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Written By WD feature Desk
Last Modified: शुक्रवार, 5 जुलाई 2024 (16:30 IST)

पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान की कहानी

shyama prasad mukherjee
Dr. Shyama Prasad Mukherjee: भारतीय जनसंघ के संस्थापक, क्रांतिकारी, देशभक्त और समाज सेवक डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई, 1901 को एक संभ्रांत परिवार में हुआ था। उनके पिता आशुतोष बाबू अपने जमाने ख्यात शिक्षाविद् थे। डॉ. मुखर्जी ने 22 वर्ष की आयु में एमए की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा उसी वर्ष आपका विवाह भी सुधादेवी से हुआ। उनको दो पुत्र और दो पुत्रियां हुईं।
 
डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी 24 वर्ष की आयु में कोलकाता विश्वविद्यालय सीनेट के सदस्य बने। उनका ध्यान गणित की ओर विशेष था। इसके अध्ययन के लिए वे विदेश गए तथा वहां पर लंदन मैथेमेटिकल सोसायटी ने उनको सम्मानित सदस्य बनाया। वहां से लौटने के बाद डॉ. मुखर्जी ने वकालत तथा विश्वविद्यालय की सेवा में कार्यरत हो गए।
 
डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी को महानता के सभी गुण विरासत में मिले थे। सन् 1939 से कर्मक्षेत्र के रूप में राजनीति में भाग लिया और आजीवन इसी में लगे रहे। उन्होंने गांधीजी व कांग्रेस की नीति का विरोध किया, जिससे हिन्दुओं को हानि उठानी पड़ी थी। उन्होंने नेहरूजी और गांधीजी की तुष्टिकरण की नीति का सदैव खुलकर विरोध किया। यही कारण था कि उनको संकुचित सांप्रदायिक विचार का द्योतक समझा जाने लगा।
 
अगस्त 1947 को स्वतंत्र भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में एक गैर-कांग्रेसी मंत्री के रूप में उन्होंने वित्त मंत्रालय का काम संभाला। डॉ. मुखर्जी ने चितरंजन में रेल इंजन का कारखाना, विशाखापट्टनम में जहाज बनाने का कारखाना एवं बिहार में खाद का कारखाने स्थापित करवाए। उनके सहयोग से ही हैदराबाद निजाम को भारत में विलीन होना पड़ा। 1950 में भारत की दशा दयनीय थी। इससे डॉ. मुखर्जी के मन को गहरा आघात लगा। उनसे यह देखा न गया और भारत सरकार की अहिंसावादी नीति के फलस्वरूप मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देकर संसद में विरोधी पक्ष की भूमिका का निर्वाह करने लगे। 
 
एक ही देश में दो झंडे और दो निशान भी उनको स्वीकार नहीं थे। अतः कश्मीर का भारत में विलय के लिए डॉ. मुखर्जी ने प्रयत्न प्रारंभ कर दिए। इसके लिए उन्होंने जम्मू की प्रजा परिषद पार्टी के साथ मिलकर आंदोलन छेड़ दिया। उस समय अटलबिहारी वाजपेयी तत्कालीन विदेश मंत्री, डॉ. बर्मन, वैद्य गुरुदत्त और टेकचंद आदि को लेकर उन्होंने 8 मई 1953 को जम्मू के लिए कूच किया। 
 
सीमा प्रवेश के बाद उनको जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। डॉ. मुखर्जी 40 दिनों तक कश्मीर की जेल में बंद रहे और 23 जून 1953 को जेल में उनकी रहस्यमय ढंग से मृत्यु हो गई। तथा भारतीय जनसंघ के संस्थापक एवं राजनीति और शिक्षा के क्षेत्र में सुविख्यात कहलाने वाले डॉ. मुखर्जी की 23 जून, 1953 को मृत्यु की घोषणा की गईं। एक महीने से ज्यादा वक्त तक जेल में बंद रहे डॉ. मुखर्जी का स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता जा रहा था, पीठ दर्द और बुखार ने उन्हें घेर रखा था। कहा जाता है कि तब डॉ. अली मोहम्मद ने उनकी जांच करके उन्हें एक इंजेक्शन दिया और उसके कुछ घंटों बाद ही उनका उनका देहांत हो गया था।
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