निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 28 अगस्त के 118वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 118 ) में संभरासुर से भानामति को प्रद्युम्न के लिए अभयदान मिल जाने के बाद भानामति अपने घर जाती है तो उसका पति भाणासुर प्रद्युम्न को मारने के लिए उतावला होता है तो भानामति कहती है कि तुम इसे नहीं मार सकते क्योंकि महाराज संभुरासुर ने इसे अभयदान दिया है और जो भी इसे मारेगा उसे महाराज दंड देंगे। यह सुनकर भाणासुर कहता है कि ठीक है मैं इसे मार नहीं सकता, परंतु महाराज को सचाई बता दूंगा कि यह हमारा पुत्र नहीं है यह तो मछली के पेट से मिला था। महाराज संभरासुर को सचाई बताने से तो तुम मुझे नहीं रोक सकती ना!
यह सुनकर भानामति घबरा जाती है और कहती है- नहीं नहीं स्वामी! ऐसा मत कीजिये। परंतु यह कहकर वह भाणासुर वहां से चला जाता है। तब भानामति भगवान विष्णु की मूर्ति के समक्ष खड़े होकर कहती है- हे भगवान विष्णु! तुमने मेरी प्रार्थना सुनकर मेरी सुनी गोद तो भर दी है परंतु अब तुम्हीं इस गोद को उजड़ने से बचाना। इस नि:ष्पाप बालक की रक्षा करना, क्योंकि अब केवल तुम्हीं इसे बचा सकते हो, मेरे बालक की रक्षा करना प्रभु।
उधर, भाणासुर राजमहल में प्रवेश कर जाता है। वहां संभरासुर के कक्ष के बाहर उसे सैनिक रोक लेते हैं तो वह कहता है- द्वारपाल मुझे महाराज संभरासुर से मिलना है। तब द्वारपाल कहते हैं कि इस समय महाराज किसी से नहीं मिल सकते। तब वह जोर से कहता है कि मेरा उनसे मिलना अति आवश्यक है। यदि मैं उनसे नहीं मिलूंगा तो अनर्थ हो जाएगा।....भीतर संभरासुर यह आवाज सुन लेता है तो वह कहता है- द्वारपाल भाणासुर को अंदर आने दो।
भाणासुर अंदर जाकर मायावती के साथ बैठे संभरासुर को प्रणाम करता है तो मायावी कहती है- भाणासुर महाराज से मिलने के लिए इतने उत्सुक क्यों हो तुम? फिर संभुरासुर कहता है- और तुम किस अनर्थ की बातें कर रहे थे भाणासुर? फिर भाणासुर कहता है कि स्वामी मैं आपकी सुरक्षा के संबंध में एक महत्वपूर्ण रहस्य जो हमने आपसे अब तक छुपा रखा था आपको बताने आया हूं। यह सुनकर मायावती कहती है- तो शीघ्र ही बताओ क्या बात है भाणासुर? तब संभरासुर भी कहता है कि तुम हमारे किस अनर्थ के बारे में बताना चाहते हो भाणासुर शीघ्र बताओ।
यह घटना भगवान श्रीकृष्ण अपने महल में बैठे हुए अपनी माया से देख रहे होते हैं।
तब भाणासुर कहता है- मैं बताने आया हूं कि महाराज प्रद्युम्न हमारा बेटा... तभी प्रभु की माया से भाणासुर की आवाज बैठ जाती है। उसकी आवाज ही नहीं निकल पाती है, वह गूंगा हो जाता है। तब संभरासुर कहता है- भाणासुर क्या हुआ तुम्हें? तुम कुछ बोलते क्यों नहीं? ओह! अच्छा तो तुम भी राजगुरु की बातों में आ गए। भूल जाओ भाणासुर की प्रद्युम्न हमारे लिए अशुभ है और मेरी चिंता भी छोड़ दो।
श्रीकृष्ण ये देखकर मुस्कुराते हैं और उधर आसमान में रति के साथ खड़े नारदमुनि भी नारायण नारायण करते हैं।... संभरासुर कहता है कि आखिर तुम कहना क्या चाहते हो प्रद्युम्न के बारे में भाणासुर? तब मायावती कहती हैं- बैचारा आतंकित हो गया है। कदाचित इसीलिए बोल नहीं पा रहा है। मुझे लगता है कि प्रद्युम्न के बारे में चिंतित है। यह सुनकर संभरासुर जोर-जोर से हंसने लगता है। फिर वह कहता है- मैंने प्रद्युम्न को अभयदान दिया है भाणासुर, इसलिए कि उस बालक को मैं अपना काल नहीं समझता। अब कुंभकेतु या मुझसे प्रद्युम्न को कोई खतरा नहीं है। इसलिए जाओ भाणासुर, निश्चिंत होकर जाओ। ना ही मुझे प्रद्युम्न से डर है और ना ही प्रद्युम्न के लिए तुम्हें मुझसे डर होना चाहिए जाओ भाणासुर....।
