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Written By BBC Hindi
Last Modified: रविवार, 7 नवंबर 2021 (08:11 IST)

वाराणसी: मंदिरों के आसपास मीट पर प्रतिबंध के बाद नए शाकाहारी व्यंजनों की बहार

वाराणसी: मंदिरों के आसपास मीट पर प्रतिबंध के बाद नए शाकाहारी व्यंजनों की बहार - vegetarian food in varansi
अमृता सरकार, बीबीसी ट्रैवल
कम से कम 1800 ईसा पूर्व से बसे वाराणसी शहर के बारे में बताया जाता है कि ये दुनिया के सबसे पुराने जीवित शहरों में से एक है। साथ ही ये शहर विश्व के अनुमानित 1.2 अरब हिंदुओं के लिए सबसे पवित्र शहरों में से एक है। मंदिर के बजते घंटों के बीच यहां हर रोज़ हज़ारों भक्त शहर के 88 घाटों पर पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाते हैं।
 
इसके अलावा, वाराणसी के दो श्मशान घाटों (हरिश्चंद्र और मणिकर्णिका) पर हर रोज़ मृतकों के शव लिए शोक संतप्त रिश्तेदार यहां आते हैं। इन दोनों घाटों पर चौबीसों घंटे चिताएं जलती रहती हैं। लोगों का मानना है कि यहां पर जिन लोगों का अंतिम संस्कार होता है, उनके कानों में स्वयं भगवान शिव तारक मंत्र (मोक्ष का मंत्र) कहते हैं।
 
वाराणसी में शाकाहारी भोजन की तलाश
हालांकि, वाराणसी की मेरी यात्रा की वजह इन सबसे बिल्कुल अलग थी। मैं वहां काल का सामना करने या अपनी आत्मा शुद्ध करने नहीं गई थी। इसके बजाय, शहर के अनोखे शाकाहारी व्यंजनों का आनंद लेने के लिए मैंने यहां की यात्रा की।
 
शहर के व्यस्त सड़कों से गुज़रते हुए ड्राइवर और बेहतरीन किस्सागो राकेश गिरी ने मुझे बताया कि हिंदू मान्यताओं के अनुसार कैसे ब्रह्मांड का संहार करने वाले भगवान शिव ने प्राचीन काल में वाराणसी की स्थापना की। वाराणसी में रहने वाले अधिकतर लोगों की तरह राकेश गिरि भी एक उत्साही शैव (शिव भक्त) हैं। और चूंकि शिव के भक्त मानते हैं कि उनके भगवान शाकाहारी हैं, इसलिए वो और वाराणसी के अधिकतर लोग सात्त्विक (शुद्ध शाकाहारी) भोजन करते हैं।
 
राकेश गिरी ने बताया, "मैं और मेरा परिवार कई पीढ़ियों से शुद्ध शाकाहारी है। जो लोग अंडे खाते हैं, उनके घरों में हम पानी पीने से भी मना कर देते हैं।"
 
वाराणसी भले ही भारत की आध्यात्मिक राजधानी हो, पर खाने-पीने के शौकीनों को अपने यहां लुभाने के लिए यह शहर जाना नहीं जाता। खाने-पीने के शौकीन लोग वाराणसी जाने से पहले देश में खानपान के मशहूर गढ़ जैसे दिल्ली, कोलकाता या चेन्नई जाना पसंद करते हैं। लेकिन दुनिया भर के शेफ़ अब वाराणसी की खान-पान की विरासत से प्रेरित हो रहे हैं और अपने रेस्तरां में यहां के व्यंजन तैयार कर रहे हैं।
 
शाकाहारी भोजन का खज़ाना बढ़ाने में जुटे लोग
ऐसे लोगों में शेफ़ विकास खन्ना भी हैं। खन्ना को मैनहट्टन के उनके रेस्त्रां 'जूनून' के लिए 2011 से 2016 के दौरान हर साल एक मिशेलिन-स्टार सम्मान (अच्छे प्रदर्शन के लिए संस्थाओं को मिलने वाला एक तरह का सम्मान) मिला है।
 
उन्होंने बताया कि वो वाराणसी के एक मंदिर में परोसे जाने वाले 'व्रत के कुट्टू' (कुट्टू के आटे से तैयार पुआ) खाकर दंग रह गए थे। खन्ना ने 2020 में ट्रैवल मैगज़ीन 'लोनली प्लैनेट' को बताया, "मैंने मैनहट्टन की अपनी रसोई में इसे फिर से बनाने का बेहतरीन प्रयास किया। इसका स्वाद लाजवाब लगा।"
 
वहीं दो बार के मिशेलिन-स्टार शेफ़ अतुल कोच्चर ने लंदन में एक आधुनिक भारतीय रेस्त्रां खोला है। कोच्चर ने इसका नाम बनारस (वाराणसी का पुराना नाम) रखा है। इन्होंने इसी नाम की अपनी कुकबुक में चने के पुए और टमाटर के सलाद जैसी शाकाहारी फ्यूजन रेसिपी के बारे में लिखा है।
 
