निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 6 जुलाई के 65वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 65 ) में श्रीकृष्ण द्वार उद्धव को ब्रज भेजना, राधा द्वार उनके ज्ञानके अहंकार को हटाना, उद्धव में राधा और श्रीकृष्ण की भक्ति का जागृत होना और उनके स्तुति ज्ञाने के बाद जारासंध को अपने कक्ष में बेचैनी से इधर से उधर घुमते हुए बताया जाता है। वह प्रतिशोध की ज्वाल में जल रहा था। बार-बार उसे कंस वध, अपनी हार और अपमान की याद आती है।
एक वर्ष के बाद उसके सभी साथी फिर से अपनी अपनी सेना लेकर मगध पहुंचने लगे थे। राजकुमार रुक्मी आकर जरासंध को बताता है कि महाराज शल्य अपनी सेना समेत पहुंच गए हैं। जारासंध कहता है कि आज रात ही एक सभा का आयोजन किया जाए जिसमें सेनाओं के कूच का दिन निश्चित किया जाए। रुक्मी कहता है जो आज्ञा महाराज और वह चला जाता है।
रात को जरासंध अपने मित्र राजाओं के संग एक सभा का आयोजन करता है। इसमें पूर्णिमा के दिन मथुरा कूच करने का निर्णय होता है और यह भी कि इस बात की सूचना मथुरा वालों को तब तक नहीं मिलना चाहिए जब तक की हम उनके बिल्कुल ही निकट नहीं पहुंच जाते।
उधर, विदुर कहते हैं तातश्री एक आवश्यक मंत्रणा के लिए आपको कष्ट देना पड़ा। हमारे गुप्तचरों ने सूचना दी है कि जरासंध और उसके मित्रों ने फिर से एक विशाल सेना एकत्रित कर ली है और वह दोबारा मथुरा पर आक्रमण करने की योजना बना रहे हैं और इसबार सारी तैयारी बड़े गुप्त रूप से हो रही है। उनका विचार है कि आक्रमण अतिशीघ्र और अचानक किया जाए ताकि मथुरा वालों को युद्ध की तैयारी का अवसार ही ना मिले। अब आप बताए कि इस अवसर पर अब क्या करना चाहिए। तब भीष्म पितामाह कहते हैं कि सबसे पहले मथुरा वालों को इसकी सूचना भेजेने के लिए एक दूत भेज दें। तब यह सुनकर द्रोणाचार्य कहते हैं कि और दूत से यह भी कहना कि यदि श्रीकृष्ण आज्ञा दें तो इस बार मथुरा की रक्षा के लिए हम भी तैयार हैं। विदुर कहते हैं जी।
उधर, अक्रूरजी श्रीकृष्ण और बलराम को आकर बताते हैं कि प्रभु जरासंध ने फिर से कई अक्षौहिणी सेना एकत्रित कर ली है और संभवत: उसकी सेना मथुरा की ओर कूच भी कर चुकी है। हस्तिनापुर के महामंत्री विदुर ने ये सूचना आप तक तुरंत पहुंचाने के लिए एक विशेष राजदूत भेजा है।
यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं देख लो दाऊ भैया। वही हुआ जो मैंने कहा था। कई अक्षौहिणी असुर आपके हाथों मरने के लिए स्वयं ही चले आ रहे हैं। यह सुनकर अक्रूरजी कहते हैं क्या आपको पता था प्रभु कि वह फिर से आक्रमण करेगा? तब श्रीकृष्ण कहते हैं ऐसी आशा थी। तब अक्रूरजी कहते हैं कि हस्तिनापुर का दूत आपके लिए गुरु द्रोण का भी संदेशा लाया है। उन्होंने आपके नाम ये पत्र भेजा है। अक्रूरजी वह पत्र श्रीकृष्ण को सौंप देते हैं।
पत्र पढ़कर श्रीकृष्ण कहते हैं कि गुरु द्रोण अपनी भूल का प्रायश्चित कराना चाहते हैं। वो इस युद्ध में हमारी सहायता करना चाहते हैं। यह सुनकर बलराम कहते हैं कि उन्हें लिख दीजिये कि हमें किसी की सहायता की आवश्यकता नहीं। हम अकेले ही पर्याप्त हैं।
