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Last Modified: बुधवार, 30 अगस्त 2017 (10:43 IST)

क्या फिर पैदा हो सकता है डोकलाम का विवाद?

क्या फिर पैदा हो सकता है डोकलाम का विवाद? - Dokalm
सिक्किम के पास डोकलाम में भारत और चीन के सैनिकों को वापस बुलाने के फ़ैसले का भूटान ने स्वागत किया है। लगभग 73 दिन तक डोकलाम में भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने थीं।
 
चीन की तरफ़ से आक्रामक बयान आए लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 3 से 5 सितंबर के बीच चीन में होने वाले ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेने जा रहे हैं। लेकिन क्या भारत चीन के बीच सीमा को लेकर शांति बनाए रखने पर सहमति बहुत दिन तक चलेगी?
 
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार हर्ष पंत का मानना है कि ये मसला अभी पूरी तरह हल नहीं हुआ है और इसके दोबारा भड़कने की संभावनाएं मौजूद हैं। इस बारे में बीबीसी संवाददाता हरिता कांडपाल ने हर्ष पंत से बात की। पढ़ें बातचीत के अंश।
 
विवाद के बीच भूटान की क्या है स्थिति?
भूटान कुछ हद तक खुश होगा क्योंकि दो बड़े देशों के बीच वो पिस रहा था लेकिन फिर भी संशय बना रहेगा कि इस तरह की स्थिति फिर से खड़ी हो सकती है।
 
भारत या भूटान इस बात को मान रहे थे कि तीनों देशों के बीच सीमा विवाद के हल तक यथास्थिति बनाए रखने को लेकर जो समझौता हुआ था उसे तोड़ने की कोशिश चीन ने की है। भारत और चीन के बीच कुछ समय के लिए तो ये हल हुआ है लेकिन भूटान इस विवाद का स्थाई समाधान चाहेगा।
 
सड़क निर्माण बंद करेगा चीन?
जो परिस्थिति अभी बनती दिख रही है उससे लगता है कि चीन सड़क निर्माण फिलहाल नहीं करेगा लेकिन भविष्य में भी वो सड़क निर्माण का इरादा छोड़ देगा ये कहा नहीं जा सकता है, ऐसे में अनिश्चितता तो बनी ही रहेगी।
 
इसलिए जब तक भूटान और चीन के बीच सीमा को लेकर विवाद सुलझ नहीं जाता तब तक चीन ने जिस तरह से तीनों देशों के समझौते को ताक पर रखने की कोशिश की है वो कभी भी दोबारा हो सकता है।
 
डोकलाम पर चीन के सड़क निर्माण को रोकने के लिए भारत ने सैनिक भेजे तब से ऐसे हालात बन गए जिससे लग रहा था कि भारत और चीन युद्ध के लिए आमने-सामने हैं। इस तनाव को कुछ समय के लिए कम कर दिया गया है।
 
डोकलाम विवाद के बाद भूटान-चीन के रिश्ते किधर बढ़ेंगे?
भारत भूटान की सहायता के लिए खड़ा हुआ था, भारत और भूटान के करीबी संबंध हैं इसलिए भूटान आश्वस्त होगा कि ज़रूरत के वक्त भारत फिर मदद के लिए आगे आएगा।
 
चीन और भूटान के संबंधों में चीन आर्थिक संबंध बढ़ाना चाहता है। चीन ने भूटान के लिए कई योजनाएं बनाई हैं और बातचीत के लिए तत्परता दिखाता रहा है। कहीं पर ये डोकलाम का विवाद हुआ तो वो जता रहा था कि जो भारत के करीबी मित्र देश हैं वहां पर चीन का प्रभुत्व आने वाले समय में बढ़ सकता है।
 
भूटान को चीन और भारत के साथ एक तालमेल बैठाकर चलना होगा। भूटान की सुरक्षा का ज़िम्मा भारत के पास है। भूटान के पास छोटी सी सेना है और सीमित सैन्य क्षमता के कारण भारत पर निर्भर है। इसलिए भूटान को भारत को विश्वास में लेकर ही चीन के साथ रिश्ते बढ़ाने होंगे।
 
दोनों देशों का क्यों बदला रुख़?
डोकलाम पर तनाव कम अचानक नहीं आया है। भारत सरकार का रवैया काफ़ी समझदारी भरा रहा है। जहां भारत ने कभी सेना और युद्ध की बात नहीं की है और बातचीत की पैरवी की।
 
चीन का रवैया काफ़ी आक्रामक रहा, चीनी मीडिया के अलावा सरकार ने भी इसे विवादास्पद बयान दिया था। लेकिन इस हफ्ते चीन में ब्रिक्स देशों का सम्मेलन होने जा रहा है, ऐसे में डोकलाम को लेकर तनाव के बीच चीन के लिए भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बुलाने पर उलझन हो जाती।
 
अगर विवाद के साये में मोदी चीन नहीं जाते तो ब्रिक्स सम्मेलन खटाई में पड़ जाता तो जब चीन ख़ुद को विश्व में महाशक्ति दिखाने की कोशिश कर रहा है, वो ग़लत संदेश जाता। ये एक अहम कारण था कि चीन को लगा कि इस हफ्ते ये विवाद सुलझाना ज़रूरी है।
 
क्या है डोकलाम पर भूटान और चीन का कहना है?
काफ़ी समय से भूटान और चीन के बीच ये विवाद चल रहा है उसमें अलग-अलग पक्ष हैं। चीन पुरानी संधियों को मानने से इनकार करता है। चीन का कहना है कि जिस समय ये संधियां हुईं थी तब चीन एक संप्रभु राष्ट्र नहीं था और दबाव के तहत उस पर हस्ताक्षर किए गए थे।
 
भूटान और भारत का कहना है कि सीमा विवाद सुलझाने के लिए कुछ लेना होगा तो कुछ देना भी पड़ेगा। भूटान की सीमा की समस्या भारत से जुड़ी है, क्योंकि भारत और चीन जब सीमा विवाद का कोई राजनीतिक हल निकालेंगे तब भूटान का सीमा विवाद भी सुलझेगा।
 
इस वक्त जिस तरह के हालात हैं उससे चीन के साथ सीमा विवाद सुलझने के आसार नहीं हैं। आने वाले समय में भूटान इसमें काफ़ी राजनयिक प्रयास लगा सकता है क्योंकि उसके लिए ये राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला है।
 
ब्रिक्स सम्मेलन के लिए जो भारत और चीन का रवैया नर्म हुआ है लेकिन आने वाले समय में परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह, कश्मीर मसला, पाकिस्तान का मुद्दा हो या चरमपंथ का मसला हो चीन भारत के लिए मददगार नहीं है इसलिए आपसी अविश्वास बना रहेगा।
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