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Last Updated : गुरुवार, 24 अगस्त 2017 (12:53 IST)

'सर्जिकल स्ट्राइक के जवाब में पाक हमला करता तो तैयार था भारत'

'सर्जिकल स्ट्राइक के जवाब में पाक हमला करता तो तैयार था भारत' - surgical strike
सुहेल हलीम
भारतीय सेना की उत्तरी कमान के पूर्व कमांडर डीएस हुड्डा ने कहा है कि कश्मीर की समस्या का कोई सैन्य समाधान संभव नहीं है और यह विवाद केवल राजनीतिक स्तर पर ही हल किया जा सकता है।
 
भारतीय सेना ने पिछले साल सितंबर में उरी के सैन्य शिविर पर हमले के बाद ये दावा किया था कि उसने नियंत्रण रेखा को पार कर पाकिस्तान प्रशासित क्षेत्र में आतंकवादी ठिकानों को नष्ट कर दिया है।
 
ये 'सर्जिकल स्ट्राइक' जनरल हुड्डा की ही निगरानी में की गई थीं जो उस समय भारतीय सेना की उत्तरी कमान के कमांडर थे। पाकिस्तान ने भारतीय सेना के 'सर्जिकल स्ट्राइक' के दावों को खारिज कर दिया था।
 
बीबीसी उर्दू से बात करते हुए, लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) डीएस हु़ड्डा ने कहा, 'अगर हम कहते हैं कि कश्मीर को सैन्य कार्रवाई के साथ हल किया जाएगा तो यह कहना गलत होगा। यह एक आंतरिक संघर्ष है जिसमें कई पहलू हैं ...पाकिस्तान का भी समर्थन है। सेना की भूमिका सुरक्षा की स्थिति को इस हाल में लाना है जहां से राजनीतिक कार्रवाई की शुरुआत की जा सके।'
 
'सोच समझकर की गई सर्जिकल स्ट्राइक'
जनरल हुड्डा ने सर्जिकल स्ट्राइक पर बात करते हुए कहा, 'इस कार्रवाई से पहले बहुत सलाह मशविरा हुआ था और हम इस नतीजे पर पहुंचे थे कि कोई पारंपरिक युद्ध नहीं छिड़ सकता लेकिन सोच समझकर थोड़ा बहुत ख़तरा लेना ज़रूरी होता है।'
 
उन्होंने कहा, 'हम कश्मीर में हर स्थिति के लिए तैयार थे। मैं आपको विस्तार से नहीं बता सकता, लेकिन सेना मुख्यालय में इस बारे में काफी बातें हुईं थीं। ऐसा नहीं था कि हमने अचानक एक दिन सोचा कि स्ट्राइक्स कर लेते हैं। तैयारी काफी दिनों से चल रही थी।'
 
सर्जिकल स्ट्राइक्स के दावे के बाद विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने कहा था कि इस तरह की सर्जिकल स्ट्राइक्स उसके कार्यकाल में भी की गईं थी लेकिन कभी उनकी घोषणा नहीं की गई।
 
जनरल हुड्डा कहते हैं, 'पहले होता था लेकिन इसका ऐलान नहीं किया जाता था। हम इनकार कर सकते थे कि हमने इस तरह की कोई कार्रवाई नहीं की है। इस बार अंतर यही था कि सरकार ने बकायदा इसका ऐलान किया।'
 
क्या सर्ज़िकल स्ट्राइक से हुआ फायदा?
सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भी हमले जारी हैं। ऐसे में सर्ज़िकल स्ट्राइक से क्या फ़ायदा हुआ?
जब जनरल हुड्डा से ये सवाल किया गया कि तब जनरल हुड्डा ने कहा, 'इस बार मानक थोड़ा ऊंचा स्थापित हो गया है। हमें पता था कि ऐसा नहीं होगा कि पाकिस्तान तुरंत आतंकवाद का समर्थन रोक देगा। लेकिन हम यह संदेश देना चाहते थे कि हम आपके क्षेत्र में प्रवेश करने के बाद भी कार्रवाई कर सकते हैं।'
 
पाकिस्तान ने इस कार्रवाई को स्वीकार ही नहीं किया। इसका अर्थ है कि वे इसे छिपाना चाहते हैं. यह एक प्रकार की मनोवैज्ञानिक और एक नैतिक सफलता थी।
 
दोबारा भी हो सकती है सर्जिकल स्ट्राइक
जनरल हुड्डा कहते हैं, 'हर स्थिति अलग होती है और हर हमले के जवाब में सीमा पार करके ही कार्रवाई की जाए यह जरूरी नहीं है, हो सकता है कि सर्जिकल स्ट्राइक दोबारा हों या किसी कार्रवाई किसी और अंदाज़ में हो।'
 
कश्मीर में पत्थरबाजी सेना के लिए समस्या
पिछले कुछ वक्त से कश्मीर घाटी के लोगों ने सेना की कार्रवाई के दौरान पत्थरबाज़ी का सिलसिला शुरू किया है।
 
जनरल हुड्डा इस बारे में कहते हैं, 'ये बहुत बड़ा मसला है. सैन्य कार्रवाई करना एक बड़ी चुनौती बन गया है क्योंकि हम ये नहीं चाहते हैं कि आम शहरी मारे जाएं।'
 
उन्होंने कहा कि पहले कई बार ऐसे हालात आए हैं जब घाटी में काफ़ी शांति थी लेकिन सरकारें इसका फायदा नहीं उठा सकीं।
 
जनरल हुड्डा कहते हैं कि सरकार को इस धारणा को खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए कि वो कश्मीर के लोगों के खिलाफ है।
 
क्या आफ्स्पा हटाने से सुधरेगी स्थिति?
कश्मीरी लोगों की लंबे समय से मांग रही है कि सेना को घाटी से हटा दिया जाए। इसके साथ ही सेना को विशेषाधिकार देने वाला आफ्स्पा कानून भी हटाया जाए।
 
जनरल हुड्डा कहते हैं, 'आफ्स्पा हटाने का मतलब ये है कि सेना ही हटा ली जाए। आफ्स्पा के तहत मिली सुरक्षा के बगैर सेना कश्मीर में कार्रवाई ही नहीं कर सकती है। लेकिन उन्होंने कहा कि अभी कश्मीर के दीर्घकालिक हल की बात करना कठिन होगा, फिलहाल वहां अपेक्षाकृत शांति स्थापित करने की कोशिश करनी चाहिए।
 
क्या शांति ला सकता है आफ्स्पा का जाना?
भारत सरकार जब कश्मीरियों के साथ आपसी विश्वास पैदा करने की बात करती है तो क्या आफ़्स्पा को हटाने से इस उद्देश्य को पूरा करने में मदद मिल सकती है।
 
इस सवाल के जवाब में जनरल हुड्डा कहते हैं, 'सभी लोग आफ्स्पा हटाने की बात करते हैं। इसका मतलब ये है कि हमनें मान लिया है कि कश्मीर में पुलिस-सीआरपीएफ़ से स्थिति को नियंत्रण में रख सकते हैं और सेना की जरूरत नहीं है। लेकिन अभी ये स्थिति नहीं आई है. इससे बेहतर तो ये कहा जाए कि कश्मीर से सेना को हटाया जाए।
 
क्या कश्मीर में आफ्स्पा के पक्ष में है सेना?
जनरल हुड्डा बताते हैं, 'हां, ये सच है। मैं आपको उदाहरण देता हूं। जम्मू क्षेत्र में पठानकोट से जम्मू के बीच अंतिम आतंकी हमला 2008 में हुआ था। इसके बाद 4-5 साल शांति रही और, फिर अचानक 2013 से घुसपैठ शुरू हो गई। कई हमले हुए जिनमें पठानकोट हमला शामिल है।
 
ये हमारी चिंता है कि जब स्थिति नियंत्रण में हो जाती है और जब हम कह सकें कि पुलिस और सीआरपीएफ नियंत्रण कर सकें। तब सेना की तैनाती कम हो सकती है। ऐसा नहीं कि आर्मी अपनी सक्रियता बनाए रखना चाहती है। बीते कुछ समय में कश्मीर से लेकर जम्मू तक से आर्मी को निकालकर दूसरी जगह तैनात किया गया है। कश्मीर से निकाल लद्दाख़ भेजा गया है।
 
कश्मीरियों का दिल जीतने के लिए नहीं मान सकते कुछ शर्तें?
जनरल हुड्डा कश्मीरियों का दिल जीतने के लिए आफ्स्पा के कुछ प्रावधानों को सरल करने की बात करते हैं।
 
'मुझे लगता है कि आफ्स्पा के कड़े प्रावधानों को सरल बनाकर और मानवीय अधिकारों के करीब लाने पर बातचीत शुरू हुई थी। तब भी गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय ने जोरदार ढंग से अपना-अपना पक्ष रखा था। मुझे लगता है ऐसी बातचीत दोबारा शुरू हो सकती है और, कुछ प्रावधानों की दोबारा समीक्षा की जा सकती है।'
 
क्या आफ्स्पा सरल हो तो खुश होगी सेना?
जनरल हुड्डा आफ्स्पा के कड़े प्रावधानों को सरल बनाने की बात करने के साथ ही ये भी कहते हैं कि इसे ऐसा होना चाहिए जो हर पक्ष की चिंताओं का समाधान करे।
 
आफ्स्पा का गलत प्रयोग सिर्फ एक धारणा
आफ़्स्पा के गलत प्रयोग के मुद्दे पर जनरल हुड्डा कहते हैं, 'ये भी अपने आप में एक धारणा है। मैं भी सेना में ब्रिग्रेड कमांडर से लेकर आर्मी कमांडर तक रहा हूं। ये अपने आप में एक धारणा है कि सेना बेहद सख़्ती से पेश आती है।'
 
'ये सच नहीं है। लोग कहते हैं ऐसे हजारों मामले हैं जहां पर आर्मी कुछ नहीं कर रही है। दरअसल, जांच का काम पुलिस के पास है और जब पुलिस देखती है कि ये हमारे क्षेत्र का केस है तो पुलिस इसे केंद्र सरकार को भेजती है। और, ऐसे मात्र 30-35 मामले हैं।'
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