आजादी के बाद भारत को हॉकी के बाद पहला मेडल दिलाने वाला खेल कुश्ती का था। लेकिन क्रिकेट और हॉकी की बेतहाशा लोकप्रियता के कारण एकल खेल जैसे कुश्ती, एथलेटिक्स, बैडमिंटन, टेबल टेनिस, टेनिस, बॉक्सिंग को उतनी लोकप्रियता नहीं मिली जितनी उनको मिलनी चाहिए थी।
आजादी के बाद इन खेलों की ओर दर्शकों के अलावा सरकार और संगठनों की भी उदासीनता रही। यही कारण रहा कि शुरुआत में इन खेलों के खिलाड़ियों को जरा भी पहचान नहीं मिली जो क्रिकेट या हॉकी के खिलाड़ियो को मिल रही थी।
लेकिन समय के साथ साथ समीकरण बदले और कुछ खेलों में मेडल खासकर ओलंपिक मेडल जीतकर उस खेल में रुचि बढ़ी।
कुश्तीयुद्ध के पुराने रूप में से एक का प्रतिनिधित्व करता कुश्ती भारत में धीरे-धीरे ही सही आगे बढ़ता गया।1952 में ही हॉकी के अलावा जो पहला मेडल किसी खेल में भारत की झोली में गिरा वह कुश्ती ही था। के डी जाधव कुश्ती में कांस्य पदक जीतकर किसी भी एकल प्रतियोगिता में मेडल आने वाले पहले खिलाड़ी बने थे।
आधुनिक युग में कुश्ती की लोकप्रियता कितनी बढ़ गई है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साल 2008 से साल 2021 में भारत में कुश्ती में 6 मेडल जीते हैं।
हरियाणा राज्य में कुश्ती बहुत लोकप्रिय है और यह राज्य लगातार कुश्ती में ओलंपियन भारत को दे रहा है।फोगट परिवार कुश्ती का एक जाना माना परिवार है जिस पर बॉलीवुड के अभिनेता आमिर खान भी फिल्म बना चुके हैं।
टेनिस और बैडमिंटन में बीच बीच में दिखाया बेहतर प्रदर्शनइसके अलावा टेनिस और बैडमिंटन जैसे खेलों में भारत टुकड़े टुकड़े में बेहतर प्रदर्शन करता रहा। टेनिस की बात करें तो कुछ मशहूर खिलाड़ी जिसमें विजय अमृतराज अशोक अमृतराज के अलावा रमेश कृष्णन ने भारत का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व किया। 90 के आखिर में लिएंडर पेस और महेश भूपति की जोड़ी काफी मशहूर रही। हालांकि 1996 ओलंपिक में मेडल लिएंडर पेस ही ला पाए।
बैडमिंटन में महिला खिलाड़ियों को ज्यादा सफलता मिली। हालांकि पुलेला गोपीचंद, प्रकाश पादुकोने जैसे खिलाड़ियों ने भी अपना नाम कमाया। पिछले 10 सालों में भारतीय खिलाड़ियों को बैडमिंटन में बड़ी सफलता मिली है। 2 महिला खिलाड़ी 3 ओलंपिक मेडल ला चुकी हैं, पीवी सिंधु और साइना नेहवाल।
टेबल टेनिस और बैडमिंटन में हाल ही में खेले गए राष्ट्रमंडल खेलों में भी इन दोनों खेलों ने भारत के लिए 7 और 6 मेडल जीते हैं।
मील्खा सिंह , पीटी ऊषा से शुरु हुए एथलेटिक्स को नीरज चोपड़ा ले आए नए मुकाम पररोम ओलंपिक 1960 में सेकेंड के दसवें हिस्से के कारण मिल्खा सिंह पदक चूकने से रह गए थे। उड़न सिख की तरह ही फिलहाल राज्यसभा सदस्य और उड़नपरी मानी जाने वाली पीटी उषा से भी भारतीय खेल प्रेमियों को यह ही उम्मीद थी। लेकिन वह भी ओलंपिक में मेडल लाने में नाकाम रही।
मिल्खा सिंह की मृत्यू के 2 महीने बाद ही भारतीय एथलेटिक्स में एक सुनहरी घटना हुई।काश वह इसे देखने के लिए जीवित होते।
नीरज चोपड़ा ने वर्ष 2021 में टोक्यो ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतकर भारतीय एथलेटिक्स में नये युग की शुरुआत की। उन्होंने ऐसी सफलता हासिल की जिसका देश एक सदी से भी अधिक समय से इंतजार कर रहा था और जिसने उन्हें देश में महानायक का दर्जा दिला दिया।
किसान के बेटे नीरज ने सात अगस्त को 57.58 मीटर भाला फेंककर भारतीय एथलेटिक्स ही नहीं भारतीय खेलों में नया इतिहास रचा जिसकी धमक वर्षों तक सुनायी देगी।
इस घटना का असर यह हुआ कि हाल में खेले गए राष्ट्रमंडल खेलों में एथलेटिक्स से 8 मेडल आए। लंबी कूद, ऊंची कूद, त्रिकूद, स्टीपलचेस, पैदल चाल जैसे खेलों में सफलता ने यह सुनिश्चित किया कि निकट भविष्य में इन ट्रैक एंड फील्ड इवेंट से भी मेडल आ सकता है।
तलवार बाजी और गोल्फ जैसे खेलों में भी मिलने लगे स्टारगोल्फ जैसा खेल जो भारत में सिर्फ अमीरों का खेल माना जाता है। उसमें भी थोड़ी ही सही लेकिन रुचि जरुर बढी है। मिल्खा सिंह के पुत्र जीव मिल्खा सिंह ही काफी बड़े गोल्फ खिलाड़ी है। लेकिन अदिति अशोक ने रियो ओलंपि में भाग लेकर और टोक्यो ओलंपिक में थोड़े अंतर से ही पदक से चूककर इस खेल के बारे में भारतीयों को जानकारी दी।
ऐसा ही कुछ भवानी देवी के लिए कहा जा सकता है जो टोक्यो ओलंपिक में तलवारबाजी के खेल में हाथ आजमाने वाली पहली भारतीय बनी।
टीम गेम के नीरस और लंबा होने से आगे लोकप्रिय होने की संभावना ज्यादाक्रिकेट अब उबाऊ हो चला है। टी-20 में ही दर्शकों की ज्यादा दिलचस्पी बची है। हॉकी 70 मिनट तो फुटबॉल 90 मिनट का समय मांगती है। ऐसे में समय की कमी के चलते ऐसे एकल खेलों की ओर दर्शकों के रुझान की संभावना ज्यादा है। जैसे जैसे इनकी लोकप्रियता बढ़ेगी इन खेलों के लिए पेशेवर खिलाड़ी और आगे आएंगें।