भारत के मशहूर शेफ़ संजीव कपूर ने भी वाराणसी के बेहतरीन शाकाहारी व्यंजनों की अपनी पसंद के बारे में लिखा है।
 
बेशक़ ऐसे देश में जहां 80 प्रतिशत लोग हिंदू और 20 प्रतिशत लोग शाकाहारी हैं, वहां शाकाहारी भोजन आसानी से उपलब्ध हैं। हालांकि वाराणसी के शाकाहारी व्यंजनों के मामले में सबसे दिलचस्प बात ये है कि इसकी सात्त्विक और शाकाहारी खूबियां आयुर्वेद और अध्यात्म की भावना से सीधे तौर पर प्रभावित हैं।
 
शाकाहारी भोजन ही क्यों?
सात्त्विक खानपान आयुर्वेद के सिद्धांतों पर आधारित है और ये सनातन धर्म द्वारा निर्धारित शाकाहार के सख़्त मानकों का पालन करता है। जैसे खाना पकाने में प्याज़ और लहसुन के उपयोग की मनाही है। माना जाता है कि इसके सेवन से क्रोध और आक्रामकता जैसी कई चीज़ों को बढ़ावा मिलता है।
 
वाराणसी के प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर के एक पुजारी अभिषेक शुक्ला ने बताया, "वाराणसी में लगभग हर हिंदू घर में शिव को समर्पित एक वेदी है। घर में मीट खाना सोच से भी परे है।"
 
वो कहते हैं, "मोक्ष चाहने वालों के लिए सात्त्विक बने रहना एक प्राथमिकता है। हमारा मानना है कि भोजन के लिए हम जिन्हें मारते हैं, हमारी आत्मा भी उनकी ही तरह पीड़ित होगी। मीट, प्याज़ और लहसुन खाने से तामसिक गुण बढ़ते हैं। इससे ध्यान करना और सही निर्णय लेना कठिन हो जाता है।"
 
परंपरागत तौर पर, वाराणसी के कई रेस्त्रां पश्चिमी देशों के पर्यटकों और मीट खाने वाले हिंदू तीर्थयात्रियों के लिए मांसाहारी खाना बनाते रहे हैं, जबकि स्थानीय सात्त्विक व्यंजन मुख्य रूप से घरों में ही खाए जाते रहे हैं।
 
2019 के फ़ैसले से शाकाहार को मिला बढ़ावा
हालांकि बीजेपी प्रदेश सरकार ने 2019 में एक फ़ैसला लिया जिसके तहत वाराणसी के सभी मंदिरों और विरासत स्थलों के 250 मीटर के दायरे में मीट की बिक्री और खपत पर रोक लगा दी गई।
 
इस फ़ैसले ने रेस्त्रां को वहां के स्थानीय शाकाहारी और सात्त्विक व्यंजन बेचने को प्रोत्साहित किया। ऐसे व्यंजन वाराणसी के घरों में तो पीढ़ियों से बन रहे थे, पर यहां आने वाले पर्यटकों के लिए ये पहले उपलब्ध नहीं थे।
 
गंगा के किनारे मुंशी घाट पर बलुआ पत्थर से बने भव्य लग्ज़री होटल बृजराम पैलेस में उनके शेफ़ मनोज वर्मा वाराणसी का खाना बनाने में अपने पारंपरिक ज्ञान क इस्तेमा करते हैं। उन्होंने बताया, "जब मैंने पहली बार रसोई संभाली, तो मैंने अपने मेन्यू में तुरंत 'खट्टा मीठा कद्दू' और 'निमोना' (मटर का मसालेदार भर्ता) जैसे व्यंजनों को शामिल किया।" वर्मा ने कहा, "ये ऐसे व्यंजन हैं, जिन्हें न खिलाएं तो हमारे मेहमानों को इसे चखने का मौक़ा शायद ही कभी मिल पाए।"
 
वर्मा ने ये भी दिखाया कि निमोना आख़िर बनता कैसे है। कड़ाही के गर्म तेल में साबुत जीरा, हींग और हरी मिर्च जैसे सुगंधित मसालों का मिश्रण तैयार करने के बाद उसमें हरी मटर का भर्ता और उबला हुआ आलू डालकर इसे तैयार किया जाता है। और फिर इसे घी और बासमती चावल के साथ खाने वालों को परोसा जाता है।
 
मटर की मिठास और आलू का स्वाद लिए यह व्यंजन असल में इटली के 'कुचिना पोवेरा' को वाराणसी का जवाब है। यहां के नए रसोइये स्थानीय किसानों के खानपान को नई ऊंचाई पर ले जा रहे हैं।
 
वर्मा ने बताया कि 2019 में मीट पर लगी रोक ने वाराणसी की नई पीढ़ी के रसोइयों की रचनात्मकता को बढ़ाया है। हालांकि उन्होंने कई मशहूर भारतीय और विदेशी मेहमानों को खिलाया है, लेकिन उनके लिए सबसे बड़ा मौक़ा तब आया जब शेफ़ विकास खन्ना उनके भोजन का स्वाद लेने आए। खाने के बाद मिशेलिन-स्टार शेफ़ ने झुककर वर्मा के पैर छू लिए। वर्मा ने बताया कि वो उस पल को कभी नहीं भूलेंगे।
 
