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Written By BBC Hindi
Last Modified: गुरुवार, 9 जून 2022 (07:40 IST)

राज्यसभा चुनाव: जानिए किन-किन सीटों पर फंसा है पेच

राज्यसभा चुनाव: जानिए किन-किन सीटों पर फंसा है पेच - rajyasabha elections on 57 seats
10 जून को राज्यसभा की 57 सीटों में 16 सीटों पर चुनाव होगा क्योंकि बाक़ी की 41 सीटों पर उम्मीदवार निर्विरोध चुन लिए जाएंगे। जिन 16 सीटों पर चुनाव होना है, उनका फ़ैसला महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक और हरियाणा से होना है। इन राज्यों में किस तरह की तस्वीर उभर रही है, कहां क्या पेच फंसा हुआ है, इसे बता रहे हैं बीबीसी संवाददाता और बीबीसी के सहयोगी पत्रकार-
 
महाराष्ट्र में क्या है राज्यसभा का गणित
मुंबई से मयुरेश कन्नूर
महाराष्ट्र में राज्यसभा चुनावों के हालिया इतिहास में सबसे तीखी चुनावी जंग देखने को मिल रही है। ये जंग है कभी दोस्त रही और अब राजनीतिक दुश्मन बन चुकी शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी के बीच में। और ये सब हो रहा है सिर्फ़ एक राज्यसभा सीट के लिए।
 
महाराष्ट्र से कुल छह राज्यसभा सांसदों का चुनाव होना है और राज्य के विधायक इनका चुनाव करेंगे। सदन की मौजूदा संख्या को देखते हुए बीजेपी आसानी से अपने दो राज्यसभा सांसद चयनित करा सकती है। शिवसेना के पास भी एक, एनसीपी के पास भी एक और कांग्रेस के पास भी एक सदस्य चयनित कराने के लिए पर्याप्त संख्या है।
 
इसके बाद सत्ताधारी गठबंधन महाविकास अघाड़ी और बीजेपी के पास कुछ अतिरिक्त वोट रह जाएंगे। लेकिन दोनों ही विपक्षी कैंपों के पास इतनी संख्या नहीं है कि आसानी से छठे राज्यसभा सदस्य का चुनाव हो जाए। इस परिस्थिति ने राज्य की राजनीति को नाज़ुक बना दिया है।
 
गठबंधन के समझौते के तहत इस बार गठबंधन के अतिरिक्त मत शिवसेना के उम्मीदवार को दिए जाएंगे। शिवसेना ने अपने कोल्हापुर ज़िलाध्यक्ष संजय पवार को उम्मीदवार बनाया है। पवार को सीट जीतने के लिए स्वतंत्र विधायकों से वरीयता मत हासिल करने होंगे। लेकिन उन मतों को पाना आसान नहीं है।
 
बीजेपी भी तीसरे उम्मीदवार की घोषणा करके मैदान में कूद गई है। पार्टी ने भी कोल्हापुर के धनंजय महादिक को उम्मीदवार बनाया है। बीजेपी का दावा है कि भले ही महादिक के लिए उनके पास कुछ मत कम हो लेकिन उसे विश्वास है कि वो सीट जीत लेगी।
 
ऐसा दो परिस्थितियों में हो सकता है। या तो स्वतंत्र विधायक बीजेपी का साथ दें या फिर गठबंधन के कुछ विधायक पाला बदलकर बीजेपी को वोट दे दें। इसी वजह से दोनों ही पक्षों की तरफ़ से विधायकों की ख़रीद फ़रोख़्त के आरोप लग रहे हैं।
 
हालांकि पार्टी के अधिकारिक मतों को तोड़ना आसान नहीं होगा। राज्यसभा का चुनाव खुले मत पत्र से होता है, इसमें कोई गोपनीयता नहीं होती। ऐसे में पार्टी के आदेश के तहत हर विधायक को अपनी वरियता देनी होती है और मतदान करने से पहले इसे खुलकर दिखाना होता है।
 
यदि कोई विधायक पार्टी की व्हिप के ख़िलाफ़ जाकर मतदान करता है तो वो पार्टी की सदस्यता और अपनी विधायक की सीट गंवा सकता है। ऐसे में पार्टी के किसी विधायक के पाला बदलने की संभावना कम ही है।
 
