कोरोना अब गांवों में महामारी के रुप में फैल चुका है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्य में गांवों की बड़ी आबादी कोरोना संक्रमण की चपेट में है,लोग कोरोना से मर रहे है और परिजन उनकी लाशों को नदियों में बहा रहे है। उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार तक गंगा और उसकी सहायक नदियों में तैरती लाशों के दृश्य विचलित कर देने वाले है।
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में पड़ने वाले एशिया के सबसे बड़े गांव गहमर वह इलाका है जहां सबसे पहले गंगा तैरती हुई लाशें देखी गई थी। एशिया के सबसे गांव का दर्जा रखने वाले गहमर में कोरोना को लेकर क्या हालात है और आखिरी गंगा में तैरती लाशों के पीछे की असली कहानी क्या है,यह बता रहे है गहमर गांव के निवासी और इतिहास के शोध छात्र शिवेंद्र प्रताप सिंह,'वेबदुनिया' पर पढ़े शिवेंद्र की जुबानी गहमर गांव की रियल कहानी।
गहमर, मात्र गाँव नहीं, एक भावना है.गंगा की गोद में बसा उत्तर प्रदेश के गाज़ीपुर जिले में स्थित,यह एशिया का सबसे बड़ा गाँव हैं। बीते कुछ दिनों से गहमर में कोविड के संक्रमण से लगातार मौतें हो रही हैं,स्वयं मेरे बड़े पिता जी जो आर्मी से सेवानिवृत अधिकारी थे,की मौत कोरोना संक्रमण से हो गई। 4 मई को सुबह जब हम उनके अंतिम संस्कार के लिए गहमर के नरवा घाट गये तो उस दौरान अन्य 8 लाशें भी लाई गई थीं. चूकीं मेरा घर गंगा घाट मार्ग पर है, सो तब से अब तक रोज ही औसतन 3 से 5 लाशें रोज अंतिम संस्कार के लिए लाए जाते हुए देखता हूँ.30 अप्रैल और 1 मई के मध्य यहाँ 50 से अधिक लाशों का अंतिम संस्कार किये जाने की चर्चा है।
सामान्यत: एक व्यक्ति की चिता के लिए 7 से 8 मन लकड़ी चाहिए होता है,हालात ये हैं की दाह संस्कार के लिए लकडियाँ उपलब्ध कर पाना कठिन हो गया है,लोग मुखग्नि की सामान्य प्रक्रिया के पश्चात लाशें गंगा में प्रवाहित कर दे रहें हैं. स्वयं हम भी अपने बड़े पिताजी की चिता के लिए लकड़ियों का प्रबंध काफ़ी परेशानी के बाद कर पाये. गाँव के नव निर्वाचित प्रधान बलवंत सिंह ने ग्रामीणों के सहयोग से कई गरीब परिवारों के लोगों की चिता के लिए लकड़ियों का प्रबंध किया है,और लगातार इस मदद में जुटे हैं. हालांकि गाँव की लचर स्वास्थ्य सेवाओं के विषय में वे भी कोई आश्वासन देने की हालत में नहीं हैं.उन्होंने लाशों के निस्तारण में भी पुलिस-प्रशासन का सहयोग किया।
लेकिन सरकार और प्रशासन इससे मानो आँखें मुंदे बैठा है। गांव की स्वास्थ्य व्यवस्था के बारे में पता करने पर गांव में ही प्रैक्टिस करने वाले पट्टी गोविन्दराय निवासी चिकित्सक डॉ.राणा प्रताप सिंह कहतें हैं,"इतनी बड़ी आबादी पर मात्र एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है और एक मात्र चिकित्सक की नियुक्ति और जहाँ कोई अन्य सुविधा नहीं है ना तो आकस्मिक चिकित्सा की, ना पर्याप्त ऑक्सीजन की और ना ही कोविड टेस्टिंग की व्यवस्था है।
गांव में आबादी का एक बड़ा हिस्सा कोरोना संक्रमित हो सकता है. वर्तमान में बुखार और टायफाइड से पीड़ित ज्यादातर मरीज़ो में कोरोना के लक्षण हैं.आप उस भयावह स्थिति की कल्पना कीजिये की अगर संक्रमण ऐसे ही फैलता रहा और मौतों में तीव्रता आई तो क्या होगा? यहां दस फीसदी आबादी का भी टीकाकरण नहीं हो पाया है. हम अपनी सीमित क्षमता से कितनी जाने बचा पाएंगे, जबकि सरकार और प्रशासन इसे लेकर उदासीन बना हुआ है."।
