बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के राजा शुद्धोदन के यहां वैशाख पूर्णिमा को हुआ था। इस पूर्णिमा का बुद्ध पूर्णिमा कहा जाता है। उनकी माता का नाम महामाया देवी था। इस बार अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार उनका जन्मोत्सव 26 मई 2021 बुधवार को मनाया जा रहा है। आओ जानते हैं उनके संबंध में 10 रोचक बातें।
1. गौतम बुद्ध का जन्म नाम सिद्धार्थ था। सिद्धार्थ की मौसी गौतमी ने उनका लालन-पालन किया क्योंकि सिद्धार्थ के जन्म के सात दिन बाद ही उनकी मां का देहांत हो गया था।
2. गौतम बुद्ध शाक्यवंशी छत्रिय थे। इसीलिए उन्हें शाक्यमुनि भी कहा जाता था। एक मान्यता के आधार पर शाक्यों की वंशावली के अनुसार गौतम बुद्ध श्रीराम के पुत्र कुश के वंश में जन्में थे। महाभारत में शल्य कुशवंशी थे और इन्हीं शल्य की लगभग 25वीं पीढ़ी में ही गौतम बुद्ध हुए थे।
3. शोध बताते हैं कि दुनिया में सर्वाधिक प्रवचन बुद्ध के ही रहे हैं। यह रिकॉर्ड है कि बुद्ध ने जितना कहा और जितना समझाया उतना किसी और ने नहीं। धरती पर अभी तक ऐसा कोई नहीं हुआ जो बुद्ध के बराबर कह गया। सैकड़ों ग्रंथ है जो उनके प्रवचनों से भरे पड़े हैं और आश्चर्य कि उनमें कहीं भी दोहराव नहीं है। बुद्ध ने अपने जीवन में सर्वाधिक उप देश कौशल देश की राजधानी श्रावस्ती में दिए। उन्होंने मगध को भी अपना प्रचार केंद्र बनाया। महात्मा बुद्ध ने अपने उपदेश पाली भाषा( मूल रूप में मागधी) में दिए थे। ऐसा कहा जाता है कि वह नियमित रूप से उपवास करते थे और सामान्यतः वह मीलों तक का पैदल ही सफर तय करते थे, जिससे वह चारों तरफ ज्ञान फैला सकें।
4. अंगुत्तर निकाय धम्मपद अठ्ठकथा के अनुसार वैशाली राज्य में तीव्र महामारी फैली हुए थी। मृत्यु का तांडव नृत्य चल रहा था। लोगों को समझ में नहीं आ रहा था कि इससे कैसे बचा जाए। हर तरफ मौत थी। लिच्छवी राजा भी चिंतित था। कोई उस नगर में कदम नहीं रखना चाहता था। दूर दूर तक डर फैला था। भगवान बुद्ध ने यहां रतन सुत्त का उपदेश दिया जिससे लोगों के रोग दूर हो गए।
5. कहते हैं कि एक बार बुद्ध को मारने के लिए एक पागल हाथी छोड़ा गया था लेकिन वह हाथी बुद्ध के पास आकर उनके चरणों में बैठ गया था। यह भी कहा जाता है कि एक बार उन्होंने एक नदी पर पैदल चलकर उसे पार किया था। इस तरह से उनके कई चमत्कारों के बारे में जानकारी मिलती है।
6. गौतम बुद्ध को अपने कई जन्मों की स्मृतियां थीं और यह भी वे अपने भिक्षुओं के भी कई जन्मों को जानते थे। यही नहीं वे अपने आसपास के पशु, पक्षी और पेड़-पौधे आदि के पूर्वजन्मों के बारे में भी भिक्षुओं को बता देते थे। जातक कथाओं में बुद्ध के लगभग 549 पूर्व जन्मों का वर्णन है।