तब श्रीकृष्ण कहते हैं- ऐसा मत लिखना। उन्हें बड़े आदर से पत्र लिखना जिसमें सबसे पहले हमारी ओर से उनका धन्यवाद करना और लिखना की आपके ऐसा कहने से ही हमारा मनोबल बढ़ गया है। हम आपकी ये बात याद रखेंगे और यदि आवश्यकता हुई तो हम आपको संदेश देंगे।... अक्रूरजी कहते हैं जी प्रभु। फिर श्रीकृष्ण कहते हैं कि ये पता लगाइये कि जरासंध की सेना कहां तक पहुंची है। अक्रूरजी कहते हैं जो आज्ञा प्रभु।
उधर, जरासंध की सेना को कूच करते हुए बताया जाता है। तभी जरासंध देखता है कि इस मैदान के सामने एक बहुत लंबा और ऊंचा पहाड़ रास्ते में है। इसे देखकर वह कहता है रुको, सभी रूक जाते हैं। फिर वह सेनापति वर्धक से कहता है कि यहां पर सारी सेना को रोक दो, जब तक हमारा दूत पहाड़ी के ऊपर से इशारा न करे। सेनापति कहता है जो आज्ञा। वह चीखकर कहता है विश्राम..तो सारी सेना रुक जाती है। सभी राजा और उनके सेनापति विश्राम की घोषणा कर देते हैं।
फिर जरासंध एक कागज की दूरबीन से पहाड़ी की ओर देखता है तो एक सैनिक उसे झंडा लहराते हुए दिखाई देता है। तब जरासंध कहता कि ये हमारे सैनिक का इशारा है कि मैदान साफ है, हमें कोई नहीं देख रहा। फिर जरासंध अपने सेनापति से कहता है कि पहाड़ी के उस और मथुरा है इसलिए तुम पहाड़ी के इस ओर अपना पड़ाव डाल दो। क्योंकि सैनिक थक चुके हैं इसलिए आधी रात तक उन्हें विश्राम करने दो और प्रात:काल सूर्योदय से पहले उन्हें मथुरा के लिए जाने के लिए तैयार रहना चाहिए..जाओ। वर्धक कहता है जो आज्ञा महाराज। फिर जरासंध कहता है सेनापति वर्धक जैसा कि पहले आज्ञा दी जा चुकी है कि आज की राज शिविर में कहीं कोई मशाल या दीपक नहीं जलाया जाएगा ताकि किसी को यह पता न चले कि हमारी सेना मथुरा पहुंच गई है और इसी पहाड़ी के पीछे छुपी हुई है।
फिर जरासंध और उसके साथी राजाओं की संपूर्ण सेना पहाड़ी के नीचे शिविर लगाकर विश्राम करती है, लेकिन मथुरा के दो गुप्तचर ये देख लेते हैं।....
फिर सेनापति वर्धक आकर कहता है कि महाराज हमारे गुप्तचर ने कहा है कि मथुरा की जनता और सेना में कोई हलचल नहीं है इसका मतलब यह है कि उन्हें नहीं पता चला है कि हमारी सेना मथुरा पहुंच गई है। यह सुनकर जरासंध प्रसन्न हो जाता है। तब वह रुक्मी को बताता है कि मथुरावालों को पता नहीं है जब सुबह वे मथुरा का फाटक खोलेंगे तो हमारे सैनिक धड़ाधड़ मथुरा के भीतर प्रवेश कर जाएंगे और उनके होश में आने के पहले ही सारा मथुरा नगर आग में जल रहा होगा रुक्मी। रुक्मी कहता है- परंतु मुझे आश्चर्य होता है महाराज यह कि मथुरा का प्रबंधन कितना लापरवाह है कि उन्हें इस बात की जरा भी भनक लगी की हमारी सेना यहां तक पहुंच गई और वे विलासितपूर्ण तरीके से सो रहे हैं।
