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Last Updated : शनिवार, 22 जून 2019 (17:05 IST)

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान पर हमला 10 मिनट पहले क्यों रोका

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान पर हमला 10 मिनट पहले क्यों रोका - iran america oil war
- पॉल एडम्स
 
अमेरिका और ईरान के बीच तनाव फ़िलहाल कम होता नज़र नहीं आ रहा है। इस तनाव में सबसे ताज़ा मामला एक अमेरिकी जासूसी ड्रोन को मार गिराने का है। गुरुवार को ईरान ने एक स्वचालित अमेरिकी ड्रोन को मार गिराया था। ईरान का दावा है कि ड्रोन ईरानी हवाई क्षेत्र में था जबकि अमेरिका इस दावे को ग़लत बता रहा है।
 
 
ये मामला ऐसे समय में हुआ है जब दोनों देशों के बीच तनाव अपने चरम पर है। अमेरिका इसका जवाबी हमला देने के लिए भी तैयार हो गया था लेकिन हमले के ठीक 10 मिनट पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ने हमले को रोक दिया। जवाबी हमले के लिए तीन इलाक़ों का चयन भी कर लिया गया था लेकिन बाद में राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप का मन बदल गया।
 
 
ट्रंप ने कहा कि उन्हें बताया गया कि अगर हमला हुआ तो क़रीब डेढ़ सौ लोग मारे जाएंगे। जिसके बाद ही उन्होंने हमला रोक दिया। उन्होंने इस बारे में ट्वीट भी किया, "हमला होने के सिर्फ़ 10 मिनट पहले मैंने इसे रोक दिया।"

 
न्यूयॉर्क टाइम्स ने सबसे पहले इस बड़े फ़ैसले की जानकारी दी थी। गुरुवार देर रात न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा कि ईरान पर हमले की कार्रवाई अपने बिल्कुल शुरुआती चरण में थी तभी अमेरिकी राष्ट्रपति ने सेना को इसे रोकने को कहा।
 
 
ट्रंप का बयान आया कि उन्हें कोई जल्दी नहीं है। उन्होंने ये भी कहा कि उनकी सेना पूरी तरह से तैयार है, नई है और हर चुनौती के लिए तैयार है और यह दुनिया की सबसे बेहतरीन सेना है। दोनों देशों के बीच बीते कुछ वक़्त से तनाव बढ़ता ही जा रहा है। कुछ दिन पहले ही अमेरिका ने ईरान पर उसके इलाके में मौजूद तेल टैंकरों पर हमला करने का आरोप लगाया था।
 
 
तो क्या टैंकर युद्ध शुरू होने वाला है?
'खाड़ी और खाड़ी में धधकते तेल के टैंकर- अमेरिकी युद्धपोत तनावपूर्ण परिस्थितियों का जवाब दे रहे हैं।'- यह सब कुछ एक व्यापक संघर्ष की स्थिति की ओर इशारा कर रहा है।
 
हम पहले भी यहां आ चुके हैं: 28 साल पहले, अमेरिका और ईरान यहां थे। जहाज़ों पर हमले हुए, जहाज़ के क्रू सदस्य मारे गए...घायल हुए। इससे पहले की ये सब ख़त्म होता, एक ईरानी एयरलाइनर को ग़लती से गोली मार दी गई।
 
 
लेकिन क्या ये फिर, दोबारा से हो सकता है?

 
ईरान और सद्दाम हुसैन के इराक के बीच लंबे चले युद्ध के बाद एक बार फिर टैंकर वॉर को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जबर्दस्त तनाव है। 1989 के दशक के मध्य दोनों पक्ष एक-दूसरे के तेल टैंकरों पर हमले कर रहे थे। जैसे ही युद्ध में शामिल देशों ने आर्थिक दबाव बढ़ाने की कोशिश की, कुछ समय बाद ही इन दोनों पक्षों से इतर कुछ दूसरे जहाज़ भी हमले में शामिल हो गए।
 
 
रोनल्ड रीगन के तहत अमेरिका इसमें शामिल नहीं होना चाहता था। लेकिन खाड़ी में स्थितियां बेहद भयावह हो गईं- इस बात का अंदाज़ा इस उदाहरण से लगाया जा सकता है कि एक अमेरिकी युद्धपोत यूएसएस स्टार्क को इराकी जेट ने अपना निशाना बना दिया। हालांकि बाद में इराकी अधिकारियों ने दावा किया कि यह पूरी तरह एक दुर्घटना थी और इसके पीछे कोई मंशा नहीं थी।
 
लेकिन जुलाई 1987 तक, अमेरिकी झंडे वाले दोबारा पंजीकृत किए गए कुवैती टैंकरों को अमेरिकी युद्धपोतों द्वारा खाड़ी के माध्यम से निकाला जा रहा था। समय के साथ, यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ा नौसेना का काफिला ऑपरेशन बन गया था।
 
 
तब से लेकर अब तक अमेरिका और ईरान एक-दूसरे के सामने अड़े हुए हैं। ईरान के सर्वोच्च नेता, अयातुल्ला ख़ामनेई 1979 में इस्लामिक क्रांति के बाद से अमेरिका को "द ग्रेट शैतान" कहा करते थे।
 
 
ऐसे में भले ही इस टैंकर युद्ध के लिए ईरान और इराक़ ज़िम्मेदार रहे हों लेकिन जल्दी ही यह स्पष्ट हो गया कि दरअसल यह ईरान और अमेरिका के बीच लंबे समय से चल रहे झगड़े का हिस्सा था। यह एक ऐसी लड़ाई है जो कभी ख़त्म नहीं हुई और अब मौजूदा समय में और बढ़ गई है। वहीं हरमुज जलडमरूमध्य अखाड़ा बन गया है।

 
तो क्या कुछ बदल गया है?
टैंकर वॉर पर किताब लिखने वाले डॉ. मार्टिन नावियास का कहना है कि समय के साथ दोनों ही पक्षों ने अपनी-अपनी क्षमताओं का विस्तार किया है। वो कहते हैं कि ईरान पहले से कहीं अधिक सक्षम हुआ है। वो चाहे माइन्स के इस्तेमाल के संदर्भ में देखा जाए, पनडुब्बी के या फिर हमले करने में सक्षम तेज़ नावों के संदर्भ में।

 
और अब यह लड़ाई सिर्फ़ समुद्र तक सीमित नहीं रह गई है। अमेरिका के जासूसी ड्रोन को मार गिराने की घटना ईरान की बढ़ी क्षमताओं की ओर साफ़ तौर पर इशारा करती है।

 
तो क्या अमेरिका और ईरान के बीच गंभीर और सीधे तौर पर युद्ध शुरू हो सकता है ?

 
अगर टैंकरों पर हमले बढ़ जाते हैं तो हो सकता है कि हम आने वाले वक़्त में अमेरिका के नेतृत्व में री-फ्लैगिंग और एस्कॉर्ट ऑपरेशन देख सकते हैं। अमेरिका और ईरान के बीच गतिरोध के बहुत से उदाहरण हैं लेकिन अब 30 साल बाद जबकि अमेरिका की मिडिल ईस्ट के तेल पर निर्भरता बेहद कम है, ऐसे में स्ट्रेट के बंद हो जाने से ईरान को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
 
 
हालांकि अभी की स्थिति को देखते हुए तो टैंकर युद्ध की स्थिति नहीं जान पड़ती है लेकिन इसके होने की आशंका को सिरे से ख़ारिज भी नहीं किया जा सकता। डॉ. नवियास कहते हैं, जैसा अभी माहौल है उसमें तमाम तरह की संभावनाएं और आशंकाएं समाहित हैं।
 
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