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मेष संक्रांति 2023 की 15 जरूरी बातें एक साथ

mesh sankranti
वर्ष में 12 संक्रांतियां होती हैं। सूर्य के मेष राशि में प्रवेश को मेष संक्रांति कहते हैं। 14 अप्रैल को सूर्यदेव करीब 02 बजकर 42 मिनट पर मेष राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य के मेष में गोचर करते ही खरमास भी समाप्त हो जाएगा। आओ जानते हैं सूर्य के मेष राशि में परिवर्तन या गोचर के बारे में 15 जरूरी बातें।
 
1 मेष संक्रांति को वर्ष की शुरुआत का समय भी माना जाता है, क्योंकि 12 राशियों में मेष को प्रथम राशि माना जाता है। इस मान से यह सौरवर्ष का प्रारंभ है। सूर्य का मेष राशि में प्रवेश सौरवर्ष या सोलर कैलेंडर का पहला माह है। 
 
2. इस दिन को भारत के कई राज्यों में त्योहार के तौर पर मनाया जाता है। जैसे बंगाल में पोहेला बोइशाख, पंजाब में बैसाखी, ओडिशा में पाना संक्रांति आदि।
 
3. खगोलशास्त्र के अनुसार मेष संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायन की आधी यात्रा पूर्ण कर लेते हैं। सौर-वर्ष के दो भाग हैं- उत्तरायण छह माह का और दक्षिणायन भी छह मास का।
 
4. इस दिन से खरमास समाप्त होने से मांगलिक कार्यों की शुरुआत भी हो जाती है।
 
5. इस बार की मेष संक्रांति का पुण्यकाल सुबह 11:01 बजे से शाम को 06:55 तक रहेगा। अवधि- 07 घण्टे 55 मिनट्स।
 
6. मेष संक्रांति का महा पुण्यकाल- दोपहर 01:06 बजे से शाम 05:17 बजे तक। अवधि- 04 घण्टे 11 मिनट्स।
 
7. मेष संक्रांति का क्षण- दोपहर 03:12 बजे।
8. इस दिन सूर्य पूजा का खास महत्व रहता है। सूर्य पूजा से मान-सम्मान में वृद्धि होती है। 
 
9. इस दिन विधिवत रूप से सूर्यदेव को अर्घ्‍य अर्पित करना चाहिए।
 
10. इस संक्रांति से वस्तुओं की लागत सामान्य रहने वाली है। धन और समृद्धि में वृद्धि होगी। लोगों की सेहत में सुधार होगा, दो राष्ट्रों के बीच संबंधों में भी सुधार होगा। अनाज के भंडारण में भी वृद्धि होगी।
 
11. मेष, मिथुन, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु और कुंभ राशि के लिए मेष संक्रांति शुभ है।
 
12. वृषभ, कन्या, तुला, मकर और मीन राशि के लिए मिलेजुले असर वाली है।
 
13. स्नान-दान-तर्पण आदि के लिए मेष संक्रांति का दिन बहुत शुभ माना जाता है। 
 
14. मेष संक्रांति के दिन सत्तू और गुड़ खाया जाता है।
 
15. इस दिन शिव, विष्णु और काली की भी पूजा का विधान है। मेष संक्रांति को खेती से भी जोड़कर देखा जाता है। फसल की पूजा की जाती है और फिर फसल कटाई की शुरुआत होती है। मौसम के बदलाव से धरती अन्न पैदा कर रही है जिससे जीवन में खुशहाली आती है। इसलिए ऋतु-परिवर्तन तथा फसलों की भरमार होने पर यह त्योहार मनाया जाता है।