सिंघम अगेन फिल्म समीक्षा: क्या अजय देवगन और रोहित शेट्टी की यह मूवी देखने लायक है?
सिंघम अगेन के ट्रेलर में ही सारी कहानी दिखा दी गई थी। पांच मिनट के ट्रेलर की वही बात ढाई घंटे तक फैला कर रोहित शेट्टी ने दिखाई है। इसे रामायण से जोड़ा गया है और सितारों की फौज खड़ी कर दी गई है।
रामायण में सीता को लेने के लिए राम श्रीलंका जाकर रावण को परास्त करते हैं। सिंघम अगेन में बाजीराव सिंघम (अजय देवगन) अपनी पत्नी अवनि (करीना कपूर खान) को जुबैर (अर्जुन कपूर) के चंगुल से बचाने के लिए लंका जाता है। इस काम में उसकी मदद सिम्बा (रणवीर सिंह), सूर्यवंशी (अक्षय कुमार), सत्या (टाइगर श्रॉफ), शक्ति (दीपिका पादुकोण) करते हैं। इन किरदारों में आपको किसी में हनुमान तो किसी में आपको लक्ष्मण नजर आएगा।
फिल्म के लेखक क्षितिज पटवर्धन ने वर्तमान कहानी को एक स्टेज पर रामायण को लेकर किए जा रहे शो से जोड़ा है। शो में रामायण को लेकर शोध को ऑडियो-वीडियो के माध्यम से दिखाया जा रहा है, साथ में रामलीला का मंचन भी हो रहा है। इसके साथ सिंघम की कहानी को गूंथा गया है। यह प्रयोग ज्यादा असरदायक नहीं बन पाया है।
चूंकि रामायण की कहानी सभी जानते हैं इसलिए फिल्म में आगे क्या होने वाला है, यह कोई भी बता सकता है। इसलिए निर्देशक रोहित शेट्टी ने सितारों के स्टारडम और एक्शन दृश्यों के जरिये दर्शकों को बांधने की कोशिश की है। उनके कॉप यूनिवर्स में सिंघम, सिम्बा और सूर्यवंशी के साथ शक्ति और सत्या की भी एंट्री हो गई है ताकि इस कॉप यूनिवर्स को अगली फिल्मों के जरिये बढ़ाया जाए।
फिल्म देखते समय ऐसा महसूस होता है कि क्लाइमैक्स पहले सोच लिया गया कि तमाम सितारों को लेकर आखिर में जबरदस्त एक्शन सीन दिखाने हैं, लेकिन मंजिल तक पहुंचने का जो रास्ता है वो उतना रोमांचकारी नहीं है।
फिल्म का शुरुआती घंटा बेहद उबाऊ है। सिंघम, उसकी पत्नी और बेटे के बीच जनरेशन गैप और सोच को लेकर जो बातचीत है, उसमें मनोरंजन जैसा कुछ नहीं है। फिल्म थोड़ा दम तब भरती है जब विलेन बने अर्जुन कपूर की एंट्री होती है। इस बीच दीपिका और टाइगर श्रॉफ की भी एंट्री हो जाती है। इनके एक-दो एक्शन सीन अच्छे हैं, लेकिन फिर ये गुम हो जाते हैं और क्लाइमैक्स में फिर प्रकट हो जाते हैं।
पटरी से उतरी फिल्म में इंटरवल के बाद तब थोड़े मनोरंजन के क्षण आते हैं जब सिम्बा बने रणवीर सिंह की एंट्री होती है। वे अपनी हरकतों और संवादों के जरिये दर्शकों को हंसाते हैं, लेकिन फिल्म के लीड कैरेक्टर बने सिंघम को लेकर वैसे सीन रचे नहीं गए हैं जैसी कि दर्शकों को उम्मीद रहती है।
सिंघम की दहाड़, उसके जोरदार डायलॉग को दर्शक मिस करते हैं। सिंघम को वैसे सीन भी नहीं मिले हैं कि वह 'हीरोगिरी' दिखा सके। केवल काला चश्मा पहन और स्टाइलिश स्लो मोशन वॉक को लेकर ही वैसा प्रभाव पैदा करने की कोशिश की गई है। एक-दो सीन ठीक है, लेकिन बार-बार इस तरह के सीन मोनोटोनस लगते हैं।
फिल्म केवल एक मिशन पर टिकी है कि सिंघम को अपनी पत्नी को छुड़ाना है, लेकिन इसको लेकर ड्रामे में कोई उतार-चढ़ाव या रोमांच नहीं है। सब कुछ आसानी से हो जाता है। लेखकों ने सिर्फ मोटी-मोटी बातों को ध्यान में रखा है और बारीक बातों को खिड़की के बाहर फेंक दिया है। इसलिए ड्रामे में वो तनाव नजर ही नहीं आता, जो इस मिशन के लिए जरूरी था।
फिल्म में विलेन जुबैर को लेकर काफी बातें कही गई है कि वह खूंखार है, होशियार है, आग का तूफान है, लेकिन वैसी बात उसके किरदार में नजर नहीं आती है। वह गलती पर गलती करता है और आफतों को खुद मोल लेता है।
सिंघम की पत्नी सुरक्षित है, यह बात साबित करने के लिए वह सिम्बा को अपने पास क्यों बुलाता है? इससे तो उसकी मुश्किलें बढ़नी ही थी। वह इतनी सी बात नहीं सोच पाया कि सिम्बा के पीछे-पीछे सिंघम भी आ सकता है।
लेखकों ने रामायण से कहानी को जोड़ने में कई तरह की छूट ली है और दर्शकों की समझ पर कम भरोसा किया है। यह छूट तब पसंद आती है जब फिल्म में भरपूर मनोरंजन हो, जिसकी सिंघम अगेन में कमी है।
लेखक वैसे मनोरंजक सीन नहीं दे पाए, जिसके लिए रोहित शेट्टी की फिल्में जानी जाती हैं। ड्रामे में इमोशन नहीं है, एक्शन सीन भी ठीक-ठाक हैं और कॉमेडी में भी हाथ तंग है।
निर्देशक रोहित शेट्टी ने सितारों की चकाचौंध से दर्शकों को प्रभावित करने की कोशिश की है। स्टाइल पर उनका ध्यान इतना ज्यादा रहा कि वे स्क्रिप्ट की खामियों को नजरअंदाज कर गए।
अजय देवगन सिंघम के रूप में ठीक-ठाक रहे। उन्हें सिंघम के रूप में जोरदार सीन नहीं मिले। करीना कपूर खान के सीन उबाऊ हैं। दीपिका पादुकोण का किरदार उम्मीद जगाता है, लेकिन उसे ज्यादा आगे नहीं बढ़ाया गया। यही हाल टाइगर श्रॉफ के किरदार का रहा। रणवीर सिंह सिम्बा के रूप में चमक बिखरने में कामयाब रहे और वे राहत देते हैं।
अक्षय कुमार अंत में आकर फिल्म को स्टाइलिश बनाते हैं। विलेन बने अर्जुन कपूर प्रभावित करते हैं। चुलबुल पांडे के रूप में सलमान खान चंद सेकंड के लिए आते हैं और निर्देशक इशारा देते हैं कि अगली फिल्म सिंघम और चुलबुल को लेकर बना सकते हैं। सलमान के स्टारडम का खास उपयोग नहीं हो पाया।
फिल्म के संवाद औसत दर्जे के हैं, जबकि इस तरह की फिल्म में जोरदार संवाद की मांग रहती है। सिनेमाटोग्राफी बढ़िया है और एक्शन सीन बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं करते। फिल्म की एडिटिंग चुस्त है।
कुल मिलाकर सिंघम सीरिज का ग्राफ लगातार नीचे आ रहा है। दूसरी फिल्म, पहली वाली से कमजोर थी और तीसरी फिल्म, दूसरी वाली से कमजोर है।