अधिकमास 2020 : इस बार 160 बाद ऐसा शुभ संयोग बना है। ऐसा संयोग फिर वर्ष 2039 में बनेगा। आइए जानते हैं कि क्या होता है अधिक मास? यह हर तीन साल में क्यों आता है? इसे मल मास या अधिक मास क्यों कहते हैं? आखिर क्यों मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने दिया इस मास को अपना नाम और इस मास में क्या करें क्या नहीं?
1. हर तीन साल में एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है। बढ़ने वाले इस महीने को ही अधिक मास या मलमास कहा जाता है।
2. अधिक मास- वशिष्ठ सिद्धांत के अनुसार भारतीय हिंदू कैलेंडर सूर्य मास और चंद्र मास की गणना के अनुसार चलता है।
3. अधिक मास चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है, जो हर 32 माह, 16 दिन और 8 घटी के अंतर से आता है। इसका प्राकट्य सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच अंतर का संतुलन बनाने के लिए होता है।
4. भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन वर्ष में लगभग 1 मास के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को पाटने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है, जिसे अतिरिक्त होने के कारण अधिक मास का नाम दिया गया है।
5. क्यों कहा गया है मलमास: हिंदू धर्म में अधिक मास के दौरान सभी पवित्र कर्म वर्जित माने गए हैं। माना जाता है कि अतिरिक्त होने के कारण यह मास मलिन होता है। इसलिए इस मास के दौरान हिंदू धर्म के विशिष्ट व्यक्तिगत संस्कार जैसे नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह और सामान्य धार्मिक संस्कार जैसे गृहप्रवेश, नई बहुमूल्य वस्तुओं की खरीदी आदि आमतौर पर नहीं किए जाते हैं। मलिन मानने के कारण ही इस मास का नाम मलमास पड़ गया है।
6. श्रीराम ने दिया अपना नाम कहलाया पुरुषोत्तम मास अधिक मास के अधिपति स्वामी भगवान विष्णु माने जाते हैं। पुरुषोत्तम भगवान विष्णु का ही एक नाम है। इसीलिए अधिक मास को पुरूषोत्तम मास के नाम से भी पुकारा जाता है।
7. इस विषय में एक बड़ी ही रोचक कथा पुराणों में पढ़ने को मिलती है। कहा जाता है कि भारतीय मनीषियों ने अपनी गणना पद्धति से हर चंद्र मास के लिए एक देवता निर्धारित किए। चूंकि अधिक मास सूर्य और चंद्र मास के बीच संतुलन बनाने के लिए प्रकट हुआ, तो इस अतिरिक्त मास का अधिपति बनने के लिए कोई देवता तैयार ना हुआ। ऐसे में ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वे ही इस मास का भार अपने ऊपर लें। भगवान विष्णु ने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और इस तरह यह मल मास के साथ पुरुषोत्तम मास भी बन गया।
8. इसलिए महत्वपूर्ण है अधिक मास : हिंदू धर्म के अनुसार प्रत्येक जीव पंचमहाभूतों से मिलकर बना है। इन पंचमहाभूतों में जल, अग्नि, आकाश, वायु और पृथ्वी सम्मिलित हैं। अपनी प्रकृति के अनुरूप ही ये पांचों तत्व प्रत्येक जीव की प्रकृति न्यूनाधिक रूप से निश्चित करते हैं।
9. अधिक मास में समस्त धार्मिक कृत्यों, चिंतन- मनन, ध्यान, योग आदि के माध्यम से साधक अपने शरीर में समाहित इन पांचों तत्वों में संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है। इस पूरे मास में अपने धार्मिक और आध्यात्मिक प्रयासों से प्रत्येक व्यक्ति अपनी भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति और निर्मलता के लिए उद्यत होता है।
10. माना जाता है कि इस दौरान किए गए प्रयासों से समस्त कुंडली दोषों का भी निवारण हो जाता है। ऐसा माना जाता है कि अधिक मास में किए गए धार्मिक कार्यों का किसी भी अन्य माह में किए गए पूजा-पाठ से 10 गुना अधिक फल मिलता है।
11. अधिक मास में क्या कर सकते हैं और क्या नहीं : अधिक मास में इस पूरे माह में व्रत, तीर्थ स्नान, भागवत पुराण, ग्रंथों का अध्ययन, विष्णु यज्ञ आदि किए जा सकते हैं। जो कार्य पहले शुरु किए जा चुके हैं उन्हें जारी रखा जा सकता है। संतान जन्म के कृत्य जैसे गर्भाधान, पुंसवन, सीमंत आदि संस्कार किए जा सकते हैं।
12. अगर किसी मांगलिक कार्य की शुरुआत हो चुकी है तो उसे किया जा सकता है। विवाह नहीं हो सकता है लेकिन रिश्ते देख सकते हैं, रोका कर सकते हैं। अधिक मास में कोई प्राण-प्रतिष्ठा, स्थापना, विवाह, मुंडन, नववधु गृह प्रवेश, यज्ञोपवित, नामकरण संस्कार व कर्म करने की मनाही है।
13. लीप ईयर में आश्विन अधिक मास 160 साल बाद अंग्रेजी कैलेंडर में चार वर्ष में एक बार लीप ईयर आता है। लीप ईयर में फरवरी में 29 दिन होते हैं। हिंदू कैलेंडर में लीप ईयर नहीं होता, अधिक मास होता है।
14. ये संयोग है कि 2020 में लीप ईयर एवं आश्विन अधिक मास दोनों एक साथ आए हैं। आश्विन का अधिक मास 19 साल पहले 2001 में आया था, लेकिन लीप ईयर के साथ अश्विन में अधिक मास 160 साल पहले 2 सितंबर 1860 को आया था।
15. ऐसी भी कथा है कि जब महीनों के नाम का बंटवारा हो रहा था तब अधिकमास उदास और दुखी था। क्योंकि उसे दुख था कि लोग उसे अपवित्र मानेंगे।
ऐसे समय में भगवान विष्णु ने कहा कि अधिकमास तुम मुझे अत्यंत प्रिय रहोगे और तुम्हारा एक नाम पुरुषोत्तम मास होगा जो मेरा ही एक नाम है। इस महीने का स्वामी मैं रहूंगा। उस समय भगवान ने यह कहा था कि इस महीने की गिनती अन्य 12 महीनों से अलग है इसलिए इस महीने में लौकिक कार्य भी मंगलप्रद नहीं होंगे। लेकिन कुछ ऐसे कार्य हैं जिन्हें इस महीने में किए जाना बहुत ही शुभ फलदायी होगा और उन कार्यों का संबंध मुझसे होगा।