Dussehra 2024: दशहरा त्योहार भारत में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, जिसे रावण दहन के रूप में मनाया जाता है। रावण दहन के बाद, कई लोग उसकी लकड़ी और राख को अपने घर लेकर आते हैं। आखिर इस परंपरा के पीछे क्या कारण हैं? इस लेख में हम इसी सवाल का जवाब ढूंढेंगे और जानेंगे कि रावण दहन की लकड़ी और राख को घर लाने का महत्व क्या है।
रावण दहन की परंपरा और उसका महत्व
दशहरा या विजयादशमी हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था और इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। पूरे देश में बड़े-बड़े मैदानों में रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन किया जाता है। रावण दहन का यह दृश्य देखते हुए, कई लोग उसकी लकड़ी और राख को अपने घर लेकर आते हैं।
राख और लकड़ी घर लाने का धार्मिक महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, रावण दहन की लकड़ी और राख को घर लाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है। यह भी माना जाता है कि इन राख और लकड़ियों में भगवान राम की शक्ति समाहित होती है, जो आपके घर को बुरी नजर और आपदाओं से बचाती है।
राख को पूजा के स्थान पर रखा जाता है ताकि घर में सुख-समृद्धि बनी रहे। कई लोग इसे खेतों में भी डालते हैं, यह मानते हुए कि इससे फसल अच्छी होती है।
रावण दहन की राख के पीछे वैज्ञानिक दृष्टिकोण
सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी रावण दहन की राख महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह राख लकड़ी और प्राकृतिक सामग्री से बनी होती है, जो पर्यावरण के लिए हानिकारक नहीं है। कुछ लोगों का मानना है कि यह राख वातावरण को शुद्ध करती है और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में मददगार होती है।
कई ग्रामीण क्षेत्रों में लोग इस राख को अपने खेतों में मिलाते हैं ताकि फसल में कीड़े न लगें और मिट्टी की गुणवत्ता बेहतर हो सके। इससे यह पता चलता है कि इस परंपरा के पीछे सिर्फ धार्मिक कारण ही नहीं, बल्कि पर्यावरण और कृषि से जुड़े फायदे भी हैं।
लकड़ी घर लाने की परंपरा
रावण दहन की बची हुई लकड़ियों को घर लाने की परंपरा भी बेहद खास है। यह माना जाता है कि ये लकड़ियाँ परिवार को नकारात्मक शक्तियों से बचाती हैं और घर में सुख-शांति बनाए रखती हैं। इन लकड़ियों को घर के दरवाजों के पास रखा जाता है, ताकि घर में किसी तरह की बुरी नजर या दुर्भाग्य का प्रवेश न हो सके।
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