तेज़ी से खुले नए शाकाहारी रेस्त्रां
स्थानीय लोगों के अनुमान के अनुसार, आज वाराणसी में 40 से 200 के बीच सात्त्विक रेस्त्रां हैं। 2019 में मीट पर लगी रोक के बाद इनकी संख्या तेज़ी से वृद्धि हुई है। ऐसे ही नए खुले रेस्त्रां में से एक 'श्री शिवाय' भी है। यहां का मेन्यू स्थानीय बाजार में उपलब्ध चीज़ों के आधार पर दिन में दो बार बदला जाता है।
 
महीनों की सावधानी के साथ किए गए प्रयोग के बाद यहां के तीन शेफ़ ने एक फॉमूला विकसित किया है। इसके तहत वे काजू, खसखस, खरबूजे के बीज, टमाटर और चिरौंजी, इन पांच चीजों का इस्तेमाल करके किसी भी सॉस या ग्रेवी के स्वाद की नकल कर सकते हैं।
 
मेरी थाली में कढ़ी-पकौड़े, राजमा और पनीर परोसे गए थे। कढ़ी में भुने हुए चने के आटे का स्वाद, राजमा सॉस की चिपचिपाहट और पनीर की ताज़गी सब कुछ अनोखा था। इस तरह के स्वाद को मैंने पूरे उत्तर भारत में कहीं भी अनुभव नहीं किया था।
 
वाराणसी के स्ट्रीट फूड भी अनूठे
दूसरी ओर वाराणसी के स्ट्रीट फूड की दुनिया भी बैंकॉक या इस्तांबुल की तरह जीवंत और रोमांचक है। लेकिन ये मीडिया के प्रचार से बहुत दूर हैं। यहां बिकने वाले कई शाकाहरी व्यंजनों में भारत में कहीं और मिलने वाले स्नैक्स से ज्यादा विविधताएं हैं, पर इन्हें दिल्ली के चाट या मुंबई के वड़ा पाव के जैसा प्रचार नहीं मिल सका है।
 
ऐसा ही एक उदाहरण काशी चाट भंडार नाम के एक स्टॉल पर बेची जाने वाली टमाटर चाट है। तीसरी पीढ़ी के मालिक यश खेतड़ी ने बताया, "जब अरबपति उद्योगपति लक्ष्मी मित्तल की बेटी की शादी फ्रांस में हुई, तो उन्होंने हमें भी एक कैटरर्स के रूप में चुना।"
 
जीरा और चीनी की चाशनी में डूबे टमाटर के भर्ते को तीखे मसालों के साथ बनाया जाता है। इसके ऊपर कुरकुरा सेव डालकर लोगों को खाने के लिए दिया जाता है। इसके मूल नुस्खे को 1968 में यश खेतड़ी के दादा ने विकसित किया था। आज आपको यह वाराणसी के बाहर कहीं और नहीं मिलेगा।
 
यहां के शाकाहारी खान-पान का एक अन्य उदाहरण 'लक्ष्मी चाय वाले' स्टॉल पर टेराकोटा कप में मलाई टोस्ट के साथ परोसी जाने वाली झागदार मीठी दूध की चाय है। यहां गर्म अंगारों पर ग्रिल्ड ब्रेड के दो स्लाइस पर ताज़ा क्रीम लगाकर उस पर चीनी डाली जाती है।
 
पान के बिना वाराणसी की चर्चा ही अधूरी
अधिकतर भारतीय जानते हैं कि वाराणसी पान की राजधानी है। इसलिए बिना पान खाए मैं वाराणसी छोड़ने वाली नहीं थी। आमतौर पर भोजन करने के बाद पान का आनंद लिया जाता है, क्योंकि यह खाना पचाने में मदद करता है। साथ ही इससे सांसों में खुशबू आती है।
 
नेताजी पान भंडार नामक स्टॉल पर उसके संस्थापक के पोते और वर्तमान मालिक पवन चौरसिया ने ताज़ा पान के पत्ते पर गुलकंद, सुपारी और चूने को लगाकर और बड़ी कुशलता से मोड़कर मेरे सामने चांदी के ट्रे में पेश किया। वहीं काउंटर पर एक लैमिनेटेड अख़बार की क्लिपिंग लगी थी। उसमें दिखाया गया था कि भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, 1976 में उनकी दुकान पर आई थीं। शाकाहारी खान-पान के लिए की गई इस यात्रा का लंबे समय से मेरी चाह रही वाराणसी की पान से बढ़िया अंत कुछ और नहीं हो सकता था।
 
भारत सरकार ने हाल में घोषणा की है कि कोरोना के बाद नवंबर से अंतरराष्ट्रीय यात्रियों को वीज़ा दिया जाना शुरू हो जाएगा।
 
आम दिनों में यहां हर साल लाखों लोग घूमने आते हैं। हालांकि अधिकांश आध्यात्मिक मोक्ष की तलाश में यहां आते हैं, लेकिन मेरी तरह और भी लोग होंगे जिनको यहां का शाकाहारी खान-पान का स्वर्ग आकर्षित करेगा।
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