क्या है पुणे के दगड़ू सेठ का इतिहास, जानिए गणेशोत्सव में जानकारी खास
महाराष्ट्र में देश के सबसे प्राचीन और खास गणेश मंदिर विद्यमान है। पूरे महाराष्ट्र में अन्य राज्यों की अपेक्षा गणेश उत्सव की सबसे ज्यादा धूम रहती है। यहां गणेशजी के अष्ट विनायक रूप के प्रसिद्ध मंदिर भी है। महाराष्ट्र में पुणे के समीप अष्टविनायक के आठ पवित्र मंदिर 20 से 110 किलोमीटर के क्षेत्र में स्थित हैं। महाराष्ट्र में सिद्धि विनायक मंदिर की तरह भी दगड़ू सेठ गणपति जी का मंदिर भी दुनियाभर में प्रसिद्ध है यह महाराष्ट्र का दूसरा सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। आओ जानते हैं इस मंदिर की खशस जानकारी।
1. श्रीमंत दग्दूशेठ नाम के हलवाई ने इस मंदिर का निर्माण कराया था और तभी से इस मंदिर को 'दगड़ूसेठ हवलवाई मंदिर' के नाम से जाना जाता है। इसे आम बोलचाल में दगडू सेठ का मंदिर भी कहते हैं।
2. कहते हैं कि दगड़ूसेठ हलवाई कोलकाता से पूणे में पत्नी और बेटे के साथ मिठाइयों का काम करने आए थे। उस दौरान पूणे में प्लेग नामक महामारी फैली हुई थी। इस महामारी के चलते दगड़ूसेठ हलवाई ने अपने बेटे को खो दिया था।
3. इस हादसे के बाद दगड़ू सेठ को बड़ा झटका लगा और वे चाहते थे कि किसी भी तरह से मरे बेटे की आत्मा को शांति मिले। उन्होंने एक पंडित से इसके लिए उपाय पूछा तो पंडितजी उन्हें भगवान गणेश का मंदिर बनवाने की सलाह दी।
4. पंडित जी की सलाह पर वर्ष 1893 में दगड़ूसेठ हलवाई ने एक भव्य गणपति मंदिर का निर्माण कराया और गणपति प्रतिमा स्थापित की।
5. कहते हैं कि इस मंदिर से ही लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणेश उत्सव की शुरुआत की थी। तब से ही हर साल यहां पर गणेश उत्सव की धूम लगी रहती है।
6. करीब 8 किलो सोने के उपयोग से यहां पर भगवान गणेश जी की 7.5 फीट ऊंची और 4 फीट चौड़ी प्रतिमा विराजमान हैं। इस प्रतिमा में गणपति के दोनों कान सोने के हैं। वहीं प्रतिमा को 9 किलो से भी अधिक वेट का मुकुट बनाया गया है। इस मंदिर में गणपति जी को सोने की ज्वेलरी से सजाया गया है।