इंदौर, किसी के घर में मौत हो जाए और लोग मृतक के परिवार के सदस्यों को बधाई देने लगे तो कल्पना नहीं की जा सकती कि उस परिवार के सदस्यों पर क्या गुजरती होगी। लेकिन इंदौर के खजांची परिवार के साथ ऐसा ही हुआ है। एक तरफ वे अपने घर के सदस्य के निधन पर गमगीन थे, तो दूसरी तरफ उन्हें इस बात की बधाई मिल रही थी कि घरवालों ने मृतक के शरीर के अंगों को दान कर परोपकार का काम किया। इस गमगीन वक्त में भी मृतक के अंगों को डोनेट करने का फैसले के लिए न सिर्फ एक जज्बे की जरूरत होती है, बल्कि इसके लिए बहुत बड़ा जिगर भी चाहिए होता है। इंदौर ने यही कर दिखाया है।
स्वच्छता में आधा दर्जन बार पूरे देश में अपना डंका बजा चुका इंदौर अब अंगदान यानी ऑर्गन डोनेशन में भी मिसाल कायम कर रहा है। सोमवार को अंगदान करने के एक उदाहरण ने न सिर्फ इंदौर की मानवीयता का स्तर ऊंचा उठा दिया, बल्कि इस शहर की शान में चार चांद लगा दिए। 22 साल पहले एक नौजवान की मौत के बाद इंदौर में अंगदान की शुरुआत हुई थी, आज 2023 में देश का सबसे स्वच्छ शहर अंगदान में भी सिरमौर बनने की ओर बढ़ रहा है। अंगदान की एक ताजा मिसाल की वजह से इंदौर एक बार फिर से देशभर में सुर्खियां बंटोर रहा है।
दुनिया को अलविदा कह चुकी इंदौर की एक महिला विनीता खजांची अपने शरीर के तकरीबन हर अंग को दान कर के देश के अलग-अलग हिस्सों में रह रहे 7 मरीजों को जिंदगी दे गईं। मौत के दुख में आकंठ डूबे परिवार ने एक फैसला लिया। जो समाज को महादान की सीख देने के साथ ही दूसरों को जिंदगी देने वाला साबित हुआ।
विनीता लिवर, फेफड़े, किडनी, आंखें और त्वचा डोनेट करने में तो इंदौर का इतिहास रहा ही है, लेकिन विनीता खजांची के हाथ भी ट्रांसप्लांट के लिए भेज दिए गए। यही नहीं, उनकी बेटियों ने तो डॉक्टरों को यहां तक कह डाला कि अगर मां के पैर किसी के काम आ रहे हैं तो वे भी ले लीजिए। सुनकर गौरव महसूस होता है कि अब तक 47 बार देश के अलग-अलग शहरों में इंदौर से अंग भेजे जा चुके हैं। बता दें कि हाल ही में लालू प्रसाद यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने अपने पिता को किडनी देकर वो काम किया था, जिसे करने पर शायद बेटे को भी सोचना पड़ता।
कौन थीं विनीता खजांची?
विनीता खजांची इंदौर के रतलाम कोठी क्षेत्र में रहने वाली ट्रांसपोर्ट व्यवसायी सुनील खजांची की पत्नी थीं। वे 52 साल की थीं। और उन्हें ब्रेन की बीमारी थी। इसी तकलीफ की वजह से उन्हें 13 जनवरी को शहर के बॉम्बे हॉस्पिटल में एडमिट किया गया था। डाक्टरों ने ब्रेन डेथ की बात कही थी। इसके बाद परिजनों ने अंग दान करने का फैसला लिया और डाक्टरों ने ग्रीन कॉरिडोर तैयार किया।
कहां- कहां भिजवाए अंग?