भाणासुर वहां से निराश होकर चला जाता है। तब मायावती कहती है- पुत्र का मोह, पुत्र का स्नेह और पुत्र का वियोग इन तीनों को हमने अनुभव किया है महाराज। इसलिए मुझे भानामति और भाणासुर की व्याकुलता में अपना ही प्रतिबिंब दिखाई दे रहा है। प्रद्युम्न को अभय देकर आपने अच्छा ही किया है महाराज, बहुत ही अच्छा किया है।... यह सुनकर श्रीकृष्ण प्रसन्न हो जाते हैं।
उधर, भाणासुर अपने घर चला जाता है तो उसकी पत्नी कहती है- स्वामी आपकी ये अवस्था? भाणासुर कुछ बोल नहीं बाता है परंतु उसमें और क्रोध भर जाता है। वह इशारे से बताता है कि इस बच्चे के कारण मेरी आवाज चली गई। उसकी पत्नी घबरा जाती है। वह इशारे से बताता है कि यह बच्चा मुझे दे दो मैं इसकी गर्दन मरोड़ दूंगा। ऐसा कहकर वह प्रद्युम्न को उसकी पत्नी की गोद में से छीन लेता है और भानामति को धक्का दे देता है जिसके चलते वह एक खंभे से टकराकर बेहोश हो जाती है।... यह घटना देवी रति और नारदमुनि देखते रहते हैं।
फिर भाणासुर उस बच्चे को एक ओर ले जाकर बड़ा-सा चाकू निकाल लेता है और उस रोते हुए बालक को मारने ही वाला रहता है कि श्रीकृष्ण अपनी माया से उसका हाथ दूसरी ओर मोड़ देते हैं और उसके हाथ से चाकू गिर जाता है। उसका वह हाथ अपंग जैसा हो जाता है।... तभी उसकी पत्नी को होश आ जाता है तो वह प्रद्युम्न को पुकारती हुई भागती हुई उधर आती है और भाणासुर के दूसरे हाथ से प्रद्युम्न को छीन लेती है और उसे दुलार करने लगती है।
फिर वह अपने पति को देखती है और कहती है- स्वामी आपने देख ली प्रभु की लीला। प्रद्युम्न विष्णु का वरदान है इसे कोई नहीं मार सकता क्योंकि इसकी सुरक्षा स्वयं देवी-देवता कर रहे हैं। तुम बोल नहीं सकते लेकिन ये देख तो सकते हो ना? तुम महाराज संभरासुर को ये बताने गए थे ना कि प्रद्युम्न हमारा पुत्र नहीं है वह मछली के पेट से निकला है, लेकिन तुम बोल नहीं सके। राज खोल नहीं सके और तुम्हारी आवाज चली गई। फिर भी तुम समझ नहीं सके की ये भगवान विष्णु की लीला है।... यह सुनकर भाणासुर क्रोध में गर्दन हिलाकर बताता है- नहीं ये लीला नहीं।
फिर उसकी पत्नि कहती है कि तुम वह चमत्कार भी भूल गए कि कैसे वह मछली के पेट से जीवित निकला था और कैसे मेरे सीने से दूध उबल पड़ा था। मैं जानती हूं कि तुमने महाराज संभरासुर का नमक खाया है। तुम एक सच्चे स्वामी भक्त हो परंतु काश तुम एक सच्चे स्वामी के भक्त होते। काश ऐसा ही हो जाए प्रभु। यह सुनकर भाणासुर मना कर देता है।...श्रीकृष्ण देखते हैं और आंखें बंदकर लेते हैं तब भाणासुर वहां से चला जाता है तो भानामति फिर से कहती है- काश ऐसा ही हो जाए प्रभु, काश ऐसा ही हो जाए।
यह सुनकर आंखें बंद करे श्रीकृष्ण मुस्कुरा देते हैं। तभी वहां रुक्मिणी आकर कहती है- प्रणाम प्रभु। इस पर श्रीकृष्ण की आंखें खुल जाती है और वे कहते हैं देवी आप? तब रुक्मिणी कहती है कि प्रभु जिस तरह देवी रति युग-युगों से प्रतीक्षा कर रही है क्या मुझे भी अपने पुत्र से मिलने के लिए प्रतीक्षा करना होगी? तब श्रीकृष्ण कहते हैं- नहीं देवी अब किसी को भी प्रतीक्षा करने की कोई आवश्यकता नहीं है। संभरासुर की मृत्यु का पल समीप आ रहा है। यह सुनकर रुक्मिणी कहती है- परंतु प्रद्युम्न संभरासुर का वध कैसे करेगा वह तो अभी बाल्यावस्था में है। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि अब वो शीघ्र ही युवावस्था में प्रवेश करेगा। यह सुनकर रुक्मिणी कहती है- वो कैसे प्रभु?
