* पीटना ही है लकीर तो खींचो नई लकीर
एक बार एक राज-दरबार में एक साहूकार आया जो किसी भी वस्तु को देखकर उसका सही-सही दाम बता देता था। राजा ने उसकी परीक्षा लेने की सोची।
उसने राजकुमार को दरबार में बुलाया और साहूकार से पूछा- क्या तुम हमारे राजकुमार का दाम बता सकते हो। इससे साहूकार सोच में पड़ गया। इससे पहले उसने किसी आदमी का दाम नहीं लगाया था।
उसने राजकुमार को ध्यान से देखा और बोला- महाराज, दाम तो मैं एकदम सही बता दूं गा, लेकिन वचन दें कि आप क्रोधित नहीं होंगे।
राजा बोले - आप निश्चित होकर बताएं।
साहूकार- महाराज, राजकुमार के माथे के लिखे की तो मैं कह नहीं सकता। और वैसे राजकुमार का दाम दो आना रोज से अधिक नहीं है।
राजा बुद्धिमान था। वह साहूकार के कहने का आशय समझ गया कि यदि राजकुमार को वर्तमान में एक साधारण व्यक्ति की तरह काम पर या मजदूरी पर भेजा जाए तो वह दो आना रोज से ज्यादा नहीं कमा पाएगा। राजा ने साहूकार की योग्यता की खूब प्रशंसा की और उसे ढेर सारे पुरस्कार दिए।
दोस्तों, सही तो है। राजा के बेटे होने के नाते आपको बहुत कुछ मिलेगा, मिलता भी है। लेकिन यदि राजा का नाम, कुल आपके साथ न जुड़ा हो, तो फिर तो आपकी कीमत आपकी अपनी योग्यता, क्षमता, दक्षता और सामर्थ्य के अनुसार ही होगी ना। और यदि आपमें ये खूबियां होंगी, तभी लोग आपके लिए कहेंगे कि ये है योग्य पिता की योग्य संतान।
कहा भी गया है कि 'ऊंचे कुल का जनमियां जे करनी ऊंच न होइ। सोवरन कलस सुरै भर्या, साधु निंद्या सोइ॥ यानी ऊंचे कुल में जन्म लेने के बावजूद आपकी करनी ऊंची नहीं है तो आप मदिरा से भरे हुए कलश की तरह हैं जिसकी समझदार लोग निंदा ही करते हैं। इसलिए यदि आपका जन्म ऊंचे, संपन्न, नामी कुल, परिवार में हुआ है तो आपको अपने आपको इतना योग्य बनाना होगा ताकि आप उसका नाम और आगे बढ़ा सकें, ऊंचा उठा सकें, रोशन कर सकें।
और अगर आप केवल नाम के भरोसे रहेंगे तो आप अपना और कुल दोनों का नाम डुबोएंगे। इसलिए यदि आप भी अपने पिता की संपन्नता के चलते अपने करियर और व्यक्तित्व के विकास पर ध्यान नहीं दे रहे हैं तो याद रखिए कि बड़े बाप की औलाद होने के जितने फायदे हैं, उतने ही नुकसान भी।
इसकी वजह से सभी आपकी तुलना आपके पिता से करने लगते हैं। यदि आप अपने पिता से उन्नीस भी बैठते हैं तो आप लोगों की नजरों में नीचे ही रहते हैं। आपको तो पिता के बराबर या ज्यादा ही होना होगा। ईश्वर ने आपको संपन्न परिवार में जन्म देकर वैसे ही बहुत सी परेशानियों से बचा लिया है, जिनका सामना एक आम आदमी को करना पड़ता है। इसलिए जब माहौल आपके अनुकूल है तो उसका फायदा न उठाने वाला बेवकूफ ही कहलाएगा, कहलाता है।
दूसरी ओर, यदि आप अपने कुल, परिवार का नाम आगे बढ़ाना चाहते हैं तो जरूरी है कि आप कुछ अलग करें, करके दिखाएं। तभी आपकी भी अपनी अलग पहचान बनेगी, वर्ना लकीर के फकीर बनकर काम करेंगे तो आप लकीर ही पीटते रह जाएंगे। वैसे भी बदलते दौर में यह जरूरी है कि आप समय के अनुसार बदलते रहें। लकीर ही पीटना है तो नई लकीर खींचकर उसे पीटें ताकि अलग लगें। कहते भी हैं कि लीक-लीक गाड़ी चले, लीकहिं चले कपूत। लीक छोड़ तीनहिं चलें, सायर, सिंह, सपूत॥
यानी लकीर पर तो गाड़ी चलती है, उसे चलना जरूरी है। या फिर लीक पर कपूत चलता है, क्योंकि योग्यता के अभाव में वह समय की मांग के अनुरूप कुछ नया, कुछ हटके करने की नहीं सोच पाता। वह तो पुरानी परिपाटी पर चलने में ही भलाई समझता है और पीछे रह जाता है। जबकि सागर, सिंह और सपूत लीक छोड़कर चलते हैं और अपने-अपने क्षेत्र में राज करते हैं। इसलिए अपनी लकीर बड़ी करना है तो लकीर को छोड़कर चलना पड़ेगा।
और अंत में, आज पुत्रदा एकादशी पर हम इस बात को लीक करके यानी जोर देकर कहना चाहेंगे कि आपको अपने आपको योग्य बनाना ही होगा ताकि आपके पालक आप जैसा पुत्र/पुत्री पाकर अपने आपको धन्य समझें, गौरवान्वित महसूस करें। चलूं, नल की टोटी बदलूं। पुरानी लीक कर रही है।