7. वारणसीके निकट सारनाथ में महात्मा बुद्द ने अपना पहला उपदेश पांच पंडितों, साधुओं को दिया, जो बौद्ध परंपरा में धर्मचक्रप्रवर्तन के नाम से विख्यात हैं। महात्मा बुद्ध ने तपस्स एवं मल्लक नाम के दो लोगों को बौद्ध धर्म का सर्वप्रथम अनुयायी बनाया, जिन्हें शूद्र माना जाता था। बौद्ध धर्म ने वर्ण व्यवस्था एवं जाति प्रथा का विरोध करता है।
8. 'मेरा जन्म दो शाल वृक्षों के मध्य हुआ था, अत: अन्त भी दो शाल वृक्षों के बीच में ही होगा। अब मेरा अंतिम समय आ गया है।' आनंद को बहुत दु:ख हुआ। वे रोने लगे। बुद्ध को पता लगा तो उन्होंने उन्हें बुलवाया और कहा, 'मैंने तुमसे पहले ही कहा था कि जो चीज उत्पन्न हुई है, वह मरती है। निर्वाण अनिवार्य और स्वाभाविक है। अत: रोते क्यों हो? बुद्ध ने आनंद से कहा कि मेरे मरने के बाद मुझे गुरु मानकर मत चलना।
9. गौतम बुद्ध के निर्वाण के बाद 6 दिनों तक लोग दर्शनों के लिए आते रहे। सातवें दिन मृत देह को जलाया गया। फिर उनके अवशेषों पर मगध के राजा अजातशत्रु, कपिलवस्तु के शाक्यों और वैशाली के विच्छवियों आदि में भयंकर झगड़ा हुआ। जब झगड़ा शांत नहीं हुआ तो द्रोण नामक ब्राह्मण ने समझौता कराया कि अवशेष आठ भागों में बांट लिये जाएं। ऐसा ही हुआ। आठ स्तूप आठ राज्यों में बनाकर अवशेष रखे गये। बताया जाता है कि बाद में अशोक ने उन्हें निकलवा कर 84000 स्तूपों में बांट दिया था। गौतम बुद्ध के अस्थि अवशेषो पर भट्टि (द.भारत) में निर्मित प्रचीनतम स्तूप को महास्तूप की संज्ञा दी गई है।
10. भगवान बुद्ध ने भिक्षुओं के आग्रह पर उन्हें वचन दिया था कि मैं 'मैत्रेय' से पुन: जन्म लूंगा। तब से अब तक 2500 साल से अधिक समय बीत गया। कहते हैं कि बुद्ध ने इस बीच कई बार जन्म लेने का प्रयास किया लेकिन कुछ कारण ऐसे बने कि वे जन्म नहीं ले पाए। अंतत: थियोसॉफिकल सोसाइटी ने जे. कृष्णमूर्ति के भीतर उन्हें अवतरित होने के लिए सारे इंतजाम किए थे, लेकिन वह प्रयास भी असफल सिद्ध हुआ। अंतत: ओशो रजनीश ने उन्हें अपने शरीर में अवतरित होने की अनुमति दे दी थी। उस दौरान जोरबा दी बुद्धा नाम से प्रवचन माला ओशो ने कही।
यह संयोग है या कि प्लानिंग कि वैशाख पूर्णिमा के दिन बुद्ध का जन्म नेपाल के लुम्बिनी वन में ईसा पूर्व 563 को हुआ। उनकी माता अपने नैहर देवदह जा रही थीं, तो कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से 8 मील दूर पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक स्थान के पास उस काल में लुम्बिनी वन हुआ करता था वहीं पुत्र को जन्म दिया। इसी दिन (पूर्णिमा) 528 ईसा पूर्व उन्होंने बोधगया में एक वृक्ष के नीचे जाना कि सत्य क्या है और इसी दिन वे 483 ईसा पूर्व को 80 वर्ष की उम्र में दुनिया को कुशीनगर में अलविदा कह गए।