पुण्यतिथि विशेष: आश्विन कृष्ण दशमी को ज्योति जोत में समा गए थे गुरु नानक देव जी
Guru Nanak Dev Death Anniversary: गुरु नानक देव जी सिख धर्म के संस्थापक है। उनका जन्म सन् 1469 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन तलवंडी नामक गांव में हुआ था। वे बचपन से ही अध्यात्म एवं भक्ति की तरफ आकर्षित थे। नानक देव स्थानीय भाषा, पारसी और अरबी भाषा में पारंगत थे। जब बचपन में उन्हें चरवाहे का काम सौंपा गया तो वे पशुओं को चराते समय वे कई घंटों ध्यान में लीन रहते थे। एक दिन उनके मवेशियों ने पड़ोसियों की फसल को बर्बाद कर दिया तो उनको पिता ने उनको खूब डांटा। जब गांव का मुखिया राय बुल्लर वो फसल देखने गया तो फसल एकदम सही-सलामत थी। यही से उनके चमत्कार शुरू हो गए और इसके बाद वे संत बन गए।
बता दें कि आश्विन कृष्ण दशमी तिथि को गुरु नानक देव जी ज्योति जोत में समा गए थे और अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 22 सितंबर को उनकी पुण्यतिथि थी। वर्ष 2023 में तिथिनुसार उनकी पुण्यतिथि 9 अक्टूबर को आश्विन कृष्ण दशमी के दिन भी मनाई जा रही है।
• गुरु नानक देव जी ने ऐसे विकट समय में जन्म लिया था, जब भारत में कोई केंद्रीय संगठित शक्ति नहीं थी। विदेशी आक्रमणकारी भारत देश को लूटने में लगे थे। धर्म के नाम पर अंधविश्वास और कर्मकांड चारों तरफ फैले हुए थे। ऐसे समय में गुरु नानक सिख धर्म के एक महान दार्शनिक, विचारक साबित हुए।
• उनके व्यक्तित्व में दार्शनिक, कवि, योगी, गृहस्थ, धर्म सुधारक, समाज सुधारक, देशभक्त और विश्वबंधु के समस्त गुण मिलते हैं। गुरु नानक देव जी ने उपदेशों को अपने जीवन में अमल किया और चारों ओर धर्म का प्रचार कर स्वयं एक आदर्श बने। सामाजिक सद्भाव की मिसाल कायम की और मानवता का सच्चा संदेश दिया।
• गुरु नानक देव जी आत्मा, ईश्वर के सच्चे प्रतिनिधि, महापुरुष व महान धर्म प्रवर्तक थे। जब समाज में पाखंड, अंधविश्वास व कई असामाजिक कुरीतियां मुंहबाएं खड़ी थीं, हर तरफ असमानता, छुआछूत व अराजकता का वातावरण जोरों पर था, ऐसे नाजुक समय में गुरु नानक देव ने आध्यात्मिक चेतना जाग्रत करके समाज को मुख्य धारा में लाने के लिए कार्य किया।
• सिख पंथ का इतिहास, पंजाब का इतिहास और दक्षिण एशिया (अब मौजूदा पाकिस्तान और भारत) के सोलहवीं सदी के सामाजिक एवं राजनैतिक माहौल से बहुत मिलता-जुलता है। मुगल सल्तनत के दौरान लोगों के मानवाधिकार की हिफाजत करने के लिए सिखों के संघर्ष उस समय की हकूमत से थी, इस कारण से सिख गुरुओं ने मुस्लिम मुगलों के हाथों बलिदान दिया।
• सिख धर्म के सिद्धांत और इतिहास की शानदार परंपराएं आज भी इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। सिख धर्म का सुप्रसिद्ध सिंहनाद है- 'नानक नाम चढ़दी कला-तेरे भाणे सरबत का भला।' इससे यह स्पष्ट है कि प्रभु भक्ति द्वारा मानवता को ऊंचा उठाकर सबका भला करना ही सिख धर्म का पवित्र उद्देश्य रहा है। इसके धर्मग्रंथ, धर्म मंदिर, सत्संग, मर्यादा, लंगर (सम्मिलित भोजनालय) तथा अन्य कार्यों में मानव प्रेम की पावन सुगंध फैलती है।
• गुरु नानक देव ने जहां सिख धर्म की स्थापना की, वही उदारवादी दृष्टिकोण से सभी धर्मों की अच्छाइयों को भी समाहित किया। उनका मुख्य उपदेश यह था कि, ईश्वर एक है, हिन्दू मुसलमान सभी एक ही ईश्वर की संतान हैं और ईश्वर के लिए सभी समान हैं और उसी ने सबको बनाया है। नानक ने 7,500 पंक्तियों की एक कविता लिखी थी जिसे बाद में गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल कर लिया गया।
• सिख गुरुओं ने साम्राज्यवादी अवधारणा कतई नहीं बनाई, बल्कि संस्कृति, धार्मिक एवं आध्यात्मिक सामंजस्य के माध्यम से मानवतावादी संसार को महत्व दिया। उन्होंने सुख प्राप्त करने तथा ध्यान करते हुए प्रभु की प्राप्ति करने की बात कही है। सिखों के प्रथम गुरु, गुरु नानक देव जी ने अपने समय के भारतीय समाज में व्याप्त कुप्रथाओं, अंधविश्वासों, जर्जर रूढ़ियों और पाखंडों को दूर करते हुए प्रेम, सेवा, परिश्रम, परोपकार और भाईचारे की दृढ़ नींव पर सिख धर्म की स्थापना की।
गुरु नानक देव ने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि ईश्वर सत्य है और मनुष्य को अच्छे कर्म करने चाहिए ताकि परमात्मा के दरबार में उसे लज्जित न होना पड़े। गुरु नानक देव जी ने करतारपुर नामक एक नगर बसाया, जो कि अब पाकिस्तान में है। उन्होंने वहां एक बड़ी धर्मशाला बनवाई और आश्विन कृष्ण 10 (दशमी), संवत् 1597 (22 सितंबर 1539 ईस्वी) को इसी स्थान पर गुरु नानक देव जी की मृत्यु करतारपुर में हुई थी।