फिर वहां पर नारदमुनि और देवी रति प्रकट होकर प्रणाम करते हैं तब रुक्मिणी देवी रति से कहती है कि दुखी क्यों होती हो देवी रति तुम्हारी प्रतीक्षा का काल अब समाप्त होने वाला है। यह सुनकर वह कहती है सच माते? तब श्रीकृष्ण कहते हैं- हां संभरासुर के गुरुदेव ने प्रद्युम्न में संभरासुर की मृत्यु को देख लिया है। इसलिए वे प्रद्युम्न की हत्या का प्रयास करने वाले हैं इसलिए प्रद्युम्न हो शीघ्र ही बालक से युवक बनाना होगा। यह सुनकर नारदमुनि कहते हैं कि प्रद्युम्न शीघ्र ही जवान कैसे होगा? समय को तेज करने की गति की सिद्धि किसे प्राप्त है प्रभु? तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि उसकी मां भानामति समय की गति को तेज करेंगी देवर्षि। भानामति मायावी और रसायन विद्या पूर्वजन्म से ही जानती है परंतु इस जन्म में वह रसायन विद्या भूल चुकी है। इसलिए देवर्षि आपको केवल भानामति को स्मरण करा देना है कि पूर्वजन्म में भानामति देवलोक की अप्सरा पद्मिनी थीं।
यह सुनकर रुक्मिणी कहती है- पद्मिनी? तब श्रीकृष्ण कहते हैं- हां पद्मिनी। पद्मिनी ने एक अनोखी तपस्या की थी। नृत्य करते-करते वह भगवान विष्णु की आराधना कर रही थी।...नृत्य करते-करते जब वह गिर पड़ी तो विष्णुजी प्रकट हुए और उसे उठाया तब पद्मिनी ने उन्हें प्रणाम किया। तब विष्णु भगवान कहते हैं कि पद्मिनी मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं कहो किसलिए तुम मेरी आराधना कर रही थी? तब पद्मिनी कहती है कि मैं ज्ञान पीपासा की मारी हूं प्रभु। मैं मायावी विद्या और रसायन विद्या प्राप्त करना चाहती हूं प्रभु। तब श्रीविष्णु कहते हैं- तुम्हें इसकी क्या आवश्यकता है? इस पर पद्मिनी कहती है- सम्मान प्राप्त करना चाहती हूं प्रभु। हे लक्ष्मीपति! यदि मैंने इन विद्याओं को ग्रहण किया तो सारी अप्सराओं में मैं श्रेष्ठ मानी जाऊंगी।.. तब विष्णु भगवान कहते हैं कि इसका दुरुपयोग किया तो सर्वनाश अटल है पद्मिनी। तब पद्मिनी कहती हैं कि हे प्रभु! ना ही मैं इस विद्या के आधीन रहूंगी और ना ही मैं इसका दुरुपयोग करूंगी। आप कृपया ये दिव्य ज्ञान प्रदान करें।... फिर श्रीहरि उन्हें ये विद्या प्रदान कर देते हैं।
फिर पद्मिनी अपनी मायावी विद्या से नृत्य करते हुए कभी दो रूप धारण कर लेती तो कभी वृक्ष बन जाती। ऐसा करके वह बहुत ही खुश हो जाती है तब वह एक राक्षसनी बन जाती है। यह बनकर वह अति प्रसन्न हो जाती है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश सहित सभी देवी और देवता देखने लगते हैं कि अब ये क्या करेगी।
वह राक्षसनी बनकर एक नगर में पहुंचकर अपने शरीर को विशालकाय बनाकर भयानक हंसी हंसते हुए लोगों को डराने लगती है। फिर वह पुन: पद्मिनी बन जाती है और खुश होकर खुद से ही प्रसन्न होकर कहती है- मुझे मायावी विद्या आ गई। मुझे इसका प्रमाण मिल गया लेकिन मुझे रसायन विद्या आती है या नहीं इसका प्रमाण मुझे कैसे मिलेगा? हां, मुझे रसायन विद्या का प्रयोग करना चाहिए। लेकिन किस पर करूं कैसे करूं? तभी उसे बच्चों के रोने के आवाज सुनाई देती है।...
