श्रीकृष्ण ने कब बांसुरी बजाना सीखा और कब बजाना छोड़ दिया, जानिए
ढोल मृदंग, झांझ, मंजीरा, ढप, नगाड़ा, पखावज और एकतारा में सबसे प्रिय बांस निर्मित बांसुरी भगवान श्रीकृष्ण को अतिप्रिय है। इसे वंसी, वेणु, वंशिका और मुरली भी कहते हैं। बांसुरी से निकलने वाला स्वर मन-मस्तिष्क को शांति प्रदान करता है। जिस घर में बांसुरी रखी होती है वहां के लोगों में परस्पर तो बना रहता है साथ ही सुख-समृद्धि भी बनी रहती है। आओ जानते हैं कि श्रीकृष्ण कब पहली बार बांसुरी बजाई और कब बजना छोड़ दिया और फिर अंतिम बार कब बजाई।
1. धनवा नाम का एक बंसी बेचने वाला श्रीकृष्ण को बांसुरी देता है तो वे उस पर पहली बार मधुर धुन छोड़ते हैं जिससे वह बंसी बेचने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता है। उसी समय से श्रीकृष्ण बांसुरी बजने वाले बन जाते हैं। उनकी बांसुरी की धुन पर गोपिकाएं और पूरा गोकुल बेसुध हो जाता था। श्रीकृष्ण ने पहली ही बार ऐसी बांसुरी बजाई की सभी को ऐसा लगा जैसे यह बजाना कई जन्मों से सीख रखा है।
2. 11 वर्ष की अवस्था में श्रीकृष्ण मथुरा चले गए थे और वहां उन्होंने कंस का वध कर दिया जिसके चलते मगध और भारत का सबसे शक्तिशाली सम्राट उनकी जान का दुश्मन बन गया, क्योंकि कंस उसका दामाद था। श्रीकृष्ण जब राधा और गोपियों को छोड़कर जा रहे थे तब उस रात महारास हुआ और उसमें उन्होंने ऐसी बांसुरी बजाई थी कि सभी गोपिकाएं बेसुध हो गई थी। कहते हैं कि इसके बाद श्रीकृष्ण ने राधा को वह बांसुरी भेंट कर दी थी और राधा ने भी निशानी के तौर पर उन्हें अपने आंगन में गिरा मोर पंख उनके सिर पर बांध दिया था।
3. मथुरा जाने के बाद राधा और कृष्ण का कभी मिलन नहीं हुआ। हां, उधव श्रीकृष्ण का संदेश जरूर ले गए थे। कहते हैं कि इसके बाद राधा और श्रीकृष्ण की अंतिम मुलाकात द्वारिका में हुई थी। सारे कर्तव्यों से मुक्त होने के बाद राधा आखिरी बार अपने प्रियतम कृष्ण से मिलने गईं। जब वे द्वारका पहुंचीं तो उन्होंने कृष्ण के महल और उनकी 8 पत्नियों को देखा। जब कृष्ण ने राधा को देखा तो वे बहुत प्रसन्न हुए। तब राधा के अनुरोध पर कृष्ण ने उन्हें महल में एक देविका के पद पर नियुक्त कर दिया।
कहते हैं कि वहीं पर राधा महल से जुड़े कार्य देखती थीं और मौका मिलते ही वे कृष्ण के दर्शन कर लेती थीं। एक दिन उदास होकर राधा ने महल से दूर जाना तय किया। कहते हैं कि राधा एक जंगल के गांव में में रहने लगीं। धीरे-धीरे समय बीता और राधा बिलकुल अकेली और कमजोर हो गईं। उस वक्त उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की याद सताने लगी। आखिरी समय में भगवान श्रीकृष्ण उनके सामने आ गए। भगवान श्रीकृष्ण ने राधा से कहा कि वे उनसे कुछ मांग लें, लेकिन राधा ने मना कर दिया। कृष्ण के दोबारा अनुरोध करने पर राधा ने कहा कि वे आखिरी बार उन्हें बांसुरी बजाते देखना और सुनना चाहती हैं। श्रीकृष्ण ने बांसुरी ली और बेहद सुरीली धुन में बजाने लगे। श्रीकृष्ण ने दिन-रात बांसुरी बजाई। बांसुरी की धुन सुनते-सुनते एक दिन राधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया।