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दबे पांव दस्तक देती महंगाई

दबे पांव दस्तक देती महंगाई - Inflation, Central Government, BJP, Narendra Modi
- अजय कुमार, लखनऊ
2014 के लोकसभा चुनाव के समय बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेन्द्र मोदी ने तत्कालीन यूपीए की मनमोहन सरकार के खिलाफ महंगाई को बड़ा मुद्दा बनाया था। चुनाव प्रचार के दौरान सबसे पहले हिमाचल प्रदेश की रैली में महंगाई का मुद्दा छेड़कर मोदी ने आम जनता की नब्ज टटोली थी। 
महंगाई की मार झेल रही जनता को मोदी ने महंगाई के मोर्चे पर अच्छे दिन लाने का भरोसा दिलाया तो मतदाताओें ने मोदी की झोली वोटों से भर दी। आम चुनाव में 10 वर्ष पुरानी यूपीए सरकार को जड़ से उखाड़ फेंकने में महंगाई फैक्टर मोदी का सबसे कारगर ‘हथियार’ साबित हुआ था, लेकिन आज करीब साढ़े 3 वर्षों के बाद भी महंगाई डायन ही बनी हुई है। 
 
महंगाई नियंत्रण करने की नाकामी मोदी सरकार पर भारी पड़ती जा रही है। ऐसा लगता है कि अब तो जनता ने भी यह मान लिया है कि कम से कम महंगाई के मोर्चे पर मोदी और मनमोहन सरकार में ज्यादा अंतर नहीं है। बस, फर्क है तो इतना भर है कि मनमोहन सरकार की नाकामी का ढिंढोरा बीजेपी वालों ने ढोल-नगाड़े के साथ पीटा था, जबकि कांग्रेस और विपक्ष महंगाई को मुद्दा ही नहीं बना पा रहा है। शायद यही वजह है, जनता के बीच अब महंगाई पर चर्चा कम हो रही है। 
 
एक समय था जब प्याज या टमाटर के दाम में जरा-सी भी वृद्धि होती थी तो बीजेपी वाले पूरे देश में हाहाकार मचा देते थे, लेकिन आज हमारे नेतागण और तमाम बुद्धिजीवी मोदी सरकार को घेरने के लिए महंगाई को मुद्दा बनाने की बजाए सांप्रदायिकता, विचारधारा की लड़ाई, राष्ट्रवाद की बहस में ही उलझे हुए हैं। 
 
हाल ही में टमाटर 100 रुपए किलो तक बिक गया, मगर यह सरकार के खिलाफ मुद्दा नहीं बन पाया। इसी प्रकार आजकल प्याज भी गृहिणियों को रुला रहा है। पिछले वर्ष दाल के भाव आसमान छूने लगे थे। उड़द सहित कुछ अन्य दालें तो 200 रुपए किलो तक बिक गईं। गरीब की थाली से दाल गायब हुई, मगर विपक्ष गरीबों का दर्द नहीं बांट सका। 
 
इन दिनों सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, ट्विटर आदि पर एक पुरानी तस्वीर वायरल हो रही है जिसमें दिखाया जा रहा है कि कांग्रेस के समय जब रसोई गैस के दाम बढ़ते थे तो किस तरह से बीजेपी के नेता अरुण जेटली एवं सुषमा स्वराज आदि धरने पर बैठ जाते थे। अभी रसोई गैस के दाम बढ़ते ही स्मृति ईरानी की पुरानी तस्वीर और ट्वीट सोशल मीडिया पर वायरल होने लगी थी जिसमें वे मनमोहन सरकार के समय एलपीजी सिलेंडर के दाम बढ़ने पर सिलेंडर को लेकर सड़क पर प्रदर्शन करती नजर आ रही हैं, लेकिन कांग्रेस की तरफ से ऐसा नजारा नहीं देखने को मिलता है।
 
बीते अगस्त महीने की बात है। केंद्र की मोदी सरकार ने बिना सब्सिडी वाले एलपीजी गैस सिलेंडर के दाम में 86 रुपए की बढ़ोतरी कर दी थी। सरकार ने इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय बाजार में एलपीजी के दाम बढ़ना वजह बताया। जो बिना सब्सिडी वाला एलपीजी सिलेंडर 466.50 रुपए का था, उसके बाद से 6 किस्तों में यह 271 रुपए यानी 58 प्रतिशत महंगा हो चुका है। 
 
तेल कंपनियों ने सब्सिडीशुदा रसोई गैस सिलेंडर का दाम भी मामूली 13 पैसे बढ़ाकर 434.93 रुपए प्रति सिलेंडर कर दिया। इससे पहले इसमें 9 पैसे की वृद्धि की गई। 2 मामूली वृद्धि से पहले सब्सिडीशुदा गैस के दाम 8 बार बढ़े हैं और हर बार करीब 2 रुपए की इसमें वृद्धि की गई, मगर कहीं कोई हाय-तौबा नहीं हुई।
 
बात 2014 से आज तक बढ़ती महंगाई की की जाए तो 26 मई 2014 को 1 किलो आटा देश के विभिन्न शहरों में 17 से 43 रुपए के बीच मिल जाता था जबकि मई 2017 में आटे की कीमत 19 से 50 रुपए प्रतिकिलो के बीच है। चावल के दाम 20 से 40 रुपए की जगह 18 से 47 रुपए प्रति किलो हैं।
 
अरहर की दाल पहले 61 से 86 रुपए प्रति किलो पर मिल रही थी जबकि अब ये कीमत 60 से 145 रुपए के बीच है। बीच में ये 200 रु. प्रतिकिलो तक जा पहुंची थी। 31 से 50 रुपए के बीच मिलने वाली चीनी अब 34 से 56 रुपए प्रति किलो मिल रही है। दूध की कीमत 25 से 46 रुपए से बढ़कर 28 से 62 रुपए प्रति लीटर है यानी खाने-पीने की प्रमुख वस्तुओं की महंगाई कम होने के बजाय बढ़ गई है।
 
हालांकि महंगाई का सरकारी आंकड़ा मनमोहन सरकार के मुकाबले राहतभरा है। मई 2014 में खुदरा महंगाई दर जहां 8.2 प्रतिशत के आसपास थी तो अप्रैल 2017 का आंकड़ा 2.99 प्रतिशत रहा। इसी तरह खाने-पीने की चीजों की खुदरा महंगाई दर 8.89 फीसदी से घटकर 0.61 पर आ गई।
 
दिल्ली में सब्सिडी वाला रसोई गैस का सिलेंडर मई 2014 के 414 रुपए के मुकाबले अब 442.77 रुपए में मिल रहा है जबकि डीजल और पेट्रोल के दामों में अंतर नहीं आया है। लेकिन विरोधियों की दलील है कि दुनिया के बाजार में तेल-डीजल बनाने का कच्चा माल पहले की अपेक्षा जितना सस्ता हुआ है, मोदी सरकार उस अनुपात में पेट्रोल-डीजल सस्ता नहीं कर रही है।
 
अगस्त में खुदरा महंगाई दर भी थोक महंगाई दर की तरह 4 महीने की ऊंचाई पर पहुंच गई। अगस्त में थोक महंगाई की दर जुलाई के 1.88 फीसदी से बढ़कर 3.24 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई। अगस्त 2016 में थोक महंगाई सूचकांक में 1.09 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी। अगस्त में थोक महंगाई में आई इस तेजी की वजह खाद्य पदार्थों और ईंधन की कीमतों में आई तेजी है। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले महीनों में महंगाई में और इजाफा हो सकता है, ऐसे में ब्याज दरों में कटौती के लिए अभी इंतजार करना पड़ सकता है। 
 
थोक महंगाई सूचकांक में आई तेजी की सबसे बड़ी वजह सब्जियों के दामों में हुई बढ़ोतरी रही है। जुलाई में सब्जियों की महंगाई दर्शाने वाले सूचकांक में 21.95 फीसदी की वृद्धि हुई थी लेकिन अगस्त में यह वृद्धि 44.91 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई। इसके पीछे बड़ी वजह प्याज की कीमतों में आई तेजी रही। प्याज की कीमत अगस्त महीने में 88.46 फीसदी की दर से बढ़ी, जो जुलाई में 9.50 फीसदी के स्तर पर थी। इसके अलावा फल, सब्जियों, मीट, मछली की कीमतों में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। ईंधनजनित महंगाई भी अगस्त में दोगुनी हो गई। 
 
जुलाई में फ्यूल एंड पॉवर सेगमेंट में महंगाई दर 9.99 फीसदी रही, जो जुलाई 1016 में 4.37 फीसदी पर थी। पेट्रोल और डीजल की लगातार बढ़ रहीं कीमतें और पॉवर टेरिफ में की गई बढ़ोतरी ही फ्यूल एंड पॉवर सेगमेंट में आई तेजी का असली कारण है।
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