फिर श्रीकृष्ण बताते हैं कि पद्मिनी भगवान विष्णु के आदेश का पालन नहीं कर रही थी। वह बार-बार मायावी विद्या का प्रयोग कर रही थी। रसायन विद्या का प्रयोग करने के लिए पद्मिनी महा तेजस्वी ऋषि सदानंद के आश्रम में प्रकट हुई जहां पर सदानंद के दो बालक सोए रहते हैं। ऋषि पत्नी उन बालकों को सुलाकर पानी लेने चली जाती है तब पद्मिनी प्रकट होकर कहती है- बच्चों अब तुम दोनों चुप हो जाओ क्योंकि मैं तुम दोनों पर रसायन विद्या का प्रयोग करने जा रही हूं। फिर वह अपनी विद्या से दोनों अबोध बालक को (10-15) साल बड़ा कर देती है। यह देखकर वह अति प्रसन्न हो जाती है कि मेरा प्रयोग सफल रहा।
यह देखकर सभी देवता अचंभित रह जाते हैं फिर ब्रह्माजी भगवान विष्णु से कहते हैं कि यदि ये ऐसा ही करती रही तो अनर्थ हो जाएगा प्रभु। तब विष्णु भगवान कहते हैं- ब्रह्माजी पद्मिनी को उसके पाप का दंड अवश्य मिलेगा।
फिर पद्मिनी उन बच्चों को देखकर कहती है अब मैं इन्हें और बड़ा करती हूं। फिर वह बालक युवक बन जाते हैं। ये देखकर पद्मिनी बहुत ही खुश हो जाती है और कहती है कि मुझे रसायन विद्या भी आ गई है अब मुझे इसका भी प्रमाण मिल गया। फिर वह कहती है बच्चों उठो। वह दोनों उठकर खड़े होकर पद्मिनी को नमस्कार करते हैं।
तभी वहां पर ऋषि सदानंद और उनकी पत्नी आ जाते हैं। वे पद्मिनी और दो युवकों को देखकर आश्चर्य करते हैं। फिर वे इधर-उधर देखकर अपने बालकों को ढूंढते हैं। फिर सदानंद ऋषि कहते हैं- कौन हो तुम? उनकी पत्नी कहती है- और बच्चे कहां गए? फिर सदानंद कहते हैं- ये दोनों युवक कौन हैं? यह सुनकर वे दोनों युवक कहते हैं- हम आप ही के पुत्र हैं पिताश्री।....तब सदानंद ऋषि कहते हैं- नहीं नहीं वो तो बच्चे हैं तुम तो युवक हो। तब पद्मिनी प्रसन्न होकर कहती हैं- ये आप ही के बच्चे हैं ऋषिवर। यह सुनकर ऋषि की पत्नी कहती है- हमारे बच्चे? तब वे दोनों युवक कहते हैं- हां माताश्री।
फिर सदानंद ऋषि पूछते हैं कि परंतु ये असंभव संभव कैसे हो गया? हमारे छोटे बच्चे युवक कैसे बन गए मुझे विश्वास नहीं हो रहा। तब पद्मिनी कहती हैं कि मैंने इन्हें बड़ा किया है मैंने। यह सुनकर ऋषिवर के चेहरे पर क्रोध आ जाता है। तब पद्मिनी कहती हैं कि इन पर रसायन विद्या का प्रयोग कर मैंने किया और अब मैं समझ गई हूं कि मैं रसायन विद्या जानती हूं।
यह सुनकर क्रोधित ऋषि कहते हैं- मूर्ख! कितना घोर अपराध किया है तुमने ये तुम नहीं जानती। तब ऋषिवर की पत्नी कहती है कि तुमने मेरे बच्चों का बचपन छीनकर अच्छा नहीं किया। अरे! अभी तो मेरी ममता भी तृप्त नहीं हुई थी इनके बालपन से। फिर ऋषि कहते हैं कि रसायन विद्या प्राप्त होने के बाद तुम इतनी उन्मत हो गई की तुम हमें प्रणाम करना भी भूल गई। तुम्हारा ये अपराध क्षम्य है परंतु हमारे बच्चों को युवा बनाने का अपराध क्षमा करने योग्य नहीं। इसका दंड तुम्हें अवश्य मिलेगा। मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम देवलोक से गिरकर असुरों के कुल में जन्म लोगी। क्योंकि तुम्हारी मनोभूमिका असुरों से अधिक मिलती है। जिस मायावी और रसायन विद्या का तुम्हें गर्व है वह तुम भूल जाओगी।
पद्मिनी इसके लिए क्षमा मांगती हैं और उन्हें श्राप वापस लेने का कहती है। तब फिर ऋषिवर की पत्नी कहती है कि रसायन विद्या के आधीन होने के बाद तुमने एक माता की ममता का तनिक-सा भी ध्यान नहीं किया इस कारण तुम भी पुत्र सुख से वंचित रहोगी। तब सदानंद कहते हैं कि तुमने जो पाप किया है उसके लिए यही दंड है कि तुम मृत्युलोक में बांझ बनकर जनम लो। ऐसा कहकर ऋषि अपने कमंडल में से जल निकालकर पद्मिनी कर छीड़क देते हैं।
पद्मिनी रोती और क्षमा मांगती ही रह जाती है। तब वह भगवान विष्णु को पुकारती है और कहती है- हे प्रभु! मुझसे बड़ी भूल हो गई मुझे क्षमा कीजिये। वह पुन: देवलोक चली जाती है यह सोचते हुए कि अब मैं क्या करूं। फिर वे आसमान में जाकर रोते हुए प्रभु विष्णु का आह्वान करती है तो वे प्रकट होकर कहते हैं निराश होने की कोई आवश्यकता नहीं है तुम्हारे हाथ से एक महत्वपूर्ण कार्य संपन्न होने वाला है। द्वापर युग में संभरासुर नाम का असुर प्रबल होगा उसका विनाश करने महादेव शिवजी के आशीर्वाद से कामदेव मेरे पुत्र के रूप में मृत्युलोक में अवतार लेंगे। उनका नाम होगा प्रद्युम्न। प्रद्युम्न का लालन-पालन तुम्हारे ही हाथों होगा। तुम्हें मायावी या रसायन विद्या का विस्मरण होगा परंतु समय की मांग होगी प्रद्युम्न को युवावस्था प्रदान करने की। तब तुम्हें फिर से इन दोनों विद्याओं का स्मरण होगा और तुम प्रद्युम्न को युवक बनाकर उसे मायावी विद्याओं की शिक्षा दोगी। जब प्रद्युम्न संभरासुर का विनाश करेगा तब तुम उस समय सदानंद ऋषि के श्राप से मुक्त हो जाओगी। तुम्हारे हाथ से त्रिलोकी का कल्याण होगा। अब तुम क्यों आंसू बहा रही हो?
इस पर पद्मिनी कहती हैं कि यह पश्चाताप के आंसू हैं प्रभु। अब मुझे कोई लोभ नहीं रहा न मायावी विद्या का और न रसायन विद्या का। अब मैं मुक्ति चाहती हूं प्रभु। जब द्वापर युग में मेरे हाथों त्रिलोकी कल्याण का कार्य संपन्न हो तब आप मुझे मुक्ति दे दीजियेगा प्रभु। मुझे मुक्ति दे दीजिये यही मेरी प्रार्थना है प्रभु। यह सुनकर श्रीहरि कहते हैं- तथास्तु।
फिर यह कथा सुनकर नारदजी श्रीकृष्ण से कहते हैं- नारायण नारायण। आपकी लीला अगाध है प्रभु। प्रद्युम्न की सुरक्षा की योजना आपने पहले से ही बना रखी थी। कहीं पद्मिनी के मन में मायावी विद्या और रसायन विद्या सीखने की इच्छा के पीछे आप ही तो नहीं थे प्रभु? यह सुनकर श्रीकृष्ण हंस देते हैं। फिर वे कहते हैं- देवर्षि! अब आपको और रति को भानामति से मिलना होगा। भानामति को जब आप पूर्वजन्म का स्मरण करा देंगे तो उसे सबकुछ याद आ जाएगा और वह सदानंद ऋषि के श्राप से मुक्त हो जाएगी और प्रद्युम्न को युवावस्था प्रदान करेगी।
फिर श्रीकृष्ण देवी रति से कहते हैं कि देवी रति आपका कार्य प्रद्युम्न को ये बताना होगा कि वह कामदेव है। एक बात और कि संभरासुर के गुरुदेव को यह पता चल गया है कि प्रद्युम्न संभारासुर के लिए मृत्युदाता है इसलिए वो उसे मार डालने का प्रयास अवश्य करेंगे। उनका प्रयास विफल करने के लिए भानामति को पूर्वजन्म का स्मरण करा देना अति आवश्यक है। यह सुनकर देवी रति कहती हैं कि हम अति शीघ्र ही भानामति से मिलेंगे प्रभु। ऐसा कहकर देवर्षि नारद और देवी रति वहां से चले जाते हैं। जय श्रीकृष्ण।