शुक्रवार, 22 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. व्रत-त्योहार
  3. एकादशी
  4. Rangbhari Ekadashi Kab Hai
Written By

रंगभरी एकादशी कब है? जानिए कैसे मनाते हैं, बनारस में शिव-पार्वती निकलते हैं गुलाल लेकर

रंगभरी एकादशी कब है? जानिए कैसे मनाते हैं, बनारस में शिव-पार्वती निकलते हैं गुलाल लेकर - Rangbhari Ekadashi Kab Hai
rangbhari ekadashi 2022
 

फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को रंगभरी एकादशी (Rangbhari Ekadashi) कहते हैं। वर्ष 2022 में रंगभरी एकादशी का पर्व 14 मार्च, दिन सोमवार को मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यतानुसार इसी दिन भगवान शिव मां पार्वती को पहली बार काशी में लेकर आए थे। इसीलिए यह एकादशी बाबा विश्वनाथ के भक्तों के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है।

इसे आमलकी एकादशी भी कहा जाता हैं। रंगभरी एकादशी के दिन से काशी में होली का पर्व शुरू हो जाता है जो आगामी छह दिनों तक चलता है। कैलेंडर के मतांतर के चलते रंगभरी एकादशी होली से 6 दिन पहले यानी रविवार, 13 मार्च 2022 को भी मनाया जा सकता है। 
 
rang bhari gyaras कैसे मनाते हैं- फाल्गुन मास के रंगभरी एकादशी के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होने के बाद पूजा स्थान में भगवान शिव और गौरी माता की मूर्ति स्थापित करें। अब माता गौरी और भगवान शिव की पुष्प, गंध, अक्षत, धूप, अबीर, गुलाल, बेलपत्र आदि से पूरे मनपूर्वक पूजा-अर्चना करें। इसके बाद माता गौरी और भगवान शिव को रंग-गुलाल अर्पित करें। माता गौरी का पूजन करते समय श्रृंगार सामग्री अर्पित करें। शुद्ध घी का दीया जलाकर, कपूर के साथ आरती करें। 
 
रंग-गुलाल से मनती हैं रंगभरी एकादशी- भगवान शिव की नगरी काशी के लिए रंगभरी एकादशी (Rangbhari Ekadashi 2022) का दिन बहुत खास होता है। इस दिन भगवान शिव और माता गौरा, अपने गणों के साथ रंग-गुलाल से होली खेलते हैं। इस हर्षोल्लास के पीछे एक खास वजह है, यह दिन भगवान शिव और माता गौरी के वैवाहिक जीवन में बड़ा महत्व रखता है। रंगभरी एकादशी के दिन काशी में बाबा विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार करके उनको दूल्हे के रूप में सजाकर गाजे-बाजे, नाचते हुए बाबा विश्वनाथ जी के साथ माता गौरा का गौना कराया जाता है। इसी के साथ पहली बार माता पार्वती ससुराल के लिए प्रस्थान करती हैं और काशी में रंगोत्सव का आरंभ हो जाता है। 
 
रंगभरी एकादशी के दिन ही भगवान शिव माता गौरा को विवाह के बाद पहली बार काशी लाए थे। इस उपलक्ष्य में भोलेनाथ ने अपने गणों के साथ रंग-गुलाल उड़ाते हुए खुशियां मनाई थी। तब से हर वर्ष काशी (बनारस) में भोलेनाथ माता पार्वती के साथ रंग-गुलाल से होली खेलते हैं। फिर माता गौरा का गौना कराया जाता है, तभी से रंगभरी एकादशी पर काशी में बाबा विश्वनाथ का यह पर्व बहुत ही खास तरीके से मनाया जाता है। यह पर्व खुशहाल जीवन के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है। 

ये भी पढ़ें
रंगभरी एकादशी कब है? जानिए महत्व, मुहूर्त, पूजा विधि, उपाय और व्रत की कथा