मंगलवार, 26 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. व्रत-त्योहार
  3. एकादशी
  4. Putrada Ekadashi 2021
Written By

श्रावण पुत्रदा एकादशी : पूजन विधि, कथा, शुभ मुहूर्त, मंत्र, पारण का समय और महत्व

श्रावण पुत्रदा एकादशी : पूजन विधि, कथा, शुभ मुहूर्त, मंत्र, पारण का समय और महत्व - Putrada Ekadashi 2021
Ekadashi in August 2021
 
इस बार बुधवार, 18 अगस्त 2021 को श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी मनाई जा रही है। यह एकादशी व्रत संतान की समस्याओं के निवारण हेतु किया जाता है। 
 
महत्व- पुत्रदा एकादशी के व्रत के समान इस चर और अचर संसार में दूसरा कोई व्रत नहीं है। जिन व्यक्तियों को संतान होने में बाधाएं आती हैं या जिन्हें पुत्र प्राप्ति की कामना हो उन्हें पुत्रदा एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। जो भक्त एकादशी का व्रत करता है उसे एक दिन पहले ही अर्थात दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रत के नियमों का पूर्ण रूप से पालन करना चाहिए। दशमी के दिन शाम में सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए और रात्रि में भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए। 
 
वर्षभर की दो एकादशियों को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह है श्रावण और पौष माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी, इन दोनों एकादशियों को पुत्रदा एकादशी कहते हैं। जो भक्त एकादशी का व्रत पूरे विधि-विधान से करता है, उसकी समस्त मनोकामनाएं श्रीहरि विष्णु शीघ्र पूरी करते हैं। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार पहली दिसंबर/जनवरी के महीने में पौष शुक्ल पक्ष की एकादशी पड़ती है, जबकि जुलाई/अगस्त के महीने श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी पड़ती है। इसे पुत्रदा एकदशी, पवित्रोपना एकादशी, पवित्रा एकादशी के नाम से जाना जाता है। 
 
इस व्रत के नाम के अनुसार ही इसका फल है। यह व्रत बहुत ही शुभ फलदायक होता है इसलिए संतान प्राप्ति के इच्छुक भक्तों को यह व्रत अवश्य रखना चाहिए जिससे कि उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति हो सके। यदि आप स्वस्थ हैं और उपवास करने में सक्षम हैं तो निर्जला व्रत रखें अन्यथा फलाहारी व्रत रखकर विधिवत पूजन संपन्न होने के बाद समय पर इसका पारण करें।
 
पुत्रदा एकादशी पूजा मुहूर्त-
 
श्रावण शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी तिथि आरंभ: 18 अगस्त 2021, बुधवार को तड़के 03:20 मिनट से शुरू होकर 19 अगस्त 2021, गुरुवार को देर रात  01:05 पर एकादशी तिथि समाप्त होगी। इसके चलते पुत्रदा एकादशी व्रत 18 अगस्त को रखा जाएगा। 
 
पारण का समय-  द्वादशी तिथि का समापन होने से पारण कर लेना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार 18 अगस्त को श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत का पारण समय अगले दिन 19 अगस्त, द्वादशी को प्रात:काल में किया जाएगा। जो लोग श्रावण मास की पुत्रदा एकादशी का व्रत रखेंगे, उनके लिए 19 अगस्त 2021, गुरुवार को प्रात: 06.32 मिनट से सुबह 08.29 मिनट के बीच पारण कर लेना उचित रहेगा।
 
मंत्र- 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' इस मंत्र का जाप करें। साथ ही विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
 
कैसे करें व्रत और पूजन- 
 
- सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्नान करके शुद्ध व स्वच्छ धुले हुए वस्त्र धारण करके श्रीहरि विष्‍णु का ध्यान करना चाहिए।
 
- अगर आपके पास गंगाजल है तो पानी में गंगा जल डालकर नहाना चाहिए।
 
- इस पूजा के लिए श्रीहरि विष्णु की फोटो के सामने दीप जलाकर व्रत का संकल्प लेने के बाद
कलश की स्थापना करनी चाहिए।
 
- फिर कलश को लाल वस्त्र से बांधकर उसकी पूजा करें।
 
- भगवान श्रीहरि विष्णु की प्रतिमा रखकर उसे स्नानादि से शुद्ध करके नया वस्त्र पहनाएं।
 
- तत्पश्चात धूप-दीप आदि से विधिवत भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा-अर्चना तथा आरती करें तथा नैवेद्य और फलों का भोग लगाकर प्रसाद वितरण करें।
 
- श्रीहरि विष्णु को अपने सामर्थ्य के अनुसार फल-फूल, नारियल, पान, सुपारी, लौंग, बेर, आंवला आदि अर्पित किए जाते हैं।
 
- एकादशी की रात में भगवान का भजन-कीर्तन करना चाहिए।
 
- पूरे दिन निराहार रहकर संध्या समय में कथा आदि सुनने के पश्चात फलाहार किया जाता है।
 
- दूसरे दिन ब्राह्मणों को भोजन तथा दान-दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए, उसके बाद खाना खाना चाहिए।
 
- इस दिन दीपदान करने का बहुत महत्व है। इस व्रत के पुण्य से मनुष्य तपस्वी, विद्वान, पुत्रवान और लक्ष्मीवान होता है तथा सभी सुखों को भोगता है।
 