सोमवार की सुबह ग्रीन कॉरिडोर बनाकर विनीता के लंग्स अपोलो हॉस्पिटल चेन्नई, उनके हाथ ग्लोबल हॉस्पिटल मुंबई, लीवर इंदौर के चोइथराम हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर,एक किडनी बॉम्बे हॉस्पिटल और दूसरी किडनी सीएचएल हॉस्पिटल में एक मरीज के लिए भिजवाई गई। जहां जरुरतमंद मरीजों को यह सभी अंग प्रत्यारोपित किए गए। मध्यप्रदेश में यह पहला मामला है जब हाथ भी डोनेट किया गया, विनिता के ये हाथ मुबंई में एक लड़की को प्रत्यारोपित किए जाएंगे। हाथों को भेजने के लिए चैन्नई से चार्टर प्लेन इंदौर आया था। इसके पहले भी इंदौर से कई बार देश के दूसरे शहरों में अंग भिजवाए जा चुके हैं।
आहना और निरिहा ने कायम की मिसाल
क्रिश्चन समुदाय में ऐसा अंधविश्वास है कि अगर मरने के बाद अंग दान कर दिए गए तो अगले जन्म में उसे बगैर उस अंग के पैदा होना पड़ेगा, जिस अंग को दान किया गया। वहीं, हिन्दुओं में किसी की मौत होने पर यह ख्याल रखा जाता है कि जब तक अंतिम संस्कार न कर दिया जाए, तब तक मृतक की डेडबॉडी को कोई नुकसान न पहुंचे, लेकिन विनीता की दो बेटियों निरिहा और आहना ने अपनी मां के पूरे शरीर के अंग डोनेट कर के मिसाल पेश की है। यह मिसाल ऑर्गन डोनेट की जागरूकता को लेकर एक बड़ी क्रांति साबित होगी।
गमगीन वक्त में अंगदान का फैसला
विनीता खजांची के बेटे आधार खजांची और उनकी दो बेटियों निरिहा वैद और अहाना खजांची ने
वेबदुनिया को बताया कि कुछ समय पहले ही उन्होंने अपने दादाजी और घर के दूसरे सदस्यों के निधन के बाद उनके अंगदान किए थे। उनकी आंखें और स्कीन दान की गई थी। उन्होंने बताया कि यह तो सवाल ही नहीं था कि अंगदान करना है या नहीं। सवाल तो यह था कि हम कैसे ज्यादा से ज्यादा अंगों को लोगों की जरूरत के लिए दान कर सके। दादाजी को हार्ट अटैक आया था। ऐसे में उनकी सिर्फ आंखें और त्वचा ही दान कर सके। लेकिन मां के समय हम ज्यादा अंग दान कर सके, यह अच्छी बात है। हमने तो पैरों को दान करने की भी बात कही थी, लेकिन इसके लिए कोई तकनीक नहीं होने की वजह से ऐसा नहीं कर सके। उन्होंने बताया कि हमे तो खुशी है कि हमारी मां की आंखों और हाथों की उम्र बढ गई। मां नहीं रहीं, लेकिन उनके अंग अभी भी जिंदा हैं। इस महादान के लिए अहाना यूएस से आई जो टिकटॉक कंपनी में काम करती हैं और निरिहा दुबई से आईं जो दुबई फ्लाई में काम करती हैं। अहाना और निरिहा के भाई आधार भोपाल में प्रोक्टर एंड गैंबल कंपनी में मैनेजर हैं।
इंदौर में 22 साल पहले अंगदान का श्रीगणेश
इंदौर शहर में अंगदान महादान की शुरुआत 22 वर्ष पहले हुई थी। 24 अप्रैल 2000 को विजय नगर निवासी बैंक अधिकारी पिता दिलीप मेहता के 14 वर्षीय बेटे मयंक की एक हादसे में मौत हो गई थी। मयंक परिवार के साथ कार से नागदा जा रहा था। हादसे में मयंक को सिर में गंभीर चोट आई थी, जिसके बाद डॉक्टरों ने उसे ब्रेनडेड घोषित कर दिया था। बेटे की मौत से टूट चुके परिवार ने मयंक के अंग दान करने का फैसला लिया और उसी फैसले के साथ इंदौर में अंगदान का श्रीगणेश हुआ।
महादान में इंदौर का योगदान
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इंदौर में 4 साल में 47वां ग्रीन कॉरिडोर बना
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प्रदेश में पहली बार हाथ हुए ट्रांसप्लांट हुए
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इंदौर से 47 बार देश के अलग-अलग शहरों में अंग भेजे
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2016 से अब तक 1022 अंगदान हो चुके
इंदौर की मुस्कान संस्था का योगदान
इंदौर में ऑर्गन डोनेशन में सबसे अग्रणी मुस्कान संस्था (इंदौर सोसायटी फॉर ऑर्गन डोनेशन) पिछले करीब 19 सालों से अंगदान करने और इसके प्रति जागरूकता फैलाने का काम कर रही है। इस संस्था के
संदीपन आर्य ने
वेबदुनिया के साथ बातचीत में बताया कि संस्था, गरीब लड़कियों की शादी, बच्चों की शिक्षा, परिचय सम्मेलन और खासतौर से ऑर्गन डोनेशन की दिशा में काम कर रही है। संदीपन आर्य ने बताया कि विनिता जी के ससूर ने भी अपने अंग दान किए थे, वे संस्था के रजिस्टर्ड अंगदाता थे। उन्हीं से प्रेरित होकर विनीता जी की बेटियों ने उनके अंगदान का यह फैसला लिया था। इंदौर में महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज, रोटरी क्लब और लायंस क्लब समेत कई संस्थाएं अंगदान के लिए काम कर रही हैं।
इंदौर की मुस्कान संस्था का योगदान
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अब तक 13 हजार कार्निया (आंखें) दान
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मुंबई के बाद इंदौर देश में सबसे ज्यादा त्वचा एकत्र और दान करने वाला शहर
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इंदौर से कार्निया और स्कीन टीशू पूरे भारत में भेजे जाते हैं
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47 बार ऑर्गन डोनेशन इंदौर से हो चुके हैं
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अंगदान से अब तक 200 लोगों को लाभ मिला
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इंदौर में हर साल 100 से ज्यादा लाइव ऑर्गन डोनेशन होते हैं
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लाइव ऑर्गन डोनेशन का मतलब अपने रिश्तेदारों को अंगदान करना।
(मुस्कान संस्था से मिली जानकारी के मुताबिक)
क्या होती है प्रक्रिया, कैसे काम करता सोटो?
महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज के डीन और मध्यप्रदेश में सोटो के (नेशनल ऑर्गन टीशू एंड ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेश) के इंचार्ज
डॉ संजय दीक्षित ने
वेबदुनिया को बताया कि इंदौर में कोरोना काल को छोड़कर तकरीबन हर साल अंगदान हुआ है। सोटो ऑर्गनाइजेशन मध्यप्रदेश के प्रमुख और मेडिकल कॉलेज इंदौर के डीन डॉ संजय दीक्षित हैं। डॉ दीक्षित ने बताया कि प्रदेश में किस अस्पताल में किसे ऑर्गन की जरूरत है, कौन दानदाता है और कैसे ऑर्गन अलोकेशन किया जाना है यह सब सोटो के माध्यम से वे खुद देखते हैं। जरूरत पड़ने पर उन्हें रीजनल और नेशनल स्तर पर संचालित डोनेशन संस्थाओं से बात करना होती है। डॉ दीक्षित ने बताया कि ऑर्गन डोनेशन उतना आसान नहीं है, जितना इसे समझा जाता है। इसके पीछे एक पूरी प्रक्रिया और मशक्कत लगती है। अस्पताल और दान- दाता से लेकर जरूरतमंद तक और ब्लड मैंचिंग से लेकर टाइमिंग और अंगों के ट्रांसपोर्ट का काम देखना होता है। इसके साथ ही इस पूरी प्रकिया को पारदर्शी रखने की जरूरत होती है। उन्होंने बताया कि इंदौर में विनीता खजांची के अंग प्रत्यारोपण की प्रक्रिया में ग्रीन कॉरिडर बनाने से लेकर अंग को ले जाने के लिए चैन्नई से इंदौर आए चार्टर प्लेन तक की व्यवस्था देखने तक एक पूरी टीम ने काम किया। इसमें कई बार दो-दो रातों तक हम सो नहीं पाते हैं।
इंदौर के महाअंगदान
16 जनवरी 2022 : विनीता खंजाची को डॉक्टरों ने ब्रेनडेड घोषित किया। जिसके बाद परिवार ने उनके लिवर,फेफड़े, आंखें, त्वचा, किडनी दान कर दी। उनके हाथ भी किए ट्रांसप्लांट किए। ऐसा प्रदेश में पहली बार हुआ।
21 सितंबर 2021 : इंदौर की 37 साल की नेहा चौधरी के अंग उनके परिवार ने दान किए थे। ब्रेन हेमरेज के बाद नेहा को डॉक्टरों ने ब्रेनडेड घोषित किया था।
24 सितंबर 2021 : 52 साल की डॉ संगीता पाटिल को एक हादसे के बाद ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया था। उनकी दोनों किडनी, लिवर, स्किन और आंखें डोनेट की गई थीं।
कौनसा अंग कितने समय में होता है ट्रांसप्लांट
आपको बता दें कि अंग प्रत्यारोपण में सबसे महत्वपूर्ण टाइमिंग है। हर अंग के प्रत्यारोपण के लिए एक तय समय होता है, अगर उस सीमा में उसे प्रत्यारोपित नहीं किया गया तो महादान का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। जानते हैं किस अंग को कितनी देर में प्रत्यारोपित किया जाता है। किडनी 12 घंटे, हार्ट 4 घंटे, लिवर 6 घंटे, आंख 3 दिन। इसके अलावा शरीर के दूसरे अंगों के लिए भी अलग-अलग समय निर्धारित है।