उधर, फिर वह मथुरा के गुप्तचर छुपते हुए पहाड़ी की एक गुप्त गुफा में घुस जाते हैं। उस सुरंग में कुछ दूर जाकर देखते हैं कि कई हथियारबद्ध सैनिक खड़े हुए रहते हैं जिनके बीच से गुजरकर वे गुप्तचर अक्रूरजी के पास पहुंच जाते हैं। अक्रूरजी पूछते हैं, कहो जरासंध की सेना पहाड़ी के पीछे पहुंच गई? दोनों गुप्तचर कहते हैं जी। उन्होंने वहीं डेरा डाल दिया है। जरासंध और उनकी सेना सारी रात वहीं विश्राम करेगी। तब अक्रूरजी कहते हैं चंद्रवदन सारी रात नहीं, केवल आधी रात। आधी रात को तो हम उन्हें जगाने जाएंगे। ध्यान से सुनो.. हमारे सैनिकों की एक टूकड़ी इस पहाड़ी के ऊपर से नीचे उतरेगी। दूसरी टूकड़ी इस पहाड़ी का चक्कर काटकर जरासंध की सेना के पीछे पहुंच जाएगी जिससे वह दोनों ओर से घिर जाएं और उन्हें भागने का मार्ग न मिल सके। अब हमारी विजय निश्चित ही है।
पहले श्रीकृष्ण को अपने महल में बताया है। फिर अक्रूरजी की योजना के तहत सेना की एक टूकड़ी रात्रि में पहाड़ी पर पहुंच जाती है। फिर धीरे-धीरे चारों ओर से मथुरा की सेना जरासंध की सेना को घेर लेती हैं। फिर अक्रूरजी आसमान में देखकर कहते हैं जय श्रीकृष्ण।... यह सुनते ही श्रीकृष्ण आशीर्वाद देते हैं। फिर अक्रूरजी तलवार निकालकर हर हर महादेव बोलते हुए आक्रमण बोल देते हैं। चारों ओर से एक साथ आक्रमण हो जाता है।
वर्धक सहित जरासंध की सारी सेना के सभी सेनपति अचानकर हुए इस आक्रमण को देखकर दंग रह जाते हैं और चीखने लगते हैं आक्रमण हुआ है। तब एक राजा शिविर से बाहर निकलकर कहता है ये क्या हमारे साथ धोका हुआ है। कोई कुछ समझ नहीं पाता है और मथुरा के सैनिक शिविर में घुसकर मारकाट करने लग जाते हैं। शिविर में चारों ओर आग लगा दी जाती है।
शिविर में सोए जरासंध के पास वर्धक भागता हुआ आता है और कहता है- सम्राट..सम्राट धोका हो गया। जरासंध कहता है क्या धोका हो गया? वर्धक कहता है- हां शत्रु ने हम पर आक्रमण कर दिया। जरासंध घबराकर उठता है और चीखकर कहता है सेनापति वर्धक महाराज शल्य, बाणासुर, वामासुर और राजकुमार रुक्मी सबको सूचित करो और अभी इसी समय आक्रमक के लिए कूच करो जाओ। वर्धक कहता है जो आज्ञा सम्राट। सभी को सूचित किया जाता है और सभी युद्ध के लिए कूच करने का आदेश देते हैं।
जरासंध अपने रथ पर सवार होता है तो देखता है कि चारों ओर आग ही आग है। फिर वह अपने मायावी अस्त्रों से मथुरा की सेना का संहार करने लगता है। शल्य भी अपने रथ पर सवार होकर यही करने लगते हैं। यह देखकर अक्रूरजी हैरान रह जाते हैं।
उधर, अपने महल की गैलरी में खड़े श्रीकृष्ण बलराम से कहते हैं कि शत्रु अब मायावी अस्त्र चलाने लगा है। उनका सामना करना अक्रूरजी के बस की बात नहीं है। लगता है कि अब हमें ही जाना पड़ेगा। तभी सभी आसमान में देखते हैं बिजली कौंधते हुए। अक्रूरजी सहित जरासंध, शल्य, बाणासुर आदि सभी आसमान में देखते हैं कि दो रथ नीचे उतर रहे हैं जिनमें श्रीकृष्ण और बलराम सवार हैं। यह देखकर जरासंध और शल्य घबरा जाते हैं। अक्रूरजी यह देखकर प्रसन्न हो जाते हैं। फिर घमासान युद्ध होता है और अंतत: जरासंध सहित सभी भाग जाते हैं।
फिर बताते हैं कि जरासंध को फिर से उसके साथी राजाओं द्वारा जोश दिलाया जाता है तो वह फिर से सेना एकत्रित करके मथुरा पर चढ़ाई कर देता है लेकिन हर बार वह मुंह की खाता है। युद्ध चलता रहता है यूं ही कई बार और असुरों का संहार होता रहता है। हार हार कर जरासंध अंतत: युद्ध की हिम्मत हार जाता है। जय श्रीकृष्णा ।