World Earth Day 2023:धरती का लगातार दोहन किए जाने और प्रदूषण के चलते जहां जलवायु परिवर्तन हो रहा है वहीं धरती पर प्राकृतिक आपदाएं बढ़ने लगी है। इसी के साथ ही मौसम का चक्र भी अब धीरे धीरे बदल रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि धरती अपनी धुरी पर और 1 डिग्री छुक गई है। विश्व पृथ्वी दिवस 2023 पर हमें उन सभी कारणों पर विचार करना होगा जो धरती को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
1. वायु प्रदूषण : वैज्ञानिक कहते हैं कि वायु प्रदूषण (ग्रीन हाउस गैसों) के कारण धरती का तापमान बढ़ता जा रहा है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं और ऑक्सिजन कम होती जा रही है। इससे कुदरत का मौसम और जलवायु चक्र बदल रहा है और जल भी खत्म हो रहा है। वायु प्रदूषण के कारण जहां मानव की उम्र पर असर पड़ रहा है वहीं धरती भी अकाल मृत्यु मरने के लिए तैयार हो रही है।
2. उत्खनन : खनन, उत्खनन या खुदाई का अर्थ है धरती के शरीर पर फावड़ा चलाना, उसके शरीर को छलनी करना। खनन वैध हो या अवैध वह खनन तो खनन ही है। खनन 5 जगहों पर हो रहा है- 1.नदी के पास खनन, 2.पहाड़ की कटाई, 3.खनीज, धतु, हीरा क्षेत्रों में खनन, 4.समुद्री इलाकों में खनन और 5.पानी के लिए धरती के हर क्षेत्र में किए जा रहा बोरिंग। इन सभी से धरती परेशान है। आने वाले समय में धरती की प्रथम लेयर जब दरक जाएगी तो मानव के रहने लायक जगह सिर्फ समुद्र में ही रहेगी।
3. ओजोन परत : ओजोन परत पृथ्वी और पर्यावरण के लिए एक सुरक्षा कवच का कार्य करती है, लेकिन प्रदूषण और गैसों के कारण ओजोन परत का छिद्र बढ़ता जा रहा है। इस परत के कारण ही पृथ्वी पर आने वाली सूर्य की खतरनाक पराबैंगनी अर्थात अल्ट्रा वॉयलेट किरणें नहीं आप पाती है और जिसके चलते ही जीवन उत्पत्ति और प्राणियों के रहने लायक वातावरण बना था। वैज्ञानिकों के अनुसार धरती शीर्ष से पतली होती जा रही है, क्योंकि इसके ओजोन लेयर में छेद नजर आने लगे हैं। सभी वैज्ञानिकों का कहना है कि यह विडंबना ही है कि जीवन का समापन co2 की कमी से होगा।
4. कटते वृक्ष और जंगल : ब्राजील, अफ्रीका, भारत, चीन, रशिया और अमेरिका के वन और वर्षा वनों को तेजी से काटा जा रहा है। वायुमंडल से कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सीएफसी जैसी जहरीली गैसों को सोखकर धरती पर रह रहे असंख्य जीवधारियों को प्राणवायु अर्थात 'ऑक्सीजन' देने वाले जंगल आज खुद अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जंगल हैं तो पशु-पक्षी हैं, जीव-जंतु और अन्य प्रजातियां हैं। कई पशु-पक्षी, जीव और जंतु लुप्त हो चुके हैं। पेड़ों की भी कई दुर्लभ प्रजातियां और वनस्पतियां लुप्त हो चुकी हैं।
5. सूखती नदियां : विश्व की प्रमुख नदियों में नील, अमेजन, यांग्त्सी, ओब-इरिशश, मिसिसिप्पी, वोल्गा, पीली, कांगो, सिंधु, ब्रह्मपुत्र, गंगा, यमुना, नर्मदा आदि सैकड़ों नदियां हैं। ये सारी नदियां पानी तो बहुत देती हैं, परंतु एक ओर जहां बिजली उत्पादन के लिए नदियों पर बनने वाले बांध ने इनका दम तोड़ दिया है तो दूसरी ओर मानवीय धार्मिक, खनन और पर्यावरणीय गतिविधियों ने इनके अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है। पिछले कुछ वर्षों में औद्योगिकीकरण एवं शहरीकरण के कारण प्रमुख नदियों में प्रदूषण खतरनाक स्तर तक बढ़ गया है। सिंचाई, पीने के लिए, बिजली तथा अन्य उद्देश्यों के लिए पानी के अंधाधुंध इस्तेमाल से भी चुनौतियां काफी बढ़ गई हैं। इसके कारण तो कुछ नदियां लुप्त हो गई हैं और कुछ लुप्त होने के संकट का सामना कर रही हैं। जब सभी नदियां सूख जाएंगी तो भयानक जल संकट से त्रासदी की शुरुआत होगी।
6. कटते और घटते पर्वत : पर्वत धरती की भुजाएं या कहें कि हवाओं का घर है। पक्के मकानों और सिमेंट की सड़कों के चलते पर्वत अब मैदान बनने लगे हैं। बहुत से शहर जहां पर पर्वत, पहाड़ी या टेकरी हुआ करते थे अब वहां खनन कंपनियों ने सपाट मैदान कर दिए हैं। पर्वतों के हटने से मौसम बदलने लगा है। गर्म, आवारा और दक्षिणावर्ती हवाएं अब ज्यादा परेशान करती है। हवाओं का रुख भी अब समझ में नहीं आता कि कब किधर चलकर कहर ढहाएगा। यही कारण है कि बादल नहीं रहे संगठित तो बारिश भी अब बिखर गई है। सोचिये जब धरती पर पर्वत नहीं होंगे तो क्या धरती होगी। एक सूखा मैदान या रेगिस्तान।
7. बढ़ता समुद्र का जल स्तर : ग्लेशियर के पिघलने और समुद्री उत्खनन के कारण खबर में आया है कि समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है और आने वाले समय में बहुत से तटवर्ती नगर डूब जाएंगे। मतबल धरती पर भविष्य में या तो रेगिस्तान रहेगा या समुद्र। समुद्र में जीव-जंतु होंगे और रेगिस्तान में सिर्फ रेत।
8. रेगिस्तान का भविष्य भी खतरे में : सहारा और थार रेगिस्तान की लाखों वर्ग मील की भूमि पर पर्यावरणवादियों ने बहुत वर्ष शोध करने के बाद पाया कि आखिर क्यों धरती के इतने बड़े भू-भाग पर रेगिस्तान निर्मित हो गए। उनके अध्ययन से पता चला कि यह क्षेत्र कभी हराभरा था, लेकिन लोगों ने इसे उजाड़ दिया। प्रकृति ने इसका बदला लिया, उसने तेज हवा, धूल, सूर्य की सीधी धूप और अत्यधिक उमस के माध्यम से उपजाऊ भूमि को रेत में बदल दिया और धरती के गर्भ से पानी को सूखा दिया। हालांकि अब ये रेगिस्तान भी सिमटते जा रहे हैं।