दुर्गा मंदिर वाराणसी : काशी में देवी का अनोखा मंदिर
Kashi Durga Kund Temple Varanasi : भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में शामिल उत्तरप्रदेश की प्राचीन धार्मिक नगरी वाराणसी में हजारों साल पूर्व स्थापित श्री काशी विश्वनाथ मंदिर विश्वप्रसिद्ध है। यहां पर मां गंगा का संगम स्थल भी है। यहां पर माता दुर्गा का एक प्रसिद्ध मंदिर है। आओ जानते हैं इस मंदिर के बारे में संक्षिप्त जानकारी।
यहां पर एक प्राचीन कुंड है जहां पर मां दुर्गा का भव्य मंदिर स्थित है। चैत्र और शारदीय नवरात्रि में यहां पर भक्तों की भीड़ उमड़ती है। इसके अलावा सावान माह और विभिन्न त्योहारों पर भी माता के दर्शन करने के लिए लोग दूर दूर से आते हैं।
दुर्गा मंदिर वाराणसी:
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कहते हैं कि यहां पर मां दुर्गा का बहुत ही प्राचीन स्थान है जिसका उल्लेख पुराणों के काशी खण्ड में भी किया गया है।
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मान्यता है कि असुर शुंभ और निशुंभ का वध करने के बाद मां दुर्गा ने यहां विश्राम किया था।
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आदिकाल में काशी में केवल 3 ही देव स्थान थे, पहला काशी विश्वनाथ, दूसरा मां अन्नपूर्णा और तीसरा दुर्गाकुण्ड।
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प्राचीन दुर्गाकुण्ड के देवी स्थान पर 1760 में बंगाल की रानी भवानी ने मंदिर का निर्माण कराया।
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यह मंदिर लाल पत्थरों से बना है जहां माता दुर्गा आदि शक्ति स्वरूप और यंत्र के रूप में विराजमान हैं।
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कुछ लोग यहां तंत्र पूजा करने के लिए भी आते हैं, परंतु यह बहुत ही विशेष दिनों में खास कर गुप्त नवरात्र में आते हैं।
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यहां पर स्थित हवन कुंड में हर रोज हवन किया जाता है।
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पौराणिक मान्यता के अनुसार, जहां माता स्वयं प्रकट होती हैं, वहां मूर्ति स्थापित नहीं करके केवल चिन्ह की पूजा करते हैं।
दुर्गा मंदिर की अनोखी कथा:
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यहां की पौराणिक कथा दुर्गा कुण्ड से जुड़ी है।
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एक स्वयंवर के दौरान यहां बहुत रक्तपात हुआ था जिससे यह कुंड भर गया था।
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कहते हैं कि काशी नरेश सुबाहू ने अपनी बेटी के स्वयंवर की घोषणा की थी।
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स्वयंवर के पूर्व राजकुमारी को स्वप्न हुआ कि उसका विवाह राजकुमार सुदर्शन के साथ हो रहा है।
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राजकुमारी ने अपना स्वप्न अपने पिता सुबाहू को बताया, राजा सुबाहू इस विवाह के विरुद्ध थे।
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राजा सुबाहू ने राजकुमार सुदर्शन को युद्ध की चुनौती थी।
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राजकुमार सुदर्शन ने पहले मां भगवती की आराधना की और विजय होने का आशीर्वाद मांगा।
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कहते हैं कि मां के आशीर्वाद से राजकुामर के सभी विरोधी युद्ध में मारे गए।
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यहां इतना रक्तपात हुआ कि रक्त का कुंड बन गया, जो बाद में दुर्गाकुंड के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
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इसके बाद राजकुमारी का विवाह राजकुमार सुदर्शन के साथ हुआ।