यह मेरी आंख फोड़ना चाहती है तो उसने भी तक्षण दो अंगुली उठा। अर्थात् तुम तो एक आंख फोड़ने की बात कर रही हो, मैं तुम्हारी दोनों आंखें फोड़ दूंगा। पंडितों ने कालिदास की ओर से राजकुमारी को समजाया कि 'ईश्वर एक है। आपने ठीक कहा, पर प्रकृति और विश्व के रूप में वही अन्य रूप धारण करता है। अतः पुरुष और प्रकृति, परमात्मा और आत्मा दो-दो शाश्वत हैं। विद्योत्तमा इससे प्रभावित हुई और फिर विद्योत्तमा ने हथेली उठाई। पांचों अंगुलियां ऊपर की ओर उठी थीं। उनका तात्पर्य था, 'आप जिस प्रकृति, जगत् जीव या माया के रूप में द्वैतवाद को स्थापित कर रहे हैं, उसकी रचना पंचत्तत्व से होती है। ये पंचतत्त्व हैं- पृथ्वी, पानी, पवन, अग्नि और आकाश। ये सभी तत्त्व भिन्न और अलग हैं, इनसे सृष्टि कैसे हो सकती है?
कालिदास की ने समझा की यह राजकुमारी मुझे थप्पड़ मारना चाहती है। इसीलिए कालिदास ने थप्पड़ के जवाब में मुक्का दिया दिया। विद्वानों ने राजकुमारी को बताया कि इनके कहने का तात्पर्य यह है कि जब तक पंचतत्त्व अलग-अलग रहेंगे, सृष्टि नहीं होगी। पंचतत्त्व करतल की पंचांगुलि है। सष्टि तो मुष्टिवत् है। मुट्ठी में सभी मिल जाते हैं तो सृष्टि हो जाती है। यह सुनकर सभा-मंडप की दर्शक दीर्घा से फिर तालियां बजने लगी। विद्योत्तमा को अंततः अपनी हार माननी पड़ी और उसने कालिदास से विवाह कर लिया।
4. उपरोक्त कहानी के अलावा यह भी कहा जाता है कि जब पत्नी को यह पता चला तो उन्होंने कालिदास को संस्कृत की शिक्षा दी। व्याकरण, छंद शास्त्र, निरुक्त ज्योतिष और छहों वेदांग, षड्दर्शन आदि सभी की शिक्षापूर्ण करने के बाद कालिदास राजा विक्रमादित्य के दरबार में उनके नवरत्न में से एक बन गए।
5. महाकवि कालिदास सम्राट विक्रमादित्य के समय हुए थे या कि वे गुप्तकाल के चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के समय हुए इस पर विवाद है। विक्रम संवत अनुसार विक्रमादित्य आज (2020) से 2291 वर्ष पूर्व हुए थे। कलि काल के 3000 वर्ष बीत जाने पर 101 ईसा पूर्व सम्राट विक्रमादित्य का जन्म हुआ। उन्होंने 100 वर्ष तक राज किया। -(गीता प्रेस, गोरखपुर भविष्यपुराण, पृष्ठ 245)। अधिकांश विद्वानों का मानना है कि कालिदास शुंगवंश के शासनकाल में थे, जिनका शासनकाल 100 सदी ईसापू्र्व था।
6. महाकवि कालिदास का उल्लेख वानभट्ट की 'हर्षचरितम' में मिलती हैं, जो छठी शताब्दी की रचना हैं। मतलब यह कि कालिदास उससे पूर्व हुए थे। कालिदास के नाटक ' मालविकाग्निमित्र' में अग्निमित्र का वर्णन मिलता हैं, जो 170 ईपू का शासक था। कालिदास के नाटक `मालविकाग्निमित्र' से ज्ञात होता है कि सिंधु नदी के तट पर अग्निमित्र के लड़के वसुमित्र की मुठभेड़ यवनों से हुई और भीषण संग्राम के बाद यवनों की पराजय हुई। यवनों के इस आक्रमण का नेता सम्भवत: मिनेंडर था। इस राजा का नाम प्राचीन बौद्ध साहित्य में 'मिलिंद' मिलता है।
7.कालिदास के जन्म स्थान को लेकर भी मतभेद हैं। कालिदास ने अपने खंड काव्य मेघदूत में उज्जैन शहर का जिक्र किया हैं। कुछ इतिहासकारों के अनुसार कालिदास का जन्म उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के कविल्का गांव में हुआ था।
8.महाकवि कालिदास की मृत्यु कैसे हुई यह अभी भी अज्ञात है। परंतु यह कहा जाता है कि उनकी मृत्यु उज्नैन में ही हुई थी। एक शिलालेख के अनुसार महाराज विक्रमादित्य के आश्रय में कार्तिक शुक्ला एकादशी रविवार के दिन 95 वर्ष की आयु में कवि कालिदास ने अपने प्राण त्यागे थे।
9. कालिदास की यात्रा के कुछ साक्ष्य बिहार के मधुबनी जिला के उच्चैठ नामक स्थान पर भी मिलते हैं। माना जाता है कि विद्योतमा से शास्त्रार्थ के बाद कालिदास यहीं कहीं गुरुकुल में रुके। कालिदास को यहीं उच्चैठ भगवती से ज्ञान का वरदान मिला, जहां आज भी कालिदास का डीह है।
10. कुछ विद्वान कालिदास को बंगाल और उड़ीसा का भी मानते हैं परंतु इसके कोई ठोस प्रमाण नहीं है। परंतु यह जरूर कहा जाता है कि वे ब्राह्मण वंश में जन्में थे और अनाथ थे। उनका पालन-पोषण एक ग्वाले ने किया था।
विभिन्न स्रोतों से संकलित आलेख