श्रावण पुत्रदा एकादशी कथा
 
द्वापर युग के आरंभ में महिष्मति नाम की एक नगरी थी, जिसमें महीजित नाम का राजा राज्य करता था, लेकिन पुत्रहीन होने के कारण राजा को राज्य सुखदायक नहीं लगता था। उसका मानना था कि जिसके संतान न हो, उसके लिए यह लोक और परलोक दोनों ही दु:खदायक होते हैं। पुत्र सुख की प्राप्ति के लिए राजा ने अनेक उपाय किए परंतु राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई। वृद्धावस्था आती देखकर राजा ने प्रजा के प्रतिनिधियों को बुलाया और कहा- हे प्रजाजनों! मेरे खजाने में अन्याय से उपार्जन किया हुआ धन नहीं है। न मैंने कभी देवताओं तथा ब्राह्मणों का धन छीना है। किसी दूसरे की धरोहर भी मैंने नहीं ली, प्रजा को पुत्र के समान पालता रहा।
 
मैं अपराधियों को पुत्र तथा बांधवों की तरह दंड देता रहा। कभी किसी से घृणा नहीं की। सबको समान माना है। सज्जनों की सदा पूजा करता हूं। इस प्रकार धर्मयुक्त राज्य करते हुए भी मेरे पु‍त्र नहीं है। सो मैं अत्यंत दु:ख पा रहा हूं, इसका क्या कारण है? राजा महीजित की इस बात को विचारने के लिए मं‍त्री तथा प्रजा के प्रतिनिधि वन को गए। वहां बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों के दर्शन किए। राजा की उत्तम कामना की पूर्ति के लिए किसी श्रेष्ठ तपस्वी मुनि को देखते-फिरते रहे।
 
एक आश्रम में उन्होंने एक अत्यंत वयोवृद्ध धर्म के ज्ञाता, बड़े तपस्वी, परमात्मा में मन लगाए हुए निराहार, जितेंद्रीय, जितात्मा, जितक्रोध, सनातन धर्म के गूढ़ तत्वों को जानने वाले, समस्त शास्त्रों के ज्ञाता महात्मा लोमश मुनि को देखा, जिनका कल्प के व्यतीत होने पर एक रोम गिरता था। सबने जाकर ऋषि को प्रणाम किया। उन लोगों को देखकर मुनि ने पूछा कि आप लोग किस कारण से आए हैं? नि:संदेह मैं आप लोगों का हित करूंगा। मेरा जन्म केवल दूसरों के उपकार के लिए हुआ है, इसमें संदेह मत करो।
 
लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर सब लोग बोले- हे महर्षे! आप हमारी बात जानने में ब्रह्मा से भी अधिक समर्थ हैं। अत: आप हमारे इस संदेह को दूर कीजिए। महिष्मति पुरी का धर्मात्मा राजा महीजित प्रजा का पुत्र के समान पालन करता है। फिर भी वह पुत्रहीन होने के कारण दु:खी है। उन लोगों ने आगे कहा कि हम लोग उसकी प्रजा हैं। अत: उसके दु:ख से हम भी दु:खी हैं। आपके दर्शन से हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारा यह संकट अवश्य दूर हो जाएगा क्योंकि महान पुरुषों के दर्शन मात्र से अनेक कष्ट दूर हो जाते हैं। अब आप कृपा करके राजा के पुत्र होने का उपाय बतलाएं।
 
यह वार्ता सुनकर ऋषि ने थोड़ी देर के लिए नेत्र बंद किए और राजा के पूर्व जन्म का वृत्तांत जानकर कहने लगे कि यह राजा पूर्व जन्म में एक निर्धन वैश्य था। निर्धन होने के कारण इसने कई बुरे कर्म किए। यह एक गांव से दूसरे गांव व्यापार करने जाया करता था। एक समय ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन मध्याह्न के समय वह जबकि दो दिन से भूखा-प्यासा था, एक जलाशय पर जल पीने गया। उसी स्थान पर एक तत्काल की ब्याही हुई प्यासी गौ जल पी रही थी।
 
राजा ने उस प्यासी गाय को जल पीते हुए हटा दिया और स्वयं जल पीने लगा, इसीलिए राजा को यह दु:ख सहना पड़ा। एकादशी के दिन भूखा रहने से वह राजा हुआ और प्यासी गौ को जल पीते हुए हटाने के कारण पुत्र वियोग का दु:ख सहना पड़ रहा है। ऐसा सुनकर सब लोग कहने लगे कि हे ऋषि! शास्त्रों में पापों का प्रायश्चित भी लिखा है। अत: जिस प्रकार राजा का यह पाप नष्ट हो जाए, आप ऐसा उपाय बताइए।
 
लोमश मुनि कहने लगे कि श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी को जिसे पुत्रदा एकादशी भी कहते हैं, तुम सब लोग व्रत करो और रात्रि को जागरण करो तो इससे राजा का यह पूर्व जन्म का पाप अवश्य नष्ट हो जाएगा, साथ ही राजा को पुत्र की अवश्य प्राप्ति होगी। लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर मंत्रियों सहित सारी प्रजा नगर को वापस लौट आई और जब श्रावण शुक्ल एकादशी आई तो ऋषि की आज्ञानुसार सबने पुत्रदा एकादशी का व्रत और जागरण किया।
 
इसके पश्चात द्वादशी के दिन इसके पुण्य का फल राजा को दिया गया। उस पुण्य के प्रभाव से रानी ने गर्भ धारण किया और प्रसवकाल समाप्त होने पर उसके एक बड़ा तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ। इसलिए इस श्रावण शुक्ल एकादशी का नाम पुत्रदा पड़ा। अत: संतान सुख की इच्छा हासिल करने वाले इस व्रत को अवश्य करें। इस कथा को पढ़ने तथा इसके माहात्म्य को सुनने से मनुष्य इस लोक में संतान सुख भोगकर सब पापों से मुक्त हो जाता है और स्वर्ग को प्राप्त करता है।