लेकिन बावजूद इसके बीजेपी के आत्मविश्वास ने महाविकास अघाड़ी गठबंधन को चौंका दिया है। अपने विधायकों को साथ रखने के लिए शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने विधायकों को होटलों में ठहरा दिया है। ये विधायक पार्टी के नेताओं के निगरानी में पांच सितारा होटलों में रुके हैं। दस जून को मतदान होने तक विधायकों को होटल से बाहर जानें की अनुमति नहीं है। एमवीए की तरह ही बीजेपी ने भी अपने विधायकों को ताज होटल में ठहराया है।
 
अब खेल स्वतंत्र विधायकों या एक और दो विधायकों वाली छोटी पार्टियों के हाथ में आ गया है। दोनों ही पक्ष उन्हें लुभावने प्रस्ताव दे रहे हैं। महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी और एआईएमआईएम के दो-दो विधायक हैं जबकि राज ठाकरे की पार्टी के पास एक विधायक है। ये विधायक एक तरफ मतदान करते हैं या अनुपस्थित रहते हैं, इससे चुनाव की पहेली सुलझ सकती है।
 
एक और नाटकीय मोड़ एनसीपी के दो मंत्रियों की स्थिति की वजह से आ गया है जो सदन के सदस्य भी हैं और फ़िलहाल में जेल में बंद हैं। अनिल देशमुख और नवाब मलिक ईडी की हिरासत में हैं।
 
एनसीपी ने विशेष अदालत के समक्ष अपने विधायकों को मतदान में हिस्सा लेने की अनुमति मांगते हुए याचिका दायर की है। ईडी ने इस याचिका का अदालत में विरोध किया है। अब देखना यही होगा कि विशेष अदालत क्या निर्णय लेती है।
 
भले ही ये लड़ाई सिर्फ़ एक राज्य सभा सीट के लिए हो रही हो लेकिन इसके नतीजों का राज्य की राजनीति पर दूरगामी असर हो सकता है। बीजेपी इस परिस्थिति का फ़ायदा उठाने की कोशिश कर रही है। एमवीए गठबंधन का भविष्य भी इससे प्रभावित हो सकता है।
 
वो उम्मीदवार जिनका महाराष्ट्र से राज्यसभा पहुंचना तय हैं इस प्रकार हैं- बीजेपी से पियूष गोयल और डॉ. अनिल बोंडे, एनसीपी के प्रफुल्ल पटेल, शिवसेना के संजय राउत और कांग्रेस से इमरान प्रतापगढ़ी।
 
राजस्थान का सियासी खेल
जयपुर से मोहर सिंह मीणा
राजस्थान में दस राज्यसभा सीटें हैं। दस जून को चार राज्यसभा सीटों के लिए वोटिंग होनी है। कांग्रेस के तीन, बीजेपी के एक और एक बीजेपी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में हैं।
 
कांग्रेस के लिए एक सीट फंस सकती है जबकि दो सीट पर कांग्रेस और एक सीट पर बीजेपी की जीत तय है। सुभाष चंद्रा क्रॉस वोटिंग के ज़रिए अपनी जीत का दावा कर चुके हैं।
 
कांग्रेस के 108 विधायकों में बीएसपी से आए 6 विधायक भी शामिल हैं। हालांकि, बीएसपी ने पत्र लिख कर उनके विधायकों का कांग्रेस में विलय को असंवैधानिक बताते हुए छह विधायकों को वोटिंग से रोकने की मांग की है। बीएसपी ने उनके छह विधायकों के कांग्रेस में विलय को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी हुई है
 
राज्य में 200 विधानसभा सीटें हैं जिनमें कांग्रेस के 108 विधायक हैं, बीजेपी के 71 विधायक हैं, निर्दलीय 13, बीटीपी के 2, सीपीएम के 2, आरएलडी का एक विधायक है।
 
कांग्रेस का दावा है कि उनके 108 विधायक, 13 निर्दलीय, 2 सीपीएम, 2 बीटीसी और एक आरएलडी के विधायकों समेत 126 विधायकों का समर्थन है, इस तरह कांग्रेस के पास बहुमत के साथ तीन राज्यसभा उम्मीदवार मैदान में हैं। जबकि, बीजेपी के 71 विधायक हैं और बीजेपी ने एक उम्मीदवार मैदान में उतारा है, जिसकी जीत निश्चित है।
 
