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Written By Author आकांक्षा दुबे

अंग्रेजों ने समझा था अनपढ़, ट्रेन में बैठे बता दिया था पटरी टूटी है

अंग्रेजों ने समझा था अनपढ़, ट्रेन में बैठे बता दिया था पटरी टूटी है - M Vishweshwariah
एम. विश्वेश्वरैया के जन्मदिन पर जानें उनकी खास बातें
 
भारत के महान इंजीनियर सर एम. विश्वेश्वरैया के जन्मदिन को इंजीनियर दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। यह दिन उन सभी इंजीनियरों को समर्पित है जो मानव जीवनशैली में रचनात्मक बदलाव करने के लिए लगातार प्रयास करते रहते हैं। सर विश्वेश्वरैया ने ही देश में इंजीनियरिंग को एक अलग पहचान दी। उन्हें भारतीय प्रौद्योगिकी का जनक कहा जाता है। सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान उन्होंने कई कठिन परिस्थितियां देखी लेकिन कभी हार नहीं मानी। उनके जीवन के कई किस्से आज भी हमें सीख देते हैं।
 
अंग्रेज़ों के शासन के समय की बात है। तब सर विश्वेश्वरैया ट्रेन में यात्रा कर रहे थे। उसमें अधिकतर अंग्रेज़ सवार थे। सांवले रंग के विश्वेश्वरैया साधारण वेशभूषा में थे इसलिए अंग्रेज उन्हें मूर्ख और अनपढ़ समझ रहे थे और लगातार उनका मज़ाक बना रहे थे। हालांकि विश्वेश्वरैया उनकी बातों पर ध्यान नहीं दे रहे थे। यात्रा के दौरान अचानक उन्होंने ट्रेन की चैन खींच दी। तेज़ रफ़्तार में जा रही ट्रेन अचानक रुकी तो सभी यात्री उन पर गुस्सा हो गए।
 
कुछ देर बाद गार्ड आया और पूछने लगा कि चैन किसने खींची है? भीड़ में मौजूद साधारण से दिख रहे विश्वेश्वरैया ने कहा, 'मैंने खींची है। मुझे लगता है कि यहां से कुछ दूरी पर ट्रेन की पटरी टूटी हुई है।' ट्रेन के गार्ड ने आगे पूछा, 'आपको कैसे पता?' तो उन्होंने कहा कि ट्रेन की गति में अंतर आ गया है। पटरी से गूंजने वाली आवाज़ की गति से खतरे का आभास हो गया है। 
 
...और पटरी देखकर दंग रह गए लोग : गार्ड तुरन्त उन्हें लेकर जब कुछ दूरी पर पहुंचा तो ये देखकर दंग रह गया कि वास्तव में एक जगह से पटरी के जोड़ खुले हुए है। दूसरे यात्री भी साथ-साथ आए और जब उन्हें समझ आया कि जिस शख्स को वे अनपढ़ समझ रहे थे, उन्हीं की सूझबूझ से जान बच गई तो सब उनकी प्रशंसा करने लगे। लोग सर विश्वेश्वरैया से माफी भी मांगने लगे जिस पर उन्होंने कहा, ‘आप सब ने मुझे जो कुछ भी कहा, मुझे तो याद भी नहीं है।’
 
कहते थे, बुढ़ापा मेरे घर से निराश होकर लौट जाता है : सर विश्वेश्वरैया की आयु 100 वर्ष से अधिक थी और उन्होंने अंत तक एक सक्रिय जीवन व्यतीत किया। एक बार एक व्यक्ति ने उनसे पूछा, 'आपकी लंबी आयु का रहस्य क्या है?' उन्होंने उत्तर दिया, 'जब बुढ़ापा मेरा दरवाज़ा खटखटाता है तो मैं भीतर से जवाब देता हूं कि विश्वेश्वरैया घर पर नहीं है। और वह निराश होकर लौट जाता है। बुढ़ापे से मेरी मुलाकात ही नहीं हो पाती तो वह मुझ पर हावी कैसे हो सकता है?'
 
इन विशेषताओं के लिए भी मिली पहचान :
 
तेज़ स्मरण शक्ति : डॉ. विश्वेश्वरैया को उनकी तेज़ स्मरण शक्ति के लिए भी पहचान मिली। वे लगातार पढ़ते थे और समस्या आने पर उन्हें याद रहता था कि कौन-सा हल किताब के किस पन्ने पर लिखा है।
 
समय के पाबंद : वे समय के बहुत पाबंद थे और अपने सहकर्मियों से भी समय से काम करने की अपेक्षा रखते थे, देर होने पर वे उन्हें टोक देते थे। वे कभी भी पक्षपात नहीं करते थे।
 
खुद ही लिखते थे भाषण : विश्वेश्वरैया अक्सर तैयारी के साथ भाषण देते थे और खुद ही लिखकर टाइप भी करवा लेते थे।
 
लड़कियों के लिए बनवाया अलग होस्टल : विश्वेश्वरैया को मैसूर में लड़कियों के लिए अलग हॉस्टल और पहला फर्स्ट ग्रेड कॉलेज (महारानी कॉलेज) खुलवाने का श्रेय जाता है। उन्होंने निपुण छात्रों को विदेश में अध्ययन के लिए छात्रवृत्ति की व्यवस्था भी करवाई और कई कॉलेज भी खुलवाए। उनके ही प्रयासों के चलते मैसूर विश्वविद्यालय की स्थापना हुई जो देश के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक है।
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