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हरिद्वार का सबसे प्राचीन स्थल कनखल

Kankhal Haridwar | हरिद्वार का सबसे प्राचीन स्थल कनखल
उत्तराखंड प्रदेश में हरिद्वार अर्थात हरि का द्वार है। हरि याने भगवान विष्णु। हरिद्वार नगरी को भगवान श्रीहरि बद्रीनाथ का द्वार माना जाता है, जो गंगा के तट पर स्थित है। इसे गंगा द्वार और पुराणों में इसे मायापुरी क्षेत्र कहा जाता है। यह भारतवर्ष के सात पवित्र स्थानों में से एक है। हरिद्वार में हर की पौड़ी को ब्रह्मकुंड कहा जाता है। इसी विश्वप्रसिद्ध घाट पर कुंभ का मेला लगता है और यहीं पर विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती होती है। आओ जानते हैं यहां के सबसे प्राचीन स्थान कनखल के बार में संक्षिप्त जानकारी।
 
 
1. कनखल हरिद्वार का सबसे प्राचीन स्थान है। इसका उल्लेख पुराणों में मिलता है। यह स्थान हरिद्वार से लगभग 3.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वर्तमान में कनखल हरिद्वार की उपनगरी के रूप में जाना जाता है।
 
2. कनखल का इतिहास महाभारत और भगवान शिव से जुड़ा हुआ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कनखल ही वो जगह है जहां राजा दक्ष ने प्रसिद्ध यज्ञ किया था और सती ने अपने पिता द्वारा भगवान शिव का अपमान करने पर उस यज्ञ में खुद को दाह कर लिया था। 
 
3. माता सती के अग्निदाह के बाद शिव के गण वीरभद्र ने राजा दक्ष की वध कर दिया था बाद में शिवजी ने उनके धड़ को वश्व के सिर से जोड़ दिया था। इसी घटना की याद में यहां पर दक्षेश्वर मदिर बना हुआ है।
 
4. आज कनखल हरिद्वार के सबसे ज्यादा घनी आबादी वाला क्षेत्र है। आज भी कनखल में बहुत सारे प्राचीन मंदिर बने हुए है। खरीदारी के हिसाब से हरिद्वार में कनखल का बाजार एक उपयुक्त स्थान माना जा सकता है।
 
5. कनखनल हरिद्वार की प्राचीन धरोहर है। यह राजा दक्ष की के राज्य की राजधानी थी। यहीं पर विश्व प्रसिद्ध गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय भी है। 
 
6. हरिद्वार को पंचपुरी भी कहा जाता है। पंचपुरी में मायादेवी मंदिर के आसपास के 5 छोटे नगर सम्मिलित हैं। कनखल उनमें से ही एक है।
 
7. कनखलन में रुईया धर्मशाला, सती कुंड, हरिहर आश्रम, श्रीयंत्र मंदिर, दक्ष महादेव मंदिर, गंगा घाट और उनका मंदिर, शीतला माता मंदिर, दश महाविद्या मंदिर, ब्रम्हेश्वर महादेव मंदिर, हवेली सदृश अखाड़े और कनखल की संस्कृत पाठशालाएं.
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