गंगा के घाटों पर मिली लाशें- शिवेंद्र आगे कहते है कि लेकिन बात सिर्फ इतनी सी नहीं हैं. एक नया संकट इस सप्ताह तब शुरू हुआ जब गहमर के विभिन्न गंगा घाटों पर बड़ी संख्या में लाशें उतराती मिली। स्थानीय पत्रकार उपेंद्र सिंह कहते हैं कि "नरबतपुर, जो बिहार का सीमावर्ती गांव है, और बिहार के बक्सर जिले में स्थित है,जहाँ गंगा मुड़ती हैं और कर्मनाशा नदी उसमें आकर मिलती है, वहाँ कम से कम 40 से 45 लाशें किनारे पर उतराती मिलीं. इधर गहमर थाना क्षेत्र के बारा गाँव में भी 30 से 40 लाशें मिलीं. इसके बाद गहमर के भी सभी घाटों पर लाशें दिखने की सूचना मिलने लगीं.हालांकि प्रशासन आंकड़े छुपा रहा है"।
इस पूरे मामले पर पट्टी चौधरीराय के रहने वाले सोशल एक्टिविस्ट ईश्वरचंद्र जी का कहना है की, " ये दो तरह के हो सकतें हैं, या तो ये हत्यायें की गई लाशें हैं क्योंकि सारे लोग नकार रहें हैं की ये उनके इलाके से सम्बंधित हैं. जबकि पुलिस-प्रशासन की ये जिम्मेदारी है की वो इनकी जांच करे, किंतु वह अपनी जिम्मेदारी से बच रहा है. दूसरा अगर ये कोरोना से मरने वालों की लाशें हैं तो ये किस क्षेत्र से सम्बंधित है और लावारिस रूप से कैसे मिल रही हैं"
आज गहमर और उसके आस-पास के गाँवों में दहशत का माहौल है. प्रशासन भी लीपापोती में लगा है. लाशों के दाह संस्कार करने वाले स्थानीय डोम समाज के लोग लाशों की संख्या प्रशासनिक आंकड़ों से दो या ढाई गुनी अधिक बता रहें हैं. इन परिस्थितियों को देखकर कई प्रश्न जनमानस में तैर रहें हैं.जैसे की गाज़ीपुर एक छोटा शहर है जहाँ अगर इतनी मात्रा में कोविड या किसी भी अन्य कारक से मौतें होतीं तो स्थानीय स्तर पर पर्याप्त सूचना उपलब्ध होती किन्तु ऐसा नहीं है.अन्यत्र गाज़ीपुर में ना ही इतने ज्यादा अस्पताल हैं जो इतनी लाशें गंगा में डंप करेंगे.जनता यह कयास लगा रही है क़ी ये लाशें कानपुर,प्रयागराज और वाराणसी क़ी तरफ से बहकर आयी हैं जहाँ से इन्हें अस्पतालों में मृत्यु के पश्चात परिजनों को ना सौंपकर अथवा उनके ना स्वीकार करने सीधे गंगा में फेका गया है।
आजादी बचाओ आंदोलन से जुड़े लोकप्रिय गाँधीवादी चिंतक,समाजसेवी और गहमर के सर्वोदय इंटर कॉलेज के प्रबंधन समिति के सचिव को रामधीरज का कहना है कि, " हम गंगा को माँ कहतें हैं और इसमें सड़ी लाशें बहा रहें हैं. गंगा लाशें ढोने के लिए नहीं है. यह खेती, मानव एवं पशु- पक्षियों के जीवन यापन के लिए हैं, मृत शवों के लिए नहीं है. इन लाशों के विषय में सरकार को जानकारी लेनी चाहिए कि ये लाशें कहाँ से आई ? इतने लोग कैसे मरें ? इन लाशों को किसने फेकां, अस्पताल प्रशासन या सगे- सम्बन्धियों ने ? इससे जनता में अविश्वास बढ़ रहा है. इतने सारे लावारिस लोग कहाँ से आ गये जिनकी लाशें यूँ खुले में सड़ रही है. "
पट्टी टीकाराय के निवासी और संघ के समर्पित स्वयंसेवक बिमलेश सिंह अत्यंत निराशापूर्वक कहतें हैं, बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन सरकार ने हमें निराश्रित मरने के लिए छोड़ दिया है." इन संक्रमित लाशों से जमीन और नदी के साथ भूमिगत जल के प्रदूषण की नवीन समस्या से गाँव को जूझना पड़ेगा. परिस्थितियों की यह कैसी विडंबना है की जिस गाँव के हज़ारों फ़ौज़ी सरहदों की हिफाज़त में लगें हैं, यहां उनके परिवार जीवन की अनिश्चितता से जूझ रहें हैं. यहाँ लोग अजीब निराशा क़ी अवस्था में हैं।
गंगा किनारे लाशों की खबर के बाद अब स्थानीय प्रशासन ने गांव में मुनादी कर लाशों को गंगा में नहीं विसर्जित करने का अनुरोध किया। गाजीपुर के डीेएम एमपी सिंह के मुताबिक प्रशासन की टीम लगातार पेट्रोलिंग रही है और लाउडस्पीकर से लोगों को बता रही है कि वह शव को बिना जलाएं गंगा में प्रवाहित न करें। इसके साथ अंतिम संस्कार के लिए प्रशासन ने पर्याप्त मात्रा में लकड़ी की व्यवस्था के लिए एक बैंक बनाने जा रहा है। वहीं प्रशासन ने नविकों को भी चेतावनी दी है किसी भी शव को गंगा में विर्सजन के लिए नहीं ले जाएं, वहीं नदी के किनारे पुलिस ने गश्त बढ़ा दी है।