भौकाल 2 रिव्यू: जल्दबाजी में बनी अधपकी सीरिज
अक्सर यही होता है कि जिस वेबसीरिज का पहला सीजन बढ़िया होता है वो सीजन नंबर 2 में लड़खड़ा जाती है। भौकाल के साथ भी यही हुआ। सीरिज से रोमांच नदारद है। यूं लगता है जैसे दूसरा सीजन लाने की जल्दी थी इसलिए ताबड़तोड़ काम कर अधपका ही पेश कर दिय गया।
उत्तर प्रदेश के बहादुर पुलिस ऑफिसर नवनीत सिकेरा के कारनामों से यह सीरिज प्रेररित है। उन्हें एनकाउंटर स्पेशलिस्ट कहा जाता है और वे काफी सुर्खियों में भी रहे थे। इस सीरिज में नवनीत और डेडा ब्रदर्स की टकराहट को दिखाया गया है। तार पिछले सीजन से भी जोड़ गए हैं। शौकीन गैंग और डेडा गैंग की ताकत के जरिये दिखाया गया है कि किस तरह अपराधियों ने अपने पैर जमा लिए हैं कि पुलिस भी उनसे खौफ खाती है, लेकिन नवनीत जैसा दिलेर ऑफिसर हो तो सब कुछ संभव है।
भौकाल 2 पर कई वेबसीरिज का असर नजर आता है जिसमें मिर्जापुर सबसे खास है। हिंसा की भरमार है और कुछ सीन कम किए जा सकते थे। गालियों को बिना वजह भी ठूंसा गया है।
भौकाल 2 में विलेन्स का दबदबा लगता है और उसमें कहीं हमारा हीरो छुपा सा लगता है। महिला किरदार में बिदिता बेग का कैरेक्टर ही उभर कर आता है। मोहित रैना का अभिनय अच्छा है, लेकिन फिटनेस पहले जैसी नजर नहीं आई। शायद वजन थोड़ा बढ़ गया है। सिद्धांत कपूर अपना असर नहीं छोड़ते। प्रदीप नागर की एक्टिंग अच्छी है।
भौकाल 2 का अंत कुछ इस तरह किया गया है कि तीसरे सीजन की गुंजाइश रहे। लेकिन सीजन 2 में पहले जैसी कसावट नहीं है।