हैंड ऑफ गॉड के लिए ही नहीं, अपनी शोहरत से आजादी के लिए भी माराडोना को याद रखा जाएगा
दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेल फुटबॉल के मैदान में असाधारण मूव्स और गति के लिए डिएगो अरमांडो माराडोना को बेशक दुनिया हमेशा याद रखेगी, क्योंकि यही वो शख्स था, जिसकी वजह से
हैंड ऑफ गॉड ईजाद हुआ और उसी मैदान पर अगले चार मिनट में उसने दुनिया को
गोल ऑफ द सेेंचुरी उपहार में भेंट किया था।
फुटबॉल की दुनिया में यह दोनों कारनामे 1986 के वर्ल्ड कप के क्वार्टर फ़ाइनल में घटे थे। मेक्सिको में क्वार्टर फ़ाइनल का यह मैच अर्जेंटीना और इंग्लैंड के बीच था, जिसमें 51 मिनट बाद भी दोनों तरफ से कोई गोल नहीं हुआ था।
ठीक इसी वक्त माराडोना ने अपने हाथ से फ़ुटबॉल को नेट में डाल दिया। गोल पर विवाद था। हाथ के इस्तेमाल की वजह से यह फ़ाउल था, लेकिन रेफ़री के कन्फ्यूजन की वजह से अर्जेटीना 1-0 से मैच में आगे हो गया।
मुकाबले के बाद माराडोना ने कहा था कि उन्होंने यह गोल
'थोड़ा सा अपने सिर और थोड़ा सा भगवान के हाथ से' किया था।
1980 का यह वह दौर था जब डिएगो मैदान पर दौड़ता था तो दुनिया के लाखों फुटबॉल प्रेमियों की रगों में भी खून दौड़ने लगता था। डिएगो का यह जादू 90 के दशक तक चलता रहा।
शायद यही वो वक्त था, जब से कहा जाने लगा कि स्पोर्ट भी एक आर्ट हो सकता है। डिएगो को ब्राजील के महान प्लेयर पेले से कंपेयर किया जाने लगा और उसकी वजह थी कि उसने 491 मैचों में कुल 259 गोल दागे थे। वहीं एक पब्लिक पोल में डिएगो ने पेले को पीछे छोड़ दिया और उसने बीसवीं सदी के सबसे महान फ़ुटबॉलर होने का गौरव अपने नाम पर दर्ज कर लिया था।
लेकिन ब्यूनस आयर्स में उदय हुआ डिएगो दुनिया का ऐसा सितारा था, जिसकी जिंदगी में महानता की चमक के साथ-साथ बदनामी का अंधेरा भी गहराता जा रहा था।
जैसे-जैसे वो सफलता के शिखर पर स्थापित होते जा रहे था, ठीक इसके पेरेलल इस महान सितारे की जिंदगी में बदनामी के भी कई दाग लगते जा रहे थे।
चाहे शराब हो या कोकीन या फिर एफ़ेड्रिन का नशा और लत। वे इन सब में बुरी तरह घुस गया था। यहां तक कि उनका नाम इटली के कुख्यात माफ़िया ऑर्गनाइजेशन कैमोरा से भी जुड़ गया।
जितनी शोहरत, उतनी बदनामी। शायद यह शोहरत ही उसे जिंदगी में बेतरतीब बना रही थी। क्योंकि उन्होंने एक बार अपने इंटरव्यू में कहा था कि ---
यह एक बेहतरीन जगह है, लेकिन मैं यहां मुश्किल से सांस ले पाता हूं, मैं आज़ाद और बेफ़िक्र होकर इधर-उधर घूमना चाहता हूं। मैं किसी आम इंसान की तरह ही हूं,
हो न हो अपनी शोहरत की कैद से बाहर आने के लिए ही डिएगो नशे की गिरफ्त में अपनी आजादी खोजने चला आया था।
दुनिया के महान प्लेयर्स से उनकी तुलना करें तो डिएगो भारत के सचिन तेंदुुलकर की तरह संतुलित और सौम्य नहीं था। न ही वो अपने ही शहर ब्यूनस ऑयर्स से निकलकर स्टार बने लियोनल मेसी की तरह था।
निजी तौर पर वो एक ऐसी शख्शियत था, जिसे अपनी शोहरत की परवाह नहीं थी और इसी बेपरवाही में वो नशे और एक बुरी लाइफस्टाइल में डूबता गया। इस बेख्याली का आलम यह था कि जिसे दुनिया फुटबॉल का भगवान कहती थी, उसका वजन 128 किलो तक पहुंच गया।
जिस महान ब्राजिलियन फुटबॉलर पेले से डिएगो की तुलना की जाती है, वो डिएगो से 20 साल बडा है, लेकिन 60 साल के डिएगो माराडोना ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
हालांकि, दुनिया में आने और जाने के चक्र से पेले और डिएगो माराडोना जैसे प्लेयर्स की जिंदगी में फर्क नहीं पड़ता, वे दुनिया में रहने के लिए नहीं लाखों-करोड़ों की स्मृतियों में अपनी महानता के चिन्ह छोड़ने आते हैं।