यदि कांग्रेस के दावे के अनुसार यदि उनको निर्दलीय, एसपीएम, बीटीसी, आरएलडी का समर्थन मिलता है तो कांग्रेस के तीनों उम्मीदवार जीत सकते हैं, लेकिन दो की जीत निश्चित है।
 
क्रॉस वोटिंग होती है तो कांग्रेस की एक सीट पर चुनाव फंस सकता है। बीजेपी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार सुभाष चंद्रा की सीट पर को बीजेपी के तीस विधायक वोट करेंगे, साथ ही आरएलपी ने घोषणा कर कहा है कि उनके तीन विधायक सुभाष चंद्रा को वोट करेंगे। ऐसे में सुभाष चंद्रा को 33 वोट तय माने जा रहे हैं। अब उन्हें आठ विधायकों के वोट और चाहिए होंगे।
 
सुभाष चंद्रा ने मंगलवार को जयपुर में प्रेस वार्ता कर अपनी जीत का दावा किया है एल, उन्होंने कहा कि कांग्रेस की बाड़ाबंदी में शामिल आठ विधायक उनके लिए क्रॉस वोटिंग करेंगे।
 
इन आठ वोट के लिए हॉर्स ट्रेडिंग की चर्चाएं हैं। दोनों ही पार्टियों ने एक दूसरे पर हॉर्स ट्रेडिंग के आरोप लगाते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त और राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को पत्र लिखा है। बीजेपी की ओर से कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए प्रवर्तन निदेशालय को भी पत्र लिखा गया है।
 
कांग्रेस ने बीजेपी पर आरोप लगाया है कि वह विधायकों को केंद्रीय एजेंसियों का डर दिखा रही हैं, जबकि बीजेपी ने आरोप लगाए हैं कि राज्य की कांग्रेस सरकार सत्ता का दुर्पयोग करते हुए विधायकों के फ़ोन टेप करा रही है और राज्य की एजेंसियों के ज़रिए विधायकों को डरा रही है।
 
कर्नाटक में क्या है गणित
बेंगलुरु से इमरान क़ुरैशी
बीजेपी ने कर्नाटक से केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमन को मैदान में उतारा है। कर्नाटक में राज्यसभा चुनावों का सीधा गणित ये है कि बीजेपी के तीन सांसद चुने जाएंगे और एक सीट कांग्रेस के पास चली जाएगी। लेकिन राज्य की तीन प्रमुख पार्टियों ने चुनाव में कुल छह उम्मीदवारों को उतार दिया है।
 
कांग्रेस की राजनीतिक स्थिति के संदर्भ में संख्याबल को देखकर राजनीतिक तस्वीर और साफ़ नज़र आ सकती है।
 
कर्नाटक विधानसभा में कुल 224 सीटें हैं। बीजेपी के पास 122 सदस्य हैं जबकि उसके पास एक-दो स्वतंत्र विधायकों का भी समर्थन है। कांग्रेस के पास 69 विधायक हैं और एक स्वतंत्र विधायक का समर्थन है जबकि जनता दल सेक्युलर के कुल 32 विधायक हैं।
 
तकनीकी रुप से देखा जाए तो प्रत्येक सीट के लिए कम से कम 45 वोटों की ज़रूरत है। ये उम्मीद की जा रही है कि बीजेपी केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और कन्नड़ अभिनेता जागेश के लिए 45-47 विधायकों का मतदान करवा सकती है। पार्टी के पास अतिरिक्त 32 वोट हैं जो वो अपने तीसरे उम्मीदवार लहर सिंह सिरोया के लिए छोड़ सकती है। इसके अलावा पार्टी के दूसरी वरीयता के सभी मत भी उन्हें ही जाएंगे।
 
वहीं कांग्रेस पार्टी हाईकमान की तरफ़ से उतारे गए उम्मीदवार जयराम रमेश के लिए 46 मत दे सकती है। इसके बाद उनके दूसरे उम्मीदवार मंसूर अहमद ख़ान को 24 और मतों की ज़रूरत पड़ेगी। वहीं जनता दल सेक्युलर ने कृपेंद्र रेड्डी को उम्मीदवार बनाया है जिन्होंने 2019 में एचडी देवगौड़ा के लिए अपनी सीट छोड़ी थी। जेडीएस के पास सदन में सिर्फ़ 32 सदस्य हैं। जेडीएस को सीट जीतने के लिए सिर्फ़ 13 वोटों की ज़रूरत होगी लेकिन राजनीतिक दांवपेंच नज़र आएंगे।
 
पिछले कुछ दिनों में अलग-अलग रंग दिखाने के बाद जेडीएस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारास्वामी ने कांग्रेस को सुझाव दिया कि जेडीएस कांग्रेस के दूसरे उम्मीदवार मंसूर अली ख़ान को अपने सभी दूसरी वरीयता के वोट देने के लिए तैयार है।
 
हालांकि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने इसका सीधा जवाब ये कहते हुए दिया है कि अब समय आ गया है जब जेडीएस कांग्रेस का क़र्ज़ उतारे। 2018 में जब जेडीएस ने सिर्फ़ 37 सीटें जीतीं थीं तब कांग्रेस ने कुमारास्वामी का समर्थन करके उन्हें मुख्यमंत्री बनवा दिया था।
 
वहीं विधान परिषद में विपक्ष के नेता बीके हरिप्रसाद ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, "सिद्धारमैया इस बात को लेकर बिलकुल स्पष्ट हैं कि चुनावी साल में जेडीएस से किसी भी तरह की मदद लेने या देने से गलत संदेश जा सकता है। जेडीएस ने बीजेपी के क़रीब जाने की कोशिश की है और अब जब चुनावों में सिर्फ़ तीन महीने हैं, वो ये दिखाने की कोशिश कर रही है कि वो सेक्युलर है।"
 
यदि संक्षिप्त में कहा जाए तो इसका राजनीतिक संदेश यही है कि अगले साल मार्च-अप्रैल में जब राज्य में विधानसभा चुनाव होंगे तब कांग्रेस जेडीएस के साथ कोई संबंध नहीं रखना चाहेगी।
 
हरियाणा में क्या है चुनावी गणित
सत सिंह, बीबीसी हिंदी के लिए
राज्य की दोनों प्रमुख पार्टियों सत्ताधारी बीजेपी और विपक्षी दल कांग्रेस ने दस जून तक के लिए अपने विधायकों को होटलों में भर दिया है। हरियाणा में दो राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव होना है।
 
बीजेपी के दुष्यंत गौतम और सुभाष चंद्र का कार्यकाल एक अगस्त 2022 को समाप्त हो रहा है। दस जून को पांच में से दो राज्यसभा सीटों के लिए चंडीगढ़ में मतदान होगा।
 
बीजेपी जिसके पास अपने 40 विधायक हैं को अपने उम्मीदवार कृष्ण लाल पवार की जीत की पूरी उम्मीद है, वहीं कांग्रेस जिसके पास 31 सीटे हैं वो भी दूसरी सीट पर जीत का दावा कर रही है।
 
कृष्ण लाल पवार पूर्ववर्ती सरकार में परिवहन मंत्री थे। वो अनुसूचित जाती से आते हैं और बीजेपी की राज्य की अनुसूचित जाति इकाई के प्रमुख भी हैं।
 
विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त के डर से कांग्रेस ने अपने 31 में से 29 विधायकों को कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ के एक रिजॉर्ट में रखा है।
 
वहीं कांग्रेस के पूर्व विधायक दल नेता और तोशम से विधायक किरण चौधरी और आदमपुर से विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के बेटे कुलदीप विश्नोई रायपुर नहीं गए हैं।
 
किरण ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया है जबकि कुलदीप बिश्नोई ने कहा है कि वो मतदान करने से पहले राहुल गांधी से मुलाक़ात करेंगे।
 
संख्याबल को देखते हुए बीजेपी और कांग्रेस दोनों के ही उम्मीदवारों की जीत पक्की है लेकिन तीसरे स्वतंत्र उम्मीदवार कार्तिकेय शर्मा जो पूर्व कांग्रेसी केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा के बेटे हैं, ने कांग्रेस कैंप में सनसनी मचा दी है।
 
कांग्रेस ने हरयाणा से अजय माकन को उम्मीदवार बनाया है। राज्यसभा के गणित के मुताबिक राज्यसभा की दो सीटों में से पहली को जीतने के लिए 31 वोटों की ज़रूरत होगी, बीजेपी और उसके सहयोगियों के पास कुल 59 सीटें हैं।
 
बीजेपी के पास अपने चालीस विधायक हैं जबकि उसकी सहयोगी पार्टी जननायक जनता पार्टी के पास दस विधायक हैं। हरयाणा लोकहित पार्टी के विधायक गोपाल कांडा बीजेपी के साथ हैं जबकि सात निर्दलीय विधायक भी बीजपी कैंप में हैं।
 
हालांकि आईएनएलटी विधायक अभय चौटाला ने अभी अपने पत्ते नहीं खेले हैं। लेकिन माना जा रहा है कि वो सत्ताधारी दल के साथ जा सकते हैं।
 
अपने पहले उम्मीदवार कृष्ण लाल पवार की जीत पक्की करने के बाद दूसरे उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करने के लिए बीजेपी के पास 27 अतिरिक्त वोट हैं। बीजेपी को स्वतंत्र उम्मीदवार कार्तिकेय को जिताने के लिए सिर्फ़ तीन और वोट चाहिए। निर्दलीय उम्मीदवार ने कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया है।
 
स्वतंत्र उम्मीदवार कार्तिकेय शर्मा, माना जा रहा है कि बीजेपी उनका समर्थन कर रही है, को जननायक जनता पार्टी ने पहले ही खुला समर्थन दे दिया है। कार्तिकेय एक कारोबारी और मीडिया समूह के मालिक हैं। वो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कुलदीप शर्मा के दामाद भी हैं।
 
31 विधायकों में से कुलदीप बिश्नोई पहले ही पार्टी अध्यक्ष न बनाए जाने को लेकर कांग्रेस के प्रति नाराज़गी ज़ाहिर कर चुके हैं। कुलदीप बिश्नोई की जगह हुड्डा के वफ़ादार उदयभान चौधरी को राज्य कांग्रेस का अध्यक्ष पद दिया गया है।
 
हाल ही में बिश्नोई ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से मुलाक़ात करके उनके काम की तारीफ़ भी की है। इससे उनके अगले राजनीतिक क़दम को लेकर कयास भी लगाए जाने लगे हैं।
 
कांग्रेस नेता किरण चौधरी भी चिंता का विषय हैं। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ उनके संबंध बहुत अच्छे नहीं रहे हैं। हालांकि वो राज्यसभा चुनाव में अपनी ही पार्टी के लिए समर्थन घोषित कर चुकी हैं।
 
इसी बीच विधायकों का एक समूह ऐसा भी है जो हरियाणा कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष कुमारी शेलजा के लिए वफ़ादार है और उनकी जगह अजय माकन को उम्मीदवार बनाए जाने को लेकर नाराज भी है। मतदान के दौरान ये समूह अपनी नाराज़गी ज़ाहिर भी कर सकता है।
 
अजय माकन पर बाहरी होने का ठप्पा
गांधी परिवार के वफ़ादार हरियाणा में कांग्रेस के राज्यसभा उम्मीदवार हैं। उन्हें राज्यसभा सीट के लिए एक बाहरी उम्मीदवार के तौर पर देखा जा रहा है।
 
एआईसीसी के सदस्य अजय माकन ने अपनी राजनीति दिल्ली में की है और हरियाणा में पार्टी के नेता उन्हें लेकर बहुत उत्साहित नहीं हैं। कई विधायकों ने दावा किया कि माकन ने दिल्ली से आए किसी वरिष्ठ की तरह व्यवहार किया और उनसे ये उम्मीद की जाती है कि वो उनके लिए मतदान करें, भले ही उनके बारे में उनसे पूछा तक ना गया हो।
 
हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और सदन में विपक्ष के नेता ने ये दावा किया है कि कांग्रेस के पास अजय माकन को हरयाणा से राज्यसभा भेजने के लिए पर्याप्त संख्या है। आदमपुर से विधायक कुलदीप बिश्नोई के बारे में हुड्डा का कहना है कि वो भी पार्टी के लिए ही मतदान करेंगे।
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