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Written By WD Feature Desk
Last Updated : शुक्रवार, 7 नवंबर 2025 (16:18 IST)

Ganadhipa Chaturthi 2025: कब है गणाधिप संकष्टी चतुर्थी 08 या 09 नवंबर? नोट करें शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजन विधि

Margashirsha Sankashti Chaturthi
Ganadhipa Sankashti Chaturthi 2025: हिंदू धर्म में संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व है, और जब यह व्रत मार्गशीर्ष मास में आता है, तो इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है। इस दिन भगवान गणेश के गणाधिप स्वरूप की पूजा की जाती है, जो भक्तों के सभी संकटों और बाधाओं को दूर करते हैं। जानें साल 2025 में यह व्रत किस दिन रखा जाएगा, पूजा का शुभ मुहूर्त, चंद्रोदय का समय और पूजन की विधि...ALSO READ: Margashirsha Month Festival 2025: मार्गशीर्ष माह के व्रत त्योहार, जानें अगहन मास के विशेष पर्वों की जानकारी
 
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी 2025 की तिथि: 
मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि का निर्धारण चंद्रोदय/ चांद निकलने के समय के आधार पर किया जाता है, इसलिए व्रत की सही तारीख 8 नवंबर है।
 
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी पर पूजन के शुभ मुहूर्त:
 
अगहन कृष्ण चतुर्थी तिथि का प्रारंभ- 08 नवंबर 2025, शनिवार को सुबह 07 बजकर 32 मिनट से, 
चतुर्थी तिथि की समाप्ति- 09 नवंबर 2025, रविवार को सुबह 04 बजकर 25 मिनट तक।
 
चंद्रोदय/ चंद्र दर्शन का समय- 08 नवंबर, सायंकाल लगभग 07 बजकर 59 मिनट पर।
 
08 नवंबर के शुभ समय: 
ब्रह्म मुहूर्त- 04:53 ए एम से 05:46 ए एम
प्रातः सन्ध्या- 05:20 ए एम से 06:38 ए एम
अभिजित मुहूर्त- 11:43 ए एम से 12:26 पी एम
विजय मुहूर्त- 01:53 पी एम से 02:37 पी एम
गोधूलि मुहूर्त- 05:31 पी एम से 05:57 पी एम
सायाह्न सन्ध्या- 05:31 पी एम से 06:50 पी एम
अमृत काल- 02:09 पी एम से 03:35 पी एम
निशिता मुहूर्त- 11:39 पी एम से 12:31 ए एम, 09 नवंबर। 
 
आपको बता दें कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत चंद्र दर्शन के बाद ही तोड़ा या पारण किया जाता है, इसलिए जिस दिन चतुर्थी तिथि में चंद्रोदय होता है, उसी दिन व्रत रखना सर्वोत्तम माना गया है। यह समय आपके स्थान के अनुसार भिन्न हो सकता है।ALSO READ: Kaal Bhairav Puja 2025: काल भैरव अष्टमी पर करें इस तरह भगवान की पूजा, सभी संकट होंगे दूर
 
गणाधिप चतुर्थी का महत्व: गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का व्रत भगवान गणेश के गणाधिप स्वरूप को समर्पित है। यह व्रत संकटों का नाश करने वाला, अर्थात् संकष्टी का अर्थ ही 'संकटों को हरने वाला' है। अत: इस दिन व्रत रखने और विधि-विधान से पूजा करने पर भगवान गणेश भक्त के जीवन से सभी प्रकार के कष्ट, बाधाएं और नकारात्मकता दूर करते हैं।
 
मान्यतानुसार यह व्रत बुद्धि, ज्ञान, सौभाग्य और समृद्धि प्रदान करता है। जो भक्त सच्चे मन से गणपति बप्पा की आराधना करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, माना जाता है कि स्वयं हनुमान जी ने भी भगवान गणेश की कृपा पाने और अद्भुत शक्ति प्राप्त करने के लिए यह संकष्टी चतुर्थी व्रत किया था।
 
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी पूजन विधि: गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का व्रत सूर्योदय से शुरू होता है और चंद्र दर्शन के बाद समाप्त होता है।
 
प्रातःकाल: सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। इस दिन हो सके तो लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करना बहुत शुभ माना जाता है) 
 
संकल्प: व्रत का संकल्प लें और दिनभर निराहार या फलाहार व्रत रखें।
 
गणेश पूजा: एक चौकी पर भगवान गणेश की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। उन्हें रोली, अक्षत, दूर्वा घास/ दूब, और लाल पुष्प अर्पित करें।
 
प्रिय भोग: भगवान गणेश को मोदक, तिल के लड्डू या बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं।
 
मंत्र जाप: पूजन के दौरान 'ॐ गं गणपतये नमः' मंत्र का 108 बार जाप करें। 
 
श्री गणेश स्तोत्र या संकटनाशक गणेश स्तोत्र का पाठ भी आप कर सकते हैं।
 
संध्या पूजा और चंद्र दर्शन: शाम के समय कथा सुनें या पढ़ें। चंद्रोदय होने पर चंद्रमा के दर्शन करें।
 
चंद्र को अर्घ्य: चंद्रमा को जल में दूध, अक्षत और सफेद फूल मिलाकर अर्घ्य दें।
 
पारण: चंद्र को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण करें और प्रसाद ग्